कांग्रेस घर-घर जाकर प्रचार करने के सहारे है, वहीं भाजपा केजरीवाल को उनके ही इलाके में हराने के लिए मतदाताओं के विभिन्न वर्गों तक पहुंच बनाने पर ध्यान दे रही है.
नई दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र, जहां देश के कई शीर्ष राजनीतिक नेता, नौकरशाह, न्यायाधीश और उद्योगपति बसते हैं, हमेशा से एक हाई-प्रोफाइल इलाका रहा है. लेकिन इस बार यहां से मुकाबला और भी बड़ा हो चला है क्योंकि यहां एक पूर्व मुख्यमंत्री, दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटों के खिलाफ़ मैदान में है.
आम आदमी पार्टी के प्रमुख और तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके अरविंद केजरीवाल को हराने के लिए कांग्रेस ने दो बार के सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को मैदान में उतारा है. जबकि भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे एवं पूर्व सांसद प्रवेश साहिब सिंह वर्मा को मैदान में उतारा है.
जन-जीवन के मुद्दे, बुनियादी ढांचों की समस्याएं और भ्रष्टाचार इस घमासान राजनीतिक लड़ाई में प्रमुखता से शामिल हैं. जहां भाजपा ने आप पर “गरीबों को धोखा देने” और “मुख्यमंत्री के लिए एक आलीशान महल” के पुनर्निर्माण करने का आरोप लगाया है, वहीं आप ने भगवा पार्टी पर राज्य सरकार को काम नहीं करने देने का आरोप लगाया है. कांग्रेस ने आप और भाजपा दोनों पर झूठे वादे करने का आरोप लगाया है.
लेकिन नई दिल्ली में यह त्रिकोणीय लड़ाई चल कैसे रही है?
संदीप दीक्षित का घर-घर प्रचार
“मैं संदीप दीक्षित हूं. मैं कांग्रेस का उम्मीदवार हूं. मैं आपका और आपके परिवार का वोट मांगने आया हूं,” कांग्रेस नेता ने नई दिल्ली के गोल मार्केट इलाके में हर घर में जाकर अपना एक पेज का बायोडाटा लोगों को देते हुए अपना परिचय दिया. इस दौरान न्यूज़लॉन्ड्री कुछ घंटों के लिए दीक्षित के इस डोर-टू-डर प्रचार का गवाह बना.
नई दिल्ली में ज्यादातर सरकारी कर्मचारी और उनके परिवार रहते हैं. प्रचार के दौरान यहां रहने वाले कई लोग पहले तो उन्हें पहचान नहीं पाए, जिस वजह से उनके समर्थकों को आगे आना पड़ा. जब एक कांग्रेस कार्यकर्ता ने स्थानीय महिला के कान में चुपके से कहा कि उसके घर पर खड़ा आदमी एक पूर्व सीएम का बेटा है, तो उसकी आंखें चमक उठीं.
दीक्षित ने उसे जो पर्चा दिया उसमें दीक्षित के शैक्षणिक रिकॉर्ड और एक सांसद के रूप में उनके कामों को दर्शाया गया था. इसमें सांसद के रूप में उनके द्वारा "140 परिवर्तनकारी" इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में योगदान का दावा किया गया. 2014 में भाजपा के महेश गिरी से हारने से पहले दीक्षित लगातार दो बार पूर्वी दिल्ली के सांसद चुने गए थे.
लेकिन नई दिल्ली उनके लिए एक अनजान क्षेत्र है.
साल 2013 में शीला दीक्षित को हराने के बाद केजरीवाल लगातार तीन बार नई दिल्ली से जीतकर सत्ता में आए हैं. 2015 में केजरीवाल ने भाजपा की नूपुर शर्मा को 31,000 से अधिक मतों से हराया था. 2020 में भाजपा के सुनील कुमार यादव पर उनकी जीत का अंतर घटकर 21,650 वोट रह जाने के बावजूद, उन्होंने 61 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल किए.
एक अपरिचित चेहरा होने की भरपाई करने के लिए, क्षेत्र में कांग्रेस के नए उम्मीदवार ने हर इलाके में प्रचार करने और नई दिल्ली के हर कोने को कवर करने की योजना बनाई है. 1 जनवरी को उनका डोर-टू-डोर अभियान शुरू हुआ. उनके कुछ साथियों, जिनमें से ज्यादातर पुराने कांग्रेसी थे, के लिए दीक्षित के साथ कदम मिला पाना मुश्किल हो गया क्योंकि वे वोट मांगने के लिए बहुमंजिला इमारतों में इधर-उधर दौड़ रहे थे.
लेकिन जब उनकी तुलना उनकी मां और तीन बार दिल्ली की सीएम रहीं शीला दीक्षित से की जाती है, तो उनके समर्थकों का मानना है कि संदीप उतने मिलनसार नहीं हैं जितनी वे थीं. उनमें मतदाताओं के साथ गहरे संबंध बनाने का कौशल नहीं है. 2008 में परिसीमन के बाद इसके नई दिल्ली विधानसभा सीट बनने तक लगातार 15 साल शीला दीक्षित ने इस सीट पर जीत हासिल की. इससे पहले यह गोल मार्किट के नाम से जानी जाती थी. जहां 1998 और 2003 में शीला दीक्षित लगातार दो बार जीत हासिल कर चुकी थीं.
एक कांग्रेस कार्यकर्ता ने दावा किया, "वह लोगों के साथ फर्श पर बैठती थीं और किसी के साथ भी खाना खा सकती थीं. जब बात उनके बेटे की आती है, तो ऐसे हाव-भाव गायब हो जाते हैं."
संदीप दीक्षित के पर्चे में कई तरह के सम्मानों और उपलब्धियों का ज़िक्र किया गया है, लेकिन शीला दीक्षित की विरासत ही उनके बेटे के अभियान पर हावी है. कांग्रेस कार्यकर्ता भी, जहां उनका बेटा जाता है, हर उस इलाके में उनका संबंध बताना नहीं भूलते हैं.
वरिष्ठ कांग्रेस कार्यकर्ता और सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी विजय पाल सिंह ने कहा, "यह जिम शीला जी ने बनवाया था." कुछ क्षण बाद, उन्होंने सुनने वाले सभी लोगों को बताया, "ये अपार्टमेंट शीला जी ने आवंटित किए थे."
यह पहली बार है जब दीक्षित का सीधा मुकाबला केजरीवाल से है, जो पहली बार 2013 में उनकी मां को हराकर सत्ता में आए थे. हालांकि, दीक्षित का केजरीवाल से रिश्ता उस समय से है, जब उन्होंने राजनीति में कदम भी नहीं रखा था.
संदीप दीक्षित ने एक पॉडकास्ट में कहा कि 2006 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार जीतने के बाद, सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय द्वारा दोनों का परिचय कराए जाने के बाद, केजरीवाल "एक सांसद के कामकाज" को समझने के लिए दीक्षित के सांसद कार्यालय आए थे. उन्होंने यह भी कहा कि वह केजरीवाल के इस अपरंपरागत सुझाव से हैरान थे कि उन्हें खुद को कार्यालय तक सीमित नहीं रखना चाहिए.
2012 में, कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भी दावा किया था कि केजरीवाल “2005 या 2006” में उनके पास आए थे और तत्कालीन राष्ट्रीय सलाहकार परिषद में शामिल होने के लिए पैरवी की थी, जिसमें कार्यकर्ता और अन्य लोग शामिल थे और जो यूपीए कार्यकाल के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को नीतिगत मुद्दों पर सलाह देते थे. लेकिन जाहिर तौर पर अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उन्हें प्रवेश देने से मना कर दिया था. तब केजरीवाल ने दिग्विजय के दावे को “झूठा” करार दिया था.
जानकारों का मानना है कि कांग्रेस के पास संगठनात्मक ताकत की कमी है, लेकिन संदीप दीक्षित जो भी लाभ हासिल करेंगे, वह केजरीवाल की कीमत पर होगा. न्यूज़18 इंडिया के साथ एक साक्षात्कार में दीक्षित ने खुद माना कि AAP और कांग्रेस का वोटर बेस एक ही है.
वर्मा का समुदायों पर ध्यान
जब दीक्षित और उनके समर्थक कांग्रेस और यूपीए कार्यकाल के दौरान की गई प्रगति को गिना रहे थे, तब कुछ ही किलोमीटर दूर उनके प्रतिद्वंद्वी और पूर्व भाजपा सांसद 47 वर्षीय प्रवेश वर्मा ने युवा दलित मतदाताओं के साथ विचार-विमर्श सत्र आयोजित किया.
वर्मा ने समूह के साथ चुनावी अभियान की रणनीतियों पर चर्चा की और नौकरियों न होने से लेकर सफाई की समस्याओं तक के उनके मुद्दों को संबोधित करने का वादा किया. उनमें से कुछ लोग उस समूह का हिस्सा थे, जिसने कुछ दिन पहले नई दिल्ली के लेडी हार्डिंग अस्पताल के आसपास प्रचार कर रहे आम आदमी पार्टी कार्यकर्ताओं को काले झंडे दिखाए थे.
सत्र से पहले, वर्मा को अन्य पिछड़ा वर्ग की केंद्रीय सूची में जाटों को शामिल करने की केजरीवाल की मांग का जवाब देने के लिए दिल्ली भाजपा कार्यालय जाना पड़ा. अपने जवाब में, वर्मा- जो खुद एक जाट हैं, ने केजरीवाल पर जाति के आधार पर दिल्ली को बांटने का आरोप लगाया.
20, विंडसर पैलेस, जो उनके छह महीने से संसद न रहने के बाद भी वर्मा का “आधिकारिक निवास” है, उनके समुदाय के साथी ही उनकी टीम का बड़ा हिस्सा हैं. उनके लिए प्रचार करने वाले ज्यादातर पार्टी कार्यकर्ता और समर्थक नई दिल्ली से नहीं हैं. पश्चिमी दिल्ली, जिसका प्रतिनिधित्व वर्मा ने 2014 से 2024 तक लोकसभा में किया, में जाटों के अलावा पंजाबी और पूर्वांचलियों जैसे अन्य समुदायों का वर्चस्व है.
लेकिन नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में जाति या समुदाय की रेखाएं कम दिखती हैं, जहां वर्मा भी नए ही हैं.
वर्मा की टीम मानती है कि चुनावों में जीत सुनिश्चित करने के लिए दलित मतदाता महत्वपूर्ण हैं. उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं का अनुमान है कि नई दिल्ली विधानसभा में एक लाख मतदाताओं में से लगभग एक तिहाई दलित समुदाय से हैं, जिसमें वाल्मीकि समुदाय का वर्चस्व है, जिनकी संख्या राजनीतिक दलों ने 20,000 से 25,000 के बीच बताई है. कुल मिलाकर नई दिल्ली में कुल मतदाताओं में से 70 प्रतिशत सरकारी कर्मचारी हैं.
हालांकि, वे अभी तक प्रचार के लिए सड़क पर नहीं उतरे हैं, लेकिन वर्मा अपने आवास पर विभिन्न समुदायों के मतदाताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें कर रहे हैं. उनकी टीम के एक सदस्य ने कहा, “एक बार सभी उम्मीदवारों की घोषणा हो जाने के बाद, हम अपना अभियान शुरू करेंगे.”
उनकी टीम जो पर्चे बांट रही है, उनमें सांसद के तौर पर वर्मा की "38 उपलब्धियां" गिनाई गई हैं, जिनमें कई बुनियादी ढांचों की परियोजनाएं और महामारी के दौरान दी गई सहायता शामिल हैं. महामारी के दौरान पूर्व सांसद द्वारा की गई सेवाओं में से एक "गोल्फ कोर्स" भी था.
अपने समर्थकों के लिए, दीक्षित की तरह वर्मा के अंदर भी अपने पिता जैसा मिलनसार व्यवहार नहीं है, जिससे लोगों का दिल जीतना और वोट जीतना आसान हो जाता था. एक भाजपा कार्यकर्ता ने कहा, "अगर साहिब सिंह को जनपथ से नजफगढ़ जाना होता, तो यह तय था कि वह समय पर नहीं पहुंच पाते क्योंकि वह लोगों का अभिवादन करने के लिए 20 से अधिक जगहों पर रुकते. परवेश सीधे नजफगढ़ जाएंगे."
अगर वर्मा केजरीवाल को हराने में सफल होते हैं और दिल्ली में भाजपा विजयी होती है, तो कई समर्थकों का मानना है कि वे दिल्ली के अगले सीएम हो सकते हैं और अपने पिता की विरासत को दोहरा सकते हैं. एक अन्य भाजपा कार्यकर्ता ने कहा, "उन्होंने (नई दिल्ली) सीट मांगी और जानते थे कि उन्हें यह मिलेगी. कागजों पर यह सांसद के लिए एक पायदान नीचे लग सकता है, लेकिन क्या होगा अगर प्रवेश एक बड़ी हस्ती को चुनाव हरा दे? ऐसे में वे संभावित सीएम उम्मीदवार हो सकते हैं.”
हालांकि, वर्मा ने सीएम बनने की किसी भी महत्वाकांक्षा से इनकार करते हुए कहा कि उनका एकमात्र लक्ष्य केजरीवाल को हराना है.
इस बीच, केजरीवाल ने वर्मा पर आचार संहिता का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है और पैसे बांटने का आरोप लगाते हुए उन्हें अयोग्य ठहराने की मांग की है.
इंडिया टीवी को दिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने राष्ट्रीय स्वाभिमान संस्थान का जिक्र करते हुए कहा, “पैसे मेरे संगठन के खातों से दिए गए थे.” यह एक ऐसा संगठन है जिसकी स्थापना उनके पिता ने 1988 में “बेहतरीन शैक्षणिक, चिकित्सा, बुनियादी ढांचागत सुविधाएं प्रदान करके भारतीय ग्रामीण क्षेत्र को सशक्त बनाने” के मिशन के साथ की थी.
वर्मा ने इंडिया टीवी से कहा कि “अगर चुनाव आयोग द्वारा सवाल पूछे जाते हैं, तो मैं उन्हें अपनी संस्था के खाते दिखा सकता हूं.” उन्होंने वितरित किए गए पैसे को “माताओं और बहनों के लिए मासिक पेंशन” भी कहा.
दिल्ली में आदर्श आचार संहिता लागू होने के दो दिन बाद, नई दिल्ली और अन्य निर्वाचन क्षेत्रों के मतदाता “पेंशन” का अपना हिस्सा पाने की उम्मीद में वर्मा के घर के बाहर खड़े थे.
मटियाला से 1,100 रुपये लेने आए एक युवक ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "मुझे बताया गया है कि यह योजना बंद कर दी गई है और यह केवल नई दिल्ली के मतदाताओं के लिए थी."
पहचान न बताने की शर्त पर कम से कम तीन महिलाओं ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उन्हें "पेंशन राशि" दिए जाने के बाद शपथ दिलाई गई कि वे विधानसभा चुनावों में भाजपा को वोट देंगी.
केजरीवाल ने वर्मा पर वोट पाने के लिए 15 जनवरी को होने वाले जॉब फेयर का आयोजन करने का भी आरोप लगाया था. खुद का बचाव करते हुए वर्मा ने इंडिया टीवी से कहा कि यह मेला वोट मांगने के लिए नहीं था और इसका उद्देश्य केवल "50 निजी कंपनियों" में नौकरी प्रदान करना था. जबकि एक पैम्फलेट में कहा गया था कि जॉब फेयर के लिए पंजीकरण 10 से अधिक स्थानों पर होगा, जिला चुनाव अधिकारी ने रिटर्निंग अधिकारी को निर्देश जारी किए कि वे सुनिश्चित करें कि इस तरह के पंजीकरण की अनुमति न दी जाए.
जैसे-जैसे त्रिकोणीय लड़ाई जारी है, नई दिल्ली में स्थानीय लोग अभी भी इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि किसे वोट दें.
गोल मार्केट निवासी और घरेलू कामगार ममता ने इस रिपोर्टर से कहा, "शीला जी ने इस इलाके में अवैध बिजली कनेक्शन इस्तेमाल करने की अनुमति दी. कांग्रेस के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए, केवल यही पार्टी दिल्ली और भारत से गरीबी हटा सकती है. लेकिन केजरीवाल ने भी अच्छा काम किया है. उन्होंने यहां पक्के शौचालय बनवाए और सीवेज सिस्टम को दुरुस्त किया. उन्होंने बिजली कंपनियों को यहां मीटर लगाने की भी अनुमति नहीं दी."
मूल रूप से अंग्रेजी में प्रकाशित ख़बर को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
दिल्ली चुनाव से संबंधित हमारे सेना प्रोजेक्ट में योगदान देने के लिए यहां क्लिक करें.