हरियाणा स्थित अरावली में बनी ये सड़कें न केवल अवैध थीं बल्कि इनका निर्माण ही नियमों को धता बताने के लिए हुआ था.
नूंह जिले का बसई मेओ गांव. हरियाणा के इस गांव से पड़ोसी प्रदेश राजस्थान तक दो किलोमीटर से ज़्यादा की लम्बाई वाली दो कच्ची सड़कें हैं. लेकिन इन सड़कों का इस्तेमाल गांव वाले नहीं करते. इनका इस्तेमाल अरावली क्षेत्र से खनन के जरिए निकाले गए पत्थरों को ले जाने वाले ट्रकों के लिए होता है.
इनमें से एक सड़क, दक्षिण-पूर्व में छपरा की ओर जाती है. यह राजस्थान का एक ऐसा गांव है जो खनन पट्टों के लिए कुख्यात है. दूसरी, उत्तर-पूर्व में नांगल की ओर जाती है, जो राजस्थान में ही खनन का एक और केंद्र है. इसके अलावा इन सड़कों का इस्तेमाल चेकिंग नाकों से बचने के लिए भी किया जाता है. यह सड़कें इन नाकों को बाईपास करते हुए दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे से जुड़ती हैं.
लेकिन ये सड़कें रातों-रात तैयार नहीं हुईं.
सच्चाई तो ये है कि हरियाणा वन विभाग की आपत्तियों और ग्रामीणों के प्रतिरोध के बावजूद इन्हें जबरदस्ती अस्तित्व में लाया गया. जब न्यूज़लॉन्ड्री ने मौके पर जाकर देखा तो वन अधिकारियों ने पुष्टि की कि दोनों रास्ते पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम द्वारा शासित संरक्षित भूमि को काटते हुए संरक्षण कानूनों का उल्लंघन करते हैं. फिर भी, पिछले साल अक्टूबर में बसई मेओ में एक संवेदनशील भूमि चकबंदी प्रक्रिया के दौरान इन्हें बनाया गया और ये बिना किसी सार्वजनिक अधिसूचना, मुआवजे या कानूनी मंजूरी के हुआ.
दोनों सड़कें लगभग एक जैसे ढांचे पर बनी है: पहला किलोमीटर खेत से होकर गुजरता है; अगला हिस्सा वन भूमि से होकर गुजरता है. इस महीने अवैध खनन पर कार्रवाई के दौरान राजस्थान सरकार ने दोनों सड़कों को दो किलोमीटर तक अवरुद्ध कर दिया था, लेकिन जो पैच बचा है, वो अब भी ट्रकों के रोज़मर्रा आवागमन के लिए काफी है.
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