मध्य प्रदेश में ईसाइयों द्वारा संचालित कई स्कूलों का कहना है कि ये घटनाएं कोई अपवाद नहीं हैं, बल्कि गहरे दबे हुए भेदभाव के लक्षण हैं.
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पिछले साल अक्टूबर की एक सुबह, मध्य प्रदेश के गुना जिले के वंदना कॉन्वेंट स्कूल में कुछ लोग पहुंचे. उनका नेतृत्व कक्षा 3 के एक छात्र के पिता कर रहे थे. बाकी लोग एक स्थानीय हिंदुत्व संगठन के सदस्य थे और वो अपने साथ मांगों की एक सूची लेकर आए थे.
उन्होंने दावा किया कि एक मुस्लिम छात्र ने उनके बच्चे पर हमला किया था और शिक्षक ने केवल हिंदू लड़के को शारीरिक रूप से दंडित किया था. उन्होंने कहा कि ये ईसाई संचालित स्कूल में हिंदू विरोधी पूर्वाग्रह का सबूत है. उन्होंने मांग की कि शिक्षक को निलंबित किया जाए, मुस्लिम छात्र को दूसरी कक्षा में स्थानांतरित किया जाए, और स्कूल द्वारा लिखित माफी मांगी जाए.
लेकिन कक्षा के सीसीटीवी फुटेज से कुछ और ही पता चला. कोई लड़ाई नहीं हुई थी. कोई सज़ा भी नहीं.
फिर भी, स्कूल ने मांगों का पालन किया. ठीक वैसे ही जैसे कुछ महीने पहले किया था, जब एक और भीड़, इस बार एबीवीपी कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में, प्रिंसिपल द्वारा छात्रों से 'अंग्रेजी में बोलने’ के लिए कहने पर अंदर घुस गई थी. उन्होंने प्रिंसिपल को 'माफी मांगने' के लिए मजबूर किया और उनके खिलाफ 'धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने' के लिए एफआईआर दर्ज कराई.
लेकिन मामला यहीं नहीं रुका. स्कूल के कर्मचारियों का आरोप है कि इन घटनाओं के बाद एबीवीपी के सदस्य स्कूल के कामकाज की निगरानी करने की मांग करते हुए परिसर में अक्सर आने लगे. कथित तौर पर स्कूल से पूछा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री मोहन यादव की तस्वीरें दीवारों से क्यों गायब थीं, जबकि महात्मा गांधी और डॉ. बीआर अंबेडकर जैसी राष्ट्रीय हस्तियों की तस्वीरें पहले से ही लगी थीं. देवी सरस्वती की तस्वीर लगाने की मांग की गई. स्कूल ने फिर से हार मान ली और लॉबी में पीएम और सीएम की तस्वीरें लगा दीं.
मध्य प्रदेश में ईसाइयों द्वारा संचालित कई स्कूलों का कहना है कि ये घटनाएं कोई अपवाद नहीं हैं, बल्कि गहरे दबे हुए भेदभाव के लक्षण हैं: डराने-धमकाने का अभियान और प्रशासनिक अतिक्रमण. देश के कुछ अन्य हिस्सों में भी ऐसी ही घटनाएं हुई हैं. पिछले साल फरवरी में, असम के ईसाई स्कूलों को एक हिंदुत्व संगठन द्वारा अपने परिसर से सभी ईसाई प्रतीकों को हटाने का आदेश दिया गया था.
इसी तरह त्रिपुरा में एक शिक्षक द्वारा छात्र को धार्मिक प्रतीकों वाला कलाई का पट्टा न पहनने के लिए कहने के बाद विरोध प्रदर्शन हुए. दक्षिण के कुछ राज्यों में भी ऐसी ही घटनाएं हुई हैं. इसके बाद कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया ने देश में 'मौजूदा सामाजिक-सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक स्थिति के कारण उभरती चुनौतियों' से निपटने में मदद करने के लिए सभी मिशनरी-संचालित स्कूलों को दिशा-निर्देश जारी किए थे.
मध्य प्रदेश में नौ डायसिस (धर्मप्रांत) द्वारा संचालित लगभग 303 स्कूल हैं, जो मुख्यतः जबलपुर, सागर, इंदौर, उज्जैन, भोपाल, खंडवा, सतना, झाबुआ और ग्वालियर जिलों में हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री ने पिछले दो वर्षों में चार जिलों में एक पैटर्न का पता लगाया. लेकिन इस रिपोर्ट में नामित ईसाई स्कूलों के अधिकांश प्रधानाचार्य और प्रबंधन के लोग, इस रिपोर्ट में अपना नाम आने से बहुत डर रहे थे, क्योंकि उन्हें इसकी प्रतिक्रिया का डर है.
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