दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
धृतराष्ट्र गाढ़ी ठंडई सबेरे-सबेरे छक कर दरबार में आए थे. एक गायिका फगुआ गा रही थी. मोहब्बत में छूकर सजन मुझे फाग कर दो, लगाकर रंग गालों पर मुझे आबाद कर दो. भांग की पिनक में धृतराष्ट्र दोगुने उत्साह से वाह-वाह कर उठे. इसे देख दरबारी और संजय अवाक उनकी ओर ताकने लगे.
बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तब खुलासा हुआ कि उम्र और अनुभव के साथ डंकापति के शौक का दायरा भी बढ़ गया है. अब वो मगरमच्छ के बच्चे से आगे बढ़ गए हैं. अब वो शेर, बाघ, अजगर, बिच्छू और विषखोपड़ों से खेलने लगे हैं. यह सुनकर धृतराष्ट्र की जो प्रतिक्रिया थी उसके लिए आप यह टिप्पणी देखें. होली की शुभकामनाएं.