एमएसपी कमेटी: ढाई साल, 6 मीटिंग, 38 लाख खर्च लेकिन हासिल- जीरो

हालांकि, इसकी सब कमेटी की करीब 40 बैठकें आयोजित हो चुकी हैं. लेकिन मिनट्स ऑफ मीटिंग की जानकारी साझा न होने के चलते ये कहना मुश्किल है कि समाधान की दिशा में कितने कदम बढ़ाए गए हैं.

WrittenBy:बसंत कुमार
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पंजाब-हरियाणा बॉर्डर पर किसान बीते एक साल से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर कानून और अन्य मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं. आंदोलन के एक साल बीत जाने पर 22 फरवरी को केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इन किसान नेताओं से मुलाकात की.  जिसके बाद सिंह ने कहा, ‘‘अच्छी चर्चा’’ हुई. 

इस मीटिंग में एमएसपी को लेकर जुलाई, 2022 में बनी कमेटी और उसकी रिपोर्ट पर कोई चर्चा नहीं हुई. दरअसल, किसान संगठनों द्वारा इस कमेटी का शुरू में ही विरोध हुआ. उनका दावा है, ‘‘इस कमेटी का गठन आंदोलन को रोकना था न कि किसानों को एमएसपी की गारंटी का कानून देना.’’

नवंबर, 2021 में तीनों विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने एमएसपी की गारंटी को लेकर कमेटी बनाने की घोषणा की थी. इस घोषणा के आठ महीने बाद जुलाई, 2022 में कमेटी का गठन भी हुआ लेकिन 31 महीने (तक़रीबन ढाई साल) गुजर जाने के बाद भी कमेटी अपनी रिपोर्ट नहीं सौंप पाई है. 

न्यूज़लॉन्ड्री को सूचना के अधिकार (आरटीआई)  के तहत कृषि मंत्रालय से मिली जानकारी के मुताबिक, अब तक इस कमेटी पर 37 लाख 94 हजार 471 रुपये खर्च हुए हैं. यह पैसे किस मद में खर्च हुए हैं, इसकी जानकारी हमें नहीं दी गई.

ढाई साल, छह मीटिंग

5 मार्च को केंद्रीय कृषि और कल्याण मंत्रालय ने आरटीआई के जवाब में बताया कि कमेटी की अब तक छह मीटिंग हुई हैं. साथ ही बताया गया कि ‘सब-कमेटी’ की 39 मीटिंग्स हुई हैं. 

बता दें कि एमएसपी कमेटी के भीतर तीन सब-कमेटी हैं. एक एमएसपी को पारदर्शी और प्रभावी बनाने, दूसरी नैचुरल फार्मिंग और तीसरी क्रॉप डाइवर्सिटी के लिए बनी है. 

कमेटी के एक सदस्य और किसान नेता गुणवंत पाटिल ने बताया कि ज़्यादातर मीटिंग दिल्ली के पूसा संस्थान में होती है. पहले सब-कमेटी की मीटिंग बुलाई जाती है. इसमें जो सुझाव विशेषज्ञ और कमेटी मेंबर देते हैं उसके बाद कमेटी के सभी सदस्यों के साथ उन पर चर्चा होती है.’’

कमेटी के निर्माण के बाद से ही न्यूज़लॉन्ड्री इस पर रिपोर्ट कर रहा है. हमारे द्वारा आरटीआई से जुटाई गई जानकारी और राज्यसभा में सरकार के जवाब से पता चलता है कि जुलाई, 2023 तक मुख्य कमेटी की छह बैठक हुई थी और फरवरी 2025 तक भी बैठकों का यही आंकड़ा है यानी लगभग 20 महीने से कमेटी की बैठक नहीं हुई है.   

9 दिसंबर 2022 को राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में कृषि मंत्रालय की तरफ से मीटिंग्स की जानकारी देते हुए बताया गया कि समिति की बैठकें नियमित आधार पर आयोजित की जा रही हैं ताकि उसे सौंपे गए विषयों पर विचार-विमर्श किया जा सके.

राज्यसभा में ही 10 फरवरी 2023 को फिर से कमेटी की मीटिंग्स को लेकर सवाल किया गया तब मंत्रालय ने मुख्य कमेटी की बैठकों की जानकारी नहीं दी. वहीं सब-कमेटी की 9 मीटिंग्स बताई.

8 जुलाई 2023 को एकबार फिर राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में कृषि मंत्रालय ने बताया कि कमेटी की छह मीटिंग्स हुई हैं, वहीं सब-कमेटी की 26. 

22 दिसंबर 2023 न्यूज़लॉन्ड्री को आरटीआई के जवाब में मंत्रालय की तरफ से कमेटी की छह मीटिंग्स की जानकारी दी गई. हमें सब-कमेटी को लेकर कोई जानकारी नहीं दी गई.

26 जुलाई 2024 को राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में कृषि मंत्रालय ने जो सूचना दी उसके मुताबिक, मुख्य कमेटी की छह मीटिंग्स हुई है वहीं सब-कमेटी की 35. 

फरवरी 2025 में न्यूज़लॉन्ड्री ने आरटीआई के जरिए इस कमेटी की रिपोर्ट और मीटिंग को लेकर जानकारी मांगी तो बताया गया कि अब तक कमेटी की छह और सब-कमेटी ने 39 मीटिंग्स हुई हैं.

सरकारी जवाब से पता चलता है कि जुलाई 2023 से लेकर फरवरी 2025 तक कमेटी की कोई बैठक ही नहीं हुई है. जबकि सब-कमेटी की बैठक हो रही है. 

मंत्रालय के पास मीटिंग्स के मिनट्स नहीं 

न्यूज़लॉन्ड्री को फरवरी, 2025 में आरटीआई से जो जानकारी मिली वो हैरान करने वाली है. हमने एमएसपी कमेटी की अब तक हुई बैठकों के मिनट्स ऑफ मीटिंग ( किसी मीटिंग के आधिकारिक लिखित रिकॉर्ड)  मांगे तो मंत्रालय द्वारा बताया गया, ‘‘पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल की अध्यक्षता वाली समिति की बैठकों के विवरण सीपीआईओ के पास उपलब्ध नहीं हैं, क्योंकि उन्हें रिकॉर्ड नहीं किया गया था.’’

इससे पहले 16 जनवरी 2024 को कृषि मंत्रालय ने न्यूज़लॉन्ड्री के आरटीआई के जवाब में ‘मिनट्स ऑफ मीटिंग’ को लेकर जवाब नहीं दिया था.

एमएसपी को पारदर्शी और प्रभावी बनाने को लेकर जो मीटिंग्स चल रही हैं, उसमें कौन-कौन शामिल हुआ, इसको लेकर बार-बार सवाल पूछने पर भी मंत्रालय द्वारा जवाब नहीं दिया जाता है. 

कब आएगी रिपोर्ट? 

कमेटी के अहम सदस्यों में से एक बीजेपी के करीबी माने जाने वाले किसान नेता कृष्णवीर चौधरी भी हैं. न्यूज़लॉन्ड्री के सवाल पर वो कहते हैं, ‘‘हमसे सुझाव मांगा गया था जो हमने दे दिया है. अभी भी कभी-कभी मीटिंग के लिए बुलाया जाता है तो  चला जाता हूं. कमेटी की रिपोर्ट कब तक आएगी इसका जवाब संजय अग्रवाल ही दे सकते हैं.’’

रिपोर्ट में देरी को लेकर हमारे सवाल पर सिंह कहते हैं, ‘‘एमएसपी को लेकर कमेटी के सदस्य, केंद्रीय मंत्री और दूसरे अन्य अधिकारी एक राय नहीं बना पा रहे हैं. जैसे मेरी राय है कि किसानों को बाजार में उतरने दिया जाए. आढ़तियों की जो मोनोपोली हैस उसे खत्म किया जाए. मैं मज़बूत एमएसपी गारंटी कानून के पक्ष में हूं. जिसमें एमएसपी पर खरीद अनिवार्य होगी. वहीं कुछ सदस्य एमएसपी पर कम की खरीद पर भी सहमत हैं. वो ऐसे में सरकार द्वारा किसानों को भावांतर देने की बात करते हैं. सहमति नहीं बन पाने के कारण रिपोर्ट में देरी हो रही है.’’

महाराष्ट्र के रहने वाले एक दूसरे किसान नेता गुणवंत पाटिल कहते हैं, ‘‘रिपोर्ट कब तक आएगी इसका तो हमें भी पता नहीं है. अध्यक्ष ( संजय अग्रवाल ) ने बोला था कि इस महीने मीटिंग करके रिपोर्ट को अंतिम रूप रेखा दी जाएगी. लेकिन अभी तक अग्रवाल साहब जी की तरफ से मीटिंग के संदर्भ में कोई सूचना नहीं आई है. हमने अपनी तरफ से सुझाव दे दिए हैं.’’

संजय अग्रवाल से हमने कई बार बात करने की कोशिश की. उन्होंने पहले तो कहा कि वो यात्रा पर हैं. बाद में उन्होंने फोन उठाना और मैसेज का जवाब देना ही बंद कर दिया. ऐसे में हमने उन्हें कुछ सवाल भेजे हैं. अगर उनका कोई जवाब आता है तो उसे बाद में ख़बर में जोड़ दिया जाएगा.  

कमेटी के एक अहम सदस्य और ग्रामीण भारत के गैर-सरकारी संगठनों का परिसंघ के जनरल सचिव विनोद आनंद कमेटी की रिपोर्ट आने के सवाल पर कहते हैं, ‘‘कमेटी जब बनी थी तब रिपोर्ट देने की समय सीमा तय नहीं हुई थी. ऐसे में हम पर रिपोर्ट देने का कोई दबाव नहीं है. हम हर दृष्टिकोण से किसानों के बेहतरी के लिए रिपोर्ट बनाने पर काम कर रहे हैं. अभी हम रिपोर्ट के आखिरी चरण की तरफ बढ़ रहे थे तभी ट्रम्प और टेरिफ का विवाद आ गया. अब उसको भी देखना पड़ेगा क्योंकि खेती पर असर होगा. भले ही पांच साल लगे लेकिन हम एक मज़बूत और किसान हित की रिपोर्ट तैयार करके देंगे.’’

बता दें कि किसानों के बीच सबसे चर्चित एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय किसान आयोग ने दिसंबर 2004 से अक्टूबर 2006 के बीच पांच रिपोर्ट प्रस्तुत की थी. जिसे स्वामीनाथन कमेटी के नाम से जाना जाता है. 

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