6 महीने में फडणवीस की सीट पर 29,219 मतदाता जुड़े, चुनावी कर्मचारियों का चूक का दावा

न्यूज़लॉन्ड्री को नागपुर दक्षिण पश्चिम में हज़ारों मतदाता ऐसे मिले जिनके पते नहीं थे. चुनाव आयोग के प्रवक्ता ने जोर देकर कहा कि मतदाता सूची ‘बिल्कुल शुद्ध’ है.

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2024 के लोकसभा चुनाव और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बीच छह महीनों के अंतर में भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस की सीट नागपुर दक्षिण पश्चिम पर 29,219 नए मतदाता जुड़े. यानी हर रोज लगभग 162 मतदाता. यह 8.25 प्रतिशत की काफी तेज वृद्धि है. जो चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के तहत अनिवार्य सत्यापन जांच को ट्रिगर करने वाली 4 प्रतिशत सीमा से दोगुनी से भी ज्यादा है.

लेकिन फिर भी, कुछ क्षेत्र जहां सबसे ज्यादा मतदाता जुड़े हैं, वहां के स्थानीय मतदान कर्मचारियों ने दावा किया कि ऐसी कोई जांच नहीं की गई.

इसके अलावा, न्यूज़लॉन्ड्री द्वारा 50 बूथों पर की गई रैंडम जांच में कम से कम 4,000 ऐसे मतदाता मिले जिनके पते नहीं थे. हालांकि, यह जांच करना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि निर्वाचन क्षेत्र में फर्जी मतदाता थे या नहीं.

नागपुर दक्षिण पश्चिम से 2,301 वोट या 0.6 प्रतिशत मतदाताओं को हटाया भी गया था. फडणवीस ने कांग्रेस उम्मीदवार प्रफुल्ल गुडधे को 39,000 वोटों से हराया था, यह इस सीट से उनकी लगातार चौथी जीत थी. लोकसभा चुनावों की तुलना में भाजपा के मतदाताओं की संख्या में 14,225 की बढ़ोतरी हुई, जबकि कांग्रेस का लगभग 8,000 वोटों का ही इज़ाफ़ा हुआ.

भारतीय चुनाव आयोग को पिछले कुछ वर्षों में मतदाता सूचियों में विसंगतियों के बारे में विपक्षी दलों की ओर से आरोपों का सामना करना पड़ रहा है. दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश तक और हाल ही में महाराष्ट्र में, जहां कांग्रेस के राहुल गांधी ने ‘धांधली’ का आरोप लगाया.

‘इन मतदाताओं का पता नहीं लगाया जा सका’

भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) अपने अधिकारियों द्वारा वहां अतिरिक्त क्रॉस-सत्यापन को अनिवार्य बनाता है, जहां पिछले मतदाता सूचियों की तुलना में 4 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी और 2 प्रतिशत से ज्यादा की कटौती होती है. ईसीआई के एक अधिकारी ने कहा, “आप कह सकते हैं कि 2 प्रतिशत और 4 प्रतिशत एक तरह की सीमा है. नाम हटाना अधिक संवेदनशील है, इसलिए सीमा कम रखी गई है. जोड़ना हमेशा अच्छा होता है, लेकिन अगर यह 4 प्रतिशत से ज्यादा हो तो दोबारा जांच करने की एक वजह भी है.”

imageby :चुनाव आयोग का डाटा

लगभग 70% बूथों पर 4% से अधिक मतदाता जुड़े

विधानसभा के 378 बूथों पर मतदाता सूचियों की बारीकी से जांच करने पर पता चलता है कि 263 बूथों पर मतदाताओं की संख्या में 4 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी देखी गई, 26 बूथों पर 20 प्रतिशत से अधिक और चार बूथों पर 40 प्रतिशत से अधिक.

मतदाता सूचियों पर चुनाव आयोग की नियमावली और चुनाव आयोग की वेबसाइट पर एक नोट में 4 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि होने पर बढ़ोतरी को सत्यापित करने की प्रक्रिया बताई गई है. इस प्रक्रिया में मतदाता सूचियों को अपडेट किए जाने के दौरान फ़ील्ड में सत्यापन और बहु-स्तरीय दोहरी जांच के तरीके शामिल हैं.

विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता सूचियों का अद्यतन (अपडेट) एक निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी द्वारा किया जाता है, जो आमतौर पर एक उप-मंडल अधिकारी-रैंक का नौकरशाह होता है. ईआरओ को सहायक ईआरओ की एक टीम द्वारा सहायता प्रदान की जाती है, जो पर्यवेक्षकों की देखरेख करते हैं, जो बदले में बूथ-स्तरीय अधिकारियों का नेतृत्व करते हैं. फील्ड सत्यापन बीएलओ द्वारा किया जाता है, जो आमतौर पर निचले स्तर के सरकारी या अर्ध-सरकारी कर्मचारी होते हैं, जैसे कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, पंचायत सचिव या प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षक.

सभी संयोजन (नाम जोड़ना) फॉर्म 6 के जरिए किए जाते हैं, जो जिला कार्यालय द्वारा ऑनलाइन या ऑफलाइन लिया जाता है. प्रत्येक फॉर्म के साथ, ईआरओ एक बीएलओ को फील्ड विजिट करने के लिए नियुक्त करता है, जिसकी रिपोर्ट बाद में ईआरओ को सौंपी जाती है.

बीएलओ द्वारा किए गए कार्य की सख्त जवाबदेही को लागू करने के लिए पर्यवेक्षण और जांच के लिए एक तंत्र तय है.

एक पर्यवेक्षक, जिसके पास आमतौर पर 10 बीएलओ होते हैं, उसको अपने अधीन प्रत्येक बीएलओ के सत्यापनों में से 5 प्रतिशत का सत्यापन व्यक्तिगत रूप से करना होता है.

मैनुअल में साफ़ कहा गया है कि जब जोड़ पिछले रोल से 4 प्रतिशत से अधिक हो जाता है, तो एईआरओ को इन संयोजनों में से 1 प्रतिशत पर फील्ड जांच करने की आवश्यकता होती है. ईआरओ,, पर्यवेक्षकों, एईआरओ और बीएलओ के साथ नियमित बैठकें करने के अलावा यह भी सुनिश्चित करते हैं कि फील्ड सत्यापन औपचारिक तरीके से न किया जाए, साथ ही उनसे यह अपेक्षा भी की जाती है कि वे जहां आवश्यक हो, वहां खुद फील्ड सत्यापन करें.

मैनुअल में मुख्य निर्वाचन अधिकारी और जिला निर्वाचन अधिकारी द्वारा सुपर-चेक निर्दिष्ट किए गए हैं. सीईओ को राज्यों में 100 फॉर्म या प्रति जिले कम से कम पांच फार्म सत्यापित करने और उसके बाद फील्ड सत्यापन करने का अधिकार है. डीईओ को अपने जिले में अपने अधिकार क्षेत्र के तहत सभी विधानसभाओं को कवर करते हुए 20 फॉर्म या जिले के प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में कम से कम चार फार्म सत्यापित करने होते हैं.

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‘इन मतदाताओं का पता नहीं लगाया जा सका’

न्यूज़लॉन्ड्री ने एक दर्जन से ज़्यादा बीएलओ से संपर्क किया, जिनके बूथों पर 20 से 58 प्रतिशत के बीच मतदाताओं की संख्या में सबसे ज्यादा उछाल देखा गया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या उन्होंने पूरी तरह से सत्यापन किया था. रिकॉर्ड पर बात करने वाले पांच समेत कुल छह बीएलओ ने सत्यापन प्रक्रिया करने से इनकार किया, जबकि बाकी ने या तो बोलने से इनकार कर दिया या कोई जवाब नहीं दिया.

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करने वाले बीएलओ ने दावा किया कि उन्हें जिला चुनाव कार्यालय के जरिए बड़ी संख्या में आवेदन मिले थे.

खामला में सिंधी हाई स्कूल के कमरा नंबर 3 - बूथ 174 में एक दशक से ज़्यादा समय से बीएलओ रहे एसपी नागवंशी ने कहा कि उन्होंने अपने बूथ पर 24 प्रतिशत की अभूतपूर्व बढ़ोतरी देखी. “इस बार जिला निर्वाचन कार्यालय को 300 से ज्यादा मतदाताओं के आवेदन मिले थे… मैंने नए मतदाताओं के आवेदन पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं… मैंने सिर्फ 8-10 नए मतदाताओं को पंजीकृत किया है… इसका जवाब सिर्फ़ जिला कार्यालय ही दे सकता है. मतदान के दिन, मैं उन मतदाताओं को मतदान के लिए आते देखकर हैरान रह गया, जिन्हें बारे में मैंने कभी देखा या सुना भी नहीं था… लेकिन उस दिन, मतदाताओं को मतदान करने देने से पहले उनका सत्यापन करना बीएलओ का काम नहीं है.”

रामचंद्र मोखरे एमसीवीसी कॉलेज के कमरा नंबर 1 के बूथ 76 के बीएलओ संदीप करोडे के बूथ पर 30 प्रतिशत की वृद्धि दर देखी गई. करोड़े ने दावा किया, “जिला कलेक्टर कार्यालय को इन मतदाताओं के आवेदन मिले थे, जिन्हें सत्यापन के लिए हमें सौंपा गया था… जिनमें से हम सिर्फ़ कुछ का ही सत्यापन कर पाए. जब ​​हम उनके पते पर गए, तो उनके पड़ोसियों ने हमें बताया कि ये लोग यहां नहीं रहते हैं. हमने अपने पर्यवेक्षक को इस बारे में सूचित किया ताकि उन्हें इस बारे में पता चल सके.”

जैताला में एनएमसी प्राथमिक विद्यालय के कमरा नंबर 1 स्थित बूथ 181 पर 39.9 प्रतिशत नए मतदाता जोड़े गए. यहां के बीएलओ गणेश जरवार  ने कहा कि उनके बूथ के लिए उन्हें 365 मतदाताओं को जोड़ने के लिए आवेदन मिले थे. "ग्राउंड वेरिफिकेशन के दौरान, मुझे मतदाताओं के पते नहीं मिल पाए, क्योंकि कई लोगों ने गलत पते दिए थे. यह हमारे लिए एक बड़ी समस्या है… यहां तक ​​कि उनके मतदाता पहचान पत्र भी वापस कर दिए गए, और फिर जिला कार्यालय ने उन कार्डों को मतदाताओं को वितरित करने के लिए हमें सौंप दिया. मैंने फिर से जांच की, और वे नहीं मिले, और फिर उन कार्डों को फिर से कार्यालय को लौटा दिया."

उन्होंने दावा किया कि इन सभी मतदाताओं को जोड़ा गया था.

58.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज करने वाले जैताला में एकात्मता हाई स्कूल के कमरा नंबर 1 के बूथ 189 के बीएलओ दिवाकर भाकरे ने दावा किया, "जिला कार्यालय ने मुझे 400 नए मतदाताओं के आवेदन सौंपे थे… हमें सत्यापन के लिए समय नहीं मिला… फिर भी मैंने अपनी तरफ से अच्छे से अच्छा प्रयास किया. जिनका सत्यापन मैं नहीं कर पाया, जिला कार्यालय को पता होगा कि उन्हें कैसे मतदाता सूची में जोड़ा गया."

जैताला में सेंट जोसेफ प्राइमरी स्कूल के कमरा नंबर 1 के बूथ 200 पर 328 नए मतदाता जोड़े गए, जो 30 प्रतिशत की वृद्धि है. इसके बीएलओ मिनाक्सी निकोसे ने दावा किया, "आमतौर पर मैं तब नया मतदाता जोड़ता हूं, जब हमारे क्षेत्र में कोई नया व्यक्ति आता है. लेकिन इस बार हमें जिला कार्यालय के माध्यम से मतदाताओं को जोड़ने के लिए आवेदन प्राप्त हुए थे… मैंने इन सभी मतदाताओं का सत्यापन नहीं किया क्योंकि मुझे लगा कि अगर जिला कार्यालय ने हमें मतदाताओं की सूची सौंपी है तो यह विश्वसनीय ही होगी."

हमने इन बीएलओ के पांच पर्यवेक्षकों से संपर्क किया. केवल दो ने जवाब दिया.

बीएलओ गणेश जरवार की पर्यवेक्षक माया ने कहा कि यह सच है कि पिछले चुनावों की तुलना में असामान्य रूप से अधिक मतदाता जोड़े गए हैं, और इसका एक “संभावित” कारण यह हो सकता है कि राज्य चुनाव आयोग ने छात्रों को मतदाता के रूप में खुद को पंजीकृत करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कॉलेजों में कुछ कार्यक्रम चलाए थे.

जब उनसे पूछा गया कि क्या उनके प्रभार में सिर्फ़ एक बूथ पर जोड़े गए 365 नए मतदाता कॉलेज के छात्र थे, तो उन्होंने जवाब दिया, “मुझे इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है और केवल बीएलओ ही यह बता सकते हैं, क्योंकि हम जमीनी सत्यापन के लिए उन पर निर्भर हैं. हमें इसके लिए समय नहीं मिलता क्योंकि हम अपने मुख्य काम में व्यस्त रहते हैं. और इस चुनाव से पहले, मैं ज्यादातर 85 साल से ज़्यादा उम्र के मतदाताओं को डाक मतपत्र के जरिए वोट डालने में मदद करने में व्यस्त थी.”

बीएलओ संदीप करोडे के पर्यवेक्षक मोटघरे ने कहा कि उन्हें मतदाताओं की संख्या में वृद्धि का कारण नहीं पता है और केवल जिला कार्यालय ही इसका उत्तर दे पाएगा. यह पूछे जाने पर कि क्या वे अतिरिक्त मतदाताओं की पुष्टि करने के लिए जमीनी सत्यापन करने में सक्षम रहे, उन्होंने कॉल काट दिया.

इसके अलावा हमें निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में बिना पते वाले मतदाताओं की भरमार भी मिली. इस रिपोर्ट के लिए क्रमरहित रूप से चुने गए 50 बूथों की जांच से पता चला कि कम से कम 4,393 मतदाताओं के पते खाली थे. मसलन, बूथ 107 में 290 मतदाता (21 प्रतिशत) ऐसे हैं जिनके पते गायब हैं.

यह स्पष्ट नहीं है कि बिना पते वाले मतदाता, मतदाता सूची में कैसे शामिल हो रहे हैं, जबकि चुनाव आयोग के अनुसार मतदाताओं को फॉर्म 6 के साथ निवास का प्रमाण पेश करना जरूरी रहता है और चूंकि मैनुअल में साफ़ बताया गया है कि पता कॉलम भरना अनिवार्य है. यहां तक ​​कि बेघर मतदाताओं के मामले में भी, निवास के दस्तावेजी प्रमाण के अभाव में, बीएलओ फील्ड सत्यापन के बाद एक सांकेतिक पता दर्ज करते हैं.

पिछले साल, उत्तर प्रदेश के मुख्य चुनाव अधिकारी नवदीप रिनवा ने हमें बताया था कि राज्य के शहरी इलाकों में मतदाताओं को न ढूंढ पाना एक व्यापक समस्या है और उन्होंने चुनाव आयोग से इसे ठीक करने का अनुरोध किया था. उन्होंने कहा था, "भारतीय चुनाव आयोग द्वारा ऐसे मतदाताओं को हटाने के लिए कोई स्पष्ट एसओपी नहीं है. यदि पंजीकरण के समय मतदाता का पूरा पता दर्ज नहीं किया जाता है, तो यह हटाने के समय एक बड़ी समस्या बन जाती है. क्योंकि बीएलओ घर-घर जाकर उनका सत्यापन कैसे करेंगे और हम उन्हें उनके वोट के हटाए जाने की सूचना देने के लिए नोटिस कहां भेजेंगे." 

न्यूज़लॉन्ड्री द्वारा एक प्रश्नावली का जवाब देते हुए चुनाव आयोग के प्रवक्ता ने कहा कि "कोई भी वृद्धि या कमी हो सकती है" और "माइग्रेशन बहुत मोबाइल हो गया है". "मतदाता सूची अपडेट होने के समय के आधार पर, हम पूरी प्रक्रिया का पालन करते हैं. बीएलओ, बूथ लेवल एजेंट, दावे और आपत्तियां आती हैं. उसके बाद सब कुछ निपट जाता है. इसलिए यह स्वाभाविक वृद्धि है."

रिक्त पतों के सवाल पर इस प्रवक्ता ने कहा, "बिना पते वाले मतदाताओं का मतलब है कि वे मतदाता जो किसी क्षेत्र में रहते हैं". चुनाव आयोग उन्हें नए मतदाता के रूप में पंजीकृत करता है यदि "वे भारत के नागरिक हैं, यदि वे 18 वर्ष से अधिक उम्र के हैं और यदि वे अस्थायी रूप से किसी ऐसे क्षेत्र में रह रहे हैं, जिसका कोई सटीक पता नहीं है" और "कोई दस्तावेज पेश करने में सक्षम हैं जो साबित करते हैं कि मतदाता उसी क्षेत्र में रहता है और ऐसा हमारे बीएलओ द्वारा जमीनी स्तर पर सत्यापन के बाद" होता है. 

प्रवक्ता ने कहा, "मैं सिर्फ आपको वर्तमान स्पष्ट कानूनी स्थिति बताने के लिए यहां हूं… महाराष्ट्र चुनावों में कोई समस्या नहीं थी. हमारी मतदाता सूची पूरी तरह से साफ़ है."

न्यूज़लॉन्ड्री ने ईआरओ सुरेश बागले और डीईओ प्रवीण माहिरे से कॉल और मैसेज के जरिए संपर्क करने की कई बार कोशिश की, लेकिन उनमें से किसी ने भी जवाब नहीं दिया. हमने महाराष्ट्र के सीईओ एस चोकलिंगम और ईसीआई को एक विस्तृत प्रश्नावली भेजी है, जिसमें पूछा गया है कि क्या वे वरिष्ठ चुनाव अधिकारियों द्वारा किए गए क्षेत्र सत्यापन से प्राप्त निष्कर्षों का दस्तावेजीकरण करते हैं. यदि वे जवाब देते हैं तो इस कॉपी को अपडेट कर दिया जाएगा.

विवरण में पते की नदारदी के मुद्दे पर बोलते हुए भंडारा जिले के डीईओ प्रशांत पिसल ने दावा किया कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि आवेदक "उचित दस्तावेज" संलग्न करने के बावजूद "अपने ऑनलाइन फॉर्म में विस्तृत पता नहीं बताते हैं". "इसलिए इसका परिणाम, मतदाता सूची में उस विशेष डेटा का प्रतिबिंब होता है."

यह ईआरओ की जिम्मेदारी है कि वह अनुमानित जनसंख्या डेटा की तुलना में, मतदान केंद्र मुताबिक बढ़ोतरी में किसी भी असाधारण रुझान के लिए मतदाता सूची की जांच करे.

‘ऐसा आना सामान्य नहीं है’

यह बढ़ोतरी 2009 के बाद से मतदाताओं की संख्या में सबसे बड़ी वृद्धि में से एक है. 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले विधानसभा क्षेत्र में 32,822 मतदाता जुड़े थे.

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नागपुर जिले की जनगणना प्रोफाइल 2001 और 2011 के बीच 14 प्रतिशत की जनसंख्या वृद्धि दिखाती है. ये बढ़ोतरी की दर पिछले दशक की तुलना में कम थी.

भारत के पूर्व रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त एआर नंदा ने कहा, "अगर नागपुर की आबादी में अचानक वृद्धि नहीं हो रही है, तो मतदाता सूची में इसके दिखाई देने का कोई मतलब नहीं है. 1988 में हमने मतदाताओं की संख्या में अचानक उछाल देखा था, क्योंकि मतदान की आयु घटाकर 18 वर्ष कर दी गई थी और युवा लोग मतदान करने लगे थे."

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के संस्थापक जगदीप छोकर ने कहा, "अगर किसी इलाके में बहुमंजिला ऊंची रिहायशी इमारत बन जाती है और नए लोग वहां चले जाते हैं, तो इस तरह का आदान-प्रदान अचानक उछाल की व्याख्या कर सकता है. इसके अलावा, अगर किसी शहर में ऐसी कोई बड़ी प्राकृतिक घटना या बात नहीं हुई है, और प्रवास का प्रवाह भी नहीं बढ़ा है… खासकर जब चुनाव आयोग हर साल मतदाता सूची में संशोधन करता है… तो मुझे नहीं लगता कि मतदाताओं की आमद सामान्य से दोगुनी होगी. और अगर मतदाताओं की संख्या में 50 से 60 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी होती है, तो निश्चित रूप से आयोग को इस पर स्पष्टीकरण देना चाहिए." 

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विशाल वैभव आईआईटी-दिल्ली के भौतिकी विभाग के पूर्व सहायक प्रोफेसर और पूर्व छात्र हैं.

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