पत्रकारों की सुरक्षा के लिए 4 सिफारिशों वाली रिपोर्ट मंजूर, पीसीआई प्रमुख ने जताई थी आपत्ति

पीसीआई सदस्य गुरबीर सिंह द्वारा तैयार इस रिपोर्ट को 2 अगस्त को परिषद को भेजा गया था. पीसीआई प्रमुख रंजन प्रकाश देसाई ने 27 सितंबर को रिपोर्ट के कई बिंदुओं पर असहमति दर्ज की.

प्रतीकात्मक तस्वीर

भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) के एक सदस्य द्वारा पत्रकारों के लिए सुझाए गए कई उपायों वाली रिपोर्ट को परिषद की अध्यक्ष रंजन प्रकाश देसाई की कई आपत्तियों के बावजूद मंजूर कर लिया गया. देसाई ने कहा कि वह अपनी “असहमति” दर्ज कर रही हैं क्योंकि वह सभी टिप्पणियों और सिफारिशों से सहमत नहीं हैं.

बता दें कि “गिरफ्तारी, गलत हिरासत और मीडिया कर्मियों को धमकाने” पर आधारित “पत्रकारिता अपराध नहीं है” शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में केंद्र सरकार से पत्रकारों की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय कानून लागू करने, भारतीय प्रेस परिषद एक्ट को और मजबूत करने, कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए आचार संहिता और सभी स्तरों पर पत्रकारों द्वारा झेले जाने वाले मुद्दों की निगरानी की सिफारिश की गई है.

पीसीआई सदस्य गुरबीर सिंह द्वारा तैयार इस रिपोर्ट को 2 अगस्त को परिषद को भेजा गया था. देसाई ने 27 सितंबर को रिपोर्ट के कई बिंदुओं पर असहमति दर्ज की.

देसाई ने कहा कि अगर दंडात्मक उपाय किए जाने हैं, तो वे “गलत पत्रकारों” पर भी लागू होने चाहिए. साथ ही जांच एजेंसी को मामले की जांच करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए.

रिपोर्ट में पत्रकारों पर कथित हमलों और कानून के दुरुपयोग का उल्लेख करते हुए, इसे “एकतरफा” बताया गया और कहा गया कि “पूरा नोट भी सरकार को भेजा जाएगा ताकि 2015 से 2023 तक के 14 घटनाओं पर उसका दृष्टिकोण प्राप्त किया जा सके.”

रिपोर्टर्स सेंस फ्रंटियर्स (आरएसएफ) द्वारा प्रकाशित प्रेस फ्रीडम इंडेक्स और एनजीओ इंडिया फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन की वार्षिक रिपोर्ट के संदर्भ में, देसाई ने आरएसएफ इंडेक्स की पद्धति पर सवाल उठाए गए हैं. उन्होंने कहा कि प्रेस काउंसिल पहले भी इसके संबंध में फ्रेंच संस्था के समक्ष चिंताओं को उजागर कर चुकी है.

रिपोर्ट में क्या कहा गया था?

रिपोर्ट में कई कथित घटनाओं का उल्लेख है, जहां पत्रकारों पर उनके काम के लिए हमला किया गया या उन्हें गिरफ्तार किया गया. इसमें कहा गया कि “पार्टी लाइन से ऊपर उठते हुए मंत्री और सरकारी अधिकारियों को जब समाचारों से खतरा महसूस होता है तो प्रेसकर्मियों के खिलाफ हिंसक कार्रवाई करने के लिए एजेंसियों का दुरुपयोग करते हैं.”

रिपोर्ट में न्यूज़क्लिक मामले का जिक्र किया गया, जिसमें पिछले साल दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने 61 पत्रकारों सहित 86 लोगों के घरों पर छापेमारी की. त्रिपुरा सरकार द्वारा पत्रकारों पर 2021 के सांप्रदायिक दंगों के बाद यूएपीए के आरोप लगाए जाने का भी उल्लेख है.

रिपोर्ट के अनुसार, आरएसएफ की रैंकिंग में भारत की स्थिति 180 में से 159 पर है. इंडिया फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन की वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया कि 148 पत्रकारों को सरकारी और 78 को गैर-सरकारी तत्वों द्वारा निशाना बनाया गया. इस बीच 2015 में, स्वतंत्र पत्रकार जगेंद्र सिंह की हत्या “सपा मंत्री राममूर्ति वर्मा के इशारे पर की गई थी” जब उन्होंने अवैध रेत खनन और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता पर यौन उत्पीड़न का खुलासा किया.

अन्य मामलों में, रिपोर्ट में कहा गया है कि फ्रीलांस पत्रकार संदीप महाजन पर गुंडों ने हमला किया, जो एकनाथ शिंदे की शिवसेना के विधायक किशोर पाटिल से जुड़े थे. पत्रकार संजय राणा को उत्तर प्रदेश की राज्य शिक्षा मंत्री गुलाब देवी से चुनावी वादों के बारे में सवाल पूछने पर गिरफ्तार किया गया और अवैध रूप से हिरासत में रखा गया. मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेम को 2018 और 2021 के बीच तीन बार मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह के खिलाफ आलोचनात्मक टिप्पणियों के लिए गिरफ्तार किया गया था. वांगखेम पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया.

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नोट- इस रिपोर्ट को 29 अक्टूबर की शाम को अपडेट किया गया.

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