‘लंबे समय से भोजपुरी में काम करने की इच्छा थी, मां की मौत के बाद घर में भोजपुरी का माहौल एकदम गायब हो गया था.’
यूट्यूब पर इन दिनों भोजपुरी रैप ‘बंबई में का बा’ की धूम है. भोजपुरी जिसे पुरबिया मीठी बोली के रूप में लोग जानते-सुनते रहे हैं उसे इस गीत ने एक नए पड़ाव पर पहुंचा दिया है. यह अपेक्षाकृत आक्रामक और प्रतिरोध की भाषा है. भिखारी ठाकुर के बिदेसिया गीतों में जो भोजपुरी अपनी पीड़ा और परदेस को भावुकता, विरह के रस में परोसती थी उसे अनुभव सिन्हा और मनोज वाजपेयी की जोड़ी ने आक्रामक रैप की जुबान दी है. यह तीखी है, एसर्टिव है.
अनुभव सिन्हा से बातचीत में तमाम बातों के साथ जो अहम ट्रिगर प्वाइंट सामने आया वह था हाल के दिनों में भोजपुरी की पहचान उसके फूहड़, अश्लील गानों से पैदा हुई कोफ्त और साथ में पलायन का दर्द. पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार का यह हिस्सा ऐतिहासिक रूप से पलायन के लिए अभिशप्त रहा है. त्रिनिडाड-टोबैगो, मॉरिशस, सूरीनाम से लेकर फिजी तक सैंकड़ों सालों से इस इलाके के लोग पलायन करते आ रहे हैं. दिल्ली, मुंबई, कोलकाता उस पलायन के नए पड़ाव भर है. लेकिन इस इलाके का पलायन रुक नहीं रहा है. इन तमाम मुद्दों से मुठभेड़ है इस खूबसूरत रैप गीत के बोल.
मनोज वाजपेयी की अवाज़, अभिनय, डॉ. सागर के लिखे भोजपुरी बोल, इसके अलावा अनुभव के कई पुराने सहयोगियों ने अलग-अलग भूमिकाओं में इस गीत को जमीन पर उतारने में अपनी भूमिका अदा की है. इस लिहाज से यह रैप सॉन्ग आपको एक क्षेत्र विशेष (भोजपुरी) का भ्रम भले ही पैदा करे लेकिन इसके निर्माण में आपको भारत दर्शन का अक्स मिलेगा. इसके अलावा भी अनुभव ने तमाम सामयिक विषयों पर अपनी राय साझा की है, जानने के लिए देखिए यह पूरा इंटरव्यू.
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