दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
खबरों की उम्र बहुत कम हो गई है. लग ही नहीं रहा कि दस दिन पहले भारत पाकिस्तान के बीच लड़ाई हुई थी. एक वो युद्ध था 1965 और 1971 का. एक-एक सपूतों के नाम बूढ़ पुरनिया लोग आज भी रटते हैं. और एक ये युद्ध हुआ और जिंदगी बिना रुकावट तेज़ रफ्तार से आगे बढ़ गई. लौंडे फिर से रील देखने मेें मस्त हो गए, पढ़े लिखे लौंडे आईपीओ रिजेक्शन और एसआईपी इन्वेस्टमेंट में व्यस्त हो गए. बुजुर्ग सोसाइटी के व्हाट्एप ग्रुप में फर्जी इतिहास फॉरवर्ड करने में लग गए. इसी माहौल में धृतराष्ट्र हस्तिनापुर के दरबार में पहुंचे.
ज्योति मल्होत्रा जासूसी के सनसनीखेज मामले ने हुड़कचुल्लू एंकर एंकराओं को मनगढ़ंत कॉन्सपिरेसी थ्योरी फैलाने का मौका दे दिया. मीडिया की अनाप शनाप कवरेज को जांच की दिशा को भटकाने वाला कदम मानकर हिसार पुलिस ने एक प्रेस रिलीज जारी किया और मीडिया द्वारा फैलाई जा रही अफवाहों का एक एक कर खंडन किया.