संभल में एक हजार से ज्यादा लोगों के पलायन की खबर में कोई सच्चाई नज़र नहीं आई.
संभल के कोटगर्वी मोहल्ले में हम काफी देर से एक घर की खोज कर रहे थे. इस घर की तस्वीर देश के बड़े अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स ने प्रकाशित की थी. तस्वीर के साथ हिंदुस्तान टाइम्स ने कैप्शन में लिखा था- ‘उत्तर प्रदेश के संभल जिले के कोटगर्वी इलाके में बंद घरों में से एक’. यानी वो घर जिसके मालिक अब घर छोड़कर पलायन कर गए हैं. हिंदुस्तान टाइम्स की इस खबर की तस्दीक करने हम काफी देर तक संभल की शाही मस्जिद वाले इलाके की खाक छानते रहे.
आखिरकार हमें वो घर दिख गया. ये घर मोहल्ला कोटगर्वी में ही था. शाही जामा मस्जिद के पीछे हिस्से की एक गली में. घर के बाहर हमारी मुलाकात एक युवा शाहरुख से हुई. हमें घर का मिलान करते देख शाहरुख खुद बोल पड़े, “क्या बात है, यह हमारा घर है.” फिर हम अखबार में छपी उनके घर की तस्वीर दिखाते हैं. इस पर शाहरुख हैरान होकर कहते हैं, “यह तो हमारा ही घर है. ये खबर कब छपी? हमें तो इसके बारे में कुछ पता ही नहीं है.”
फिर हमने शाहरुख को विस्तार से समझाया कि अखबार में उनके घर की फोटो के हवाले से ख़बर छपी है कि वो लोग घर छोड़कर पलायन कर गए हैं. घरों पर ताला बंद है. यह सुनकर शाहरुख कहते हैं, "कभी कभार हम कहीं बाहर जाते हैं तब घर पर ताला लगा जाते हैं. बाकी समय तो हम यहीं रहते हैं. हमें किस बात का डर है जो हम ताला लगाकर यहां से जाएंगे."
शाहरुख के परिवार में उनके अलावा दो बहने हैं. उनके माता-पिता की मृत्यु हो चुकी है. वे कहते हैं, "घर में दो बहने हैं. इसलिए जब कहीं जाते हैं तो घर का ताला लगाकर जाते हैं. हम एक जमाने से यहां रह रहे हैं, हम छोड़कर कहां जाएंगे. यह सरासर गलत बात है. मेरे घर के बाहर कैमरे भी लगे हैं, आप उन्हें देख लीजिए."
उत्तर प्रदेश के संभल जिले में बीते साल 24 नवंबर को शाही जामा मस्जिद में हुए सर्वे के दौरान हुई हिंसा के बाद से तनाव की स्थिति बनी हुई है. हाल ही में एआईएमआईएम के नेता और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने एक्स पर एक पोस्ट की.
इसमें उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस अखबार की एक खबर को रीट्वीट करते हुए लिखा कि संभल में इतना डर और जुल्म का माहौल बना दिया गया है कि लोग अपना घर छोड़ने पर मजबूर हो रहे हैं.
Independent journalism is not possible until you pitch in. We have seen what happens in ad-funded models: Journalism takes a backseat and gets sacrificed at the altar of clicks and TRPs.
Stories like these cost perseverance, time, and resources. Subscribe now to power our journalism.
₹ 500
Monthly₹ 4999
AnnualAlready a subscriber? Login