दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
हफ्ता घने कुहरे और शीतलहर की चपेट में गुजर रहा था. हस्तिनापुर में चुनावी सरगर्मियां थीं. डंकापति पुरानी रंगत में लौट आए थे. छोटे नवाब और राजकुंवर भी ज़ोर आजमाइश कर रहे थे. हस्तिनापुर की जनता इस खेल का पूरा मजा ले रही थी.
इसके अलावा इस टिप्पणी में हम मौखिक अतिसार से पीड़ित दो महा “जनों” की बात करेंगे. दोनों कथावाचक हैं और दोनों इस खामख्याली में जीते हैं कि दुनिया उनके कहने-सुनने से चलती है. एक हैं कुकवि कुमार विश्वास जो घाट-घाट पर चाट कर अब दक्षिणायन होने की बेचैनी में हैं.
दूसरे फुलटाइम कथावाचक हैं. इनकी जुबान आपराधिक रूप से इसकी योग्यता से कई गुना ज्यादा लंबी है. हम अनिरुद्धाचार्य के बारे में इस टिप्पणी में विशेष बातचीत करेंगे.