अवैध वाहन, बिचौलिए और पुलिस: दिल्ली का ट्रैफिक किसी संगठित अपराध से कम नहीं

क्या आपने कभी सोचा है कि ट्रैफिक नियमों को ताक पर रखकर ट्रैक्टर, ऑटो और बड़ी संख्या में सवारी गाड़ियां दिल्ली की सड़कों पर कैसे चल पाती हैं? इसके लिए कौन लोग जिम्मेदार हैं?

WrittenBy:अवधेश कुमार
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करीब 2 लाख निगरानी के कैमरे, 350 स्वचालित नंबर प्लेट की पहचान करने वाले कैमरे और 500 से ज़्यादा चेकपॉइंट ट्रैफिक पुलिस द्वारा चलाए जाते हैं. लेकिन फिर भी दिल्ली में हर दिन ट्रैफिक जाम की समस्या होती है, जिसका एक कारण अवैध वाहनों का चलना भी है.

लेकिन यह समस्या जैसी दिखती है उससे कहीं ज़्यादा गहरी है. न्यूज़लॉन्ड्री ने शहर के 50 ट्रैफिक सर्किलों में से एक पर एक महीने तक की गई जांच में ये देखा कि दरअसल, एक संगठित गिरोह ने अवैध यातायात पर पूरी तरह से नियंत्रण कर रखा है, जिसमें दो अहम तत्वों - तफ्तीशी और मार्का सिंडिकेट की मदद ली जाती है.

लेकिन इस गिरोह के कुछ लोगों ने हमें बताया कि यह एक ऐसी व्यवस्था है जो दशकों से चली आ रही है.

‘मैं सबको खुश रखता हूं’

यह महज संयोग था कि जब हम हम उत्तर-पूर्वी दिल्ली के नंद नगरी इलाके में गगन चौक पर जितेंद्र से बात कर रहे थे, जो अपनी आजीविका के लिए ट्रैक्टर चलाता है, तभी एक व्यक्ति स्कूटर पर आया. काफी मनाने के बाद जितेंद्र हमसे कैमरे पर बात करने के लिए राज़ी हुआ था, और उसने हमें दिल्ली की सड़कों पर अवैध वाहनों को खुलेआम चलने की मंज़ूरी देने के लिए दी जाने वाली पेमेंट के बारे में बताया.

लेकिन जैसे ही उसने उस दूसरे व्यक्ति को ट्रैक्टर के सामने अपना स्कूटर खड़ा करते देखा, तो जितेंद्र ने हमसे रिकॉर्डिंग बंद करने को कहा. उसने कहा, “वह अजय त्यागी है,” और हमें उसे जाने देने के लिए कहा, वह बहुत असहज लग रहा था. उसने हमसे कहा, “आज चीजें बहुत गड़बड़ा गई हैं”.

इस बीच, अजय त्यागी ने मुझे आवाज़ लगाई. उसने कहा, “नीचे आओ, भाई. यह सब क्यों कर रहे हो?” जाहिर है वो जानता था कि हम पत्रकार हैं. “तुम लोगों को आने के लिए सिर्फ मेरा इलाका ही मिला? कहीं और भी जा सकते थे.”

वह हंसा और हमें अपने साथ खाने के लिए बुलाया.  उसने कहा, “देखो, भाई, मैं सबको खुश रखता हूं. पूरे नंद नगरी सर्किल में मेरे पास इकलौता ऐसा पॉइंट है जहां आपको कोई पुलिस वाला नहीं दिखेगा. क्योंकि मैं उन्हें इतना खुश रखता हूं कि उन्हें यहां आने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती.”

त्यागी एक तफ़्तीशी है, एक बिचौलिया जो ट्रैक्टर चालकों से पैसे लेता है, और सुनिश्चित करता है कि वे पुलिस की किसी भी तरह की दख़लंदाज़ी के बिना रुट पर चल सकें. इसके लिए कानूनी शब्द जबरन वसूली है, और इसके लिए भारतीय न्याय संहिता की धारा 308 के तहत 2 से 7 साल की कैद या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है.

तफ़्तीशी जैसे बिचौलियों ने दिल्ली शहर को आपस में बांट लिया है. उन्हें पैसे देने वालों का कहना है कि ये बिचौलिए दिल्ली पुलिस और राजधानी में चल रहे (अक्सर अवैध रूप से) कमर्शियल वाहनों के चालकों के बीच एक कड़ी की तरह काम करते हैं.

त्यागी का इलाका ताहिरपुर पॉइंट है. हर महीने जितेंद्र, त्यागी और दो अन्य तफ़्तीशियों को ये पक्का करने के लिए 2,000-2,000 रुपये का भुगतान करता है कि वो ट्रैफिक पुलिस की रोक-टोक के बिना दिल्ली में अपना ट्रैक्टर चला सके. जितेंद्र ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "मैं तफ्तीशियों को हर महीने 6,000 रुपए देता हूं ताकि मैं ट्रैक्टर को तीनों जगहों पर चला सकूं. अगर आप पैसे नहीं देंगे तो आप गाड़ी नहीं चला पाएंगे और ट्रैक्टर भी बंद हो जाएगा."

ट्रैक्टर चालक जितेंद्र से बात करते रिपोर्टर अवधेश कुमार.

व्यवस्थित यातायात के लिए संगठित अपराध

टॉमटॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में दिल्ली दुनिया के सबसे ज्यादा घिचपिच ट्रैफिक वाले शहरों में से एक था, और सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट ने अनुमान लगाया है कि हर रोज़ राजधानी की सड़कों पर 70 लाख वाहन चलते हैं.

अवैध वाहनों की मौजूदगी इस समस्या को और भी गंभीर बना देती है, जिसकी तरफ से दिल्ली पुलिस आंखें मूंद लेती है. वाहनों को कई कारणों से अवैध माना जाता है, जिसमें ज़रूरी परमिट न होने से लेकर यात्रियों की संख्या को लेकर नियमों का उल्लंघन करना शामिल है. इन वाहनों को चलाने वाले आम तौर पर पिछड़े तबके के लोग होते हैं, जिनके पास अलग-अलग वजहों से तफ्तीशियों द्वारा की जाने वाली मांगों को मानने के अलावा कोई चारा नहीं होता. जितेंद्र जैसे ड्राइवरों का आरोप है कि पुलिस इन जबरन वसूली करने वालों के साथ मिली हुई है, जो ड्राइवरों को शहर भर में अपने वाहनों को स्वतंत्र रूप से चलाने के बदले में पैसे देने के लिए मजबूर करते हैं.

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