दो ध्रुव, एक भारत: रणनीतिक आज़ादी की असली परीक्षा?

ईरान के साथ संबंधों में भारत को अमेरिका या इज़रायल के नजरिए से नहीं अपने हित देखने होंगे. 

WrittenBy:विकास जांगड़ा
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जब दुनिया अमेरिका बनाम ईरान, इस्लाम बनाम पश्चिम जैसे ब्लॉकों में बंटी हो तो भारत जैसे देश को रणनीति से चलना होता है. आज जब पश्चिम एशिया फिर तनाव में है, ऐसे में ये सवाल अहम हो जाता है क्या भारत और ईरान के संबंधों की दिशा क्या हो? क्या भारत को ईरान को अपना दुश्मन मानना चाहिए या फिर रणनीतिक मित्र बनाए रखना चाहिए?

दरअसल, भारत और ईरान के बीच सांस्कृतिक, व्यापारिक और भाषायी संबंध सदियों पुराने हैं. फारसी भाषा ने भारतीय प्रशासन और साहित्य में गहरा असर डाला. भारत में रहने वाला पारसी समुदाय भी ईरान की ज़मीन से निकला है. इसके अलावा एक वक्त था जब ईरान से भारत को सस्ता तेल मिलता था. पाकिस्तान को बायपास करने के लिए भारत ने चाबहार पोर्ट जैसे प्रोजेक्ट शुरू किए.

भारत ने ईरान के खिलाफ अमेरिका या इज़रायल की लाइन नहीं अपनाई. एक संतुलित दृष्टिकोण के चलते भारत सऊदी अरब, संयुक्त राज्य अमेरिका, इज़रायल और ईरान सभी से रिश्ते बनाए रखने में सफल रहा है. 

देखिए इस हफ्ते का सारांश. 

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