अवध ओझा का प्रायोजित इंटरव्यू और वामपंथी संबित पात्रा के बीच अमित मालवीय के करतब

दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.

WrittenBy:अतुल चौरसिया
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संबित पात्रा पिछले जन्म में शायद कॉमरेड श्रीपाद अमृत डांगे हुआ करते थे. मेरे ऐसा कहने की कुछ वाजिब वजहें हैं. अमेरिका की पूंजीवादी नीतियों और आर्थिक दबंगई के खिलाफ कम्युनिस्टों से ज्यादा विरोध किसी ने नहीं किया. विद्वानों की राय है कि कई बरसों के बाद किसी ने अमेरिका को इस कदर नहीं गरियाया है जैसे भाजपाई संबित पात्रा ने अमेरिका को गरियाया है.

दूसरी खबर आम आदमी पार्टी से है. कांग्रेस पार्टी डेढ़ सौ सालों में जहां तक पहुंची है, भाजपा चालीस सालों में जहां तक पहुंची है, आम आदमी पार्टी वहां दस बारह सालों में पहुंच गई है. ये अपने नेताओं का थोक के भाव इंटरव्यू प्रायोजित करती है. ऐसा लगता है कि अब इंटरव्यू की परिभाषा बदल गई है. ज्यादातर इंटरव्यू तयशुदा हो गए हैं. बिल्कुल उसी तरह जैसे मौके दर मौके मोदीजी के थोक के भाव आने वाले इंटरव्यूज़ पर स्क्रिप्टेड होने का आरोप लगता है.

बिल्कुल उसी तर्ज पर हाल ही में शिक्षक से नेता बने अवध ओझा का थोक के भाव इंटरव्यू आम आदमी पार्टी ने प्रायोजित किया. बीबीसी के साथ ऐसे ही एक इंटरव्यू के दौरान आखिर क्यों आप कार्यकर्ता ने मूर्खता की अति करते हुए इंटरव्यू रुकवा दिया. और कैसे अवध ओझा ने राजनीति की पहली परीक्षा में ही घुटने टेक दिए. यह सब जानने के लिए आपको ये टिप्पणी देखनी पड़ेगी.

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