अर्थशास्त्री और आईआईटी दिल्ली की प्रोफेसर रीतिका खेरा से उनकी किताब ‘रेवड़ी या हक़’ पर विस्तार से बातचीत.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकार द्वारा चलाई जा रही ‘मुफ्त’ की योजनाओं को ‘रेवड़ी कल्चर’ करार देते हुए इसे करदाता के पैसों की बर्बादी बताया. इसके बाद जनहित की योजनाओं को ‘रेवड़ी’ कहना शुरू हो गया. कुछ समय बाद, दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल एक जनसभा में ‘रेवड़ी’ लेकर पहुंचे.
जनहित के लिए चल रही योजनाएं रेवड़ी हैं या हक़, यह जानने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री ने अर्थशास्त्री और आईआईटी दिल्ली की प्रोफेसर रीतिका खेरा से बात की. खेरा की हाल ही में इसी विषय पर राजकमल प्रकाशन से किताब भी प्रकाशित हुई है.
हिंदी भाषा में प्रकाशित किताब ‘रेवड़ी या हक़- सामाजिक सुरक्षा पर एक नजरिया’ जनहित की योजनाओं का विश्लेषण और कुछ चिंताए जाहिर करती है. एक तरफ जहां जनहित की योजनाओं को रेवड़ी कहकर आलोचना की जा रही है. वहीं खेरा अपनी किताब में लिखती हैं, ‘‘रेवड़ी कहकर विरोध करना संविधान का विरोध है.’’
प्रधानमंत्री द्वारा रेवड़ी कहने पर आपकी प्रतिक्रिया क्या थी? इस पर खेरा कहती हैं, हिंदी में यह शब्द अब आया है लेकिन अंग्रेजी में फ्रीबीज़, हैंडआउट्स डॉल्स. जैसे शब्दों के जरिए योजनाओं का मज़ाक लंबे समय से बनाया जा रहा है. जबकि सरकार की यह जिम्मेदारी है. मेरी यह किताब उन सरकारी योजनाओं को लेकर है जो लोगों को जन्म से लेकर मृत्यु तक सहयोग करती हैं. किन राज्यों में इन योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन किया गया और कहां दिक्क्त आ रही है. योजनाओं से लोगों पर क्या असर हुआ. यह किताब इसपर विस्तार से बात करती है.’’
खेरा अपनी किताब में आर्थिक असमानता का जिक्र करती हैं. इसी बीच वो अति लोकप्रिय गुजरात मॉडल को लेकर कहती हैं कि कई मायनों में गुजरात की स्थिति बिहार के जैसी ही है. खासकर सामाजिक सुरक्षा के मामलों पर.
इसके अलावा भी प्रोफेसर खेरा से आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा के मुद्दों पर विस्तार से बात हुई. देखिए पूरी बातचीत-
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