पीसीआई ने पत्रिका को जम्मू-कश्मीर में सेना द्वारा नागरिकों को प्रताड़ित किए जाने से संबंधित रिपोर्ट को लेकर ये नोटिस जारी किया है. केंद्र सरकार पहले ही इस रिपोर्ट को वेबसाइट से हटवा चुकी है.
प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने द कारवां पत्रिका को उसकी एक रिपोर्ट के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया है. यह रिपोर्ट जम्मू-कश्मीर के पुंछ इलाके में सेना द्वारा आम नागरिकों को प्रताड़ित किए जाने और उनकी हत्या किए जाने को लेकर थी.
गौरतलब है कि इस रिपोर्ट को केंद्र सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के आदेश पर इंटरनेट से हटा दिया गया है. अब इस रिपोर्ट पर प्रेस काउंसिल ने भी कदम उठाया है.
प्रेस काउंसिल की ये कार्रवाई सूचना मंत्रालय के इस रिपोर्ट को ‘भ्रामक एवं एक-तरफा’ करार दिए जाने के बाद आई है. काउंसिल ने रिपोर्ट के संबंध में द कारवां पत्रिका से सफाई मांगी है. साथ ही कहा है कि यह मामला उचित कार्रवाई के लिए काउंसिल की कमेटी के समक्ष रखा जाएगा.
जतिंदर कौर तूर की इस रिपोर्ट को ‘सेना की चौकी से चीखें’ नाम से प्रकाशित किया गया था. इस रिपोर्ट में राष्ट्रीय राइफल्स द्वारा जम्मू-कश्मीर के दो जिलों पुंछ और राजौरी में नागरिकों को प्रताड़ित किए जाने के विवरण शामिल थे.
रिपोर्ट के मुताबिक, "22 दिसंबर को राजौरी और पुंछ जिलों के कई गांवों से 25 लोगों को उठाया गया और उन्हें तीन अलग-अलग सैन्य चौकियों पर ले जाया गया, जहां उन्हें बुरी तरह प्रताड़ित किया गया. उनमें से तीन की मौत हो गई." रिपोर्ट में बताया गया है कि पीड़ित गुज्जर और बकरवाल समुदाय के थे, जिन्हें भाजपा लुभाने की कोशिश कर रही है.
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) की धारा 69ए के तहत मंत्रालय ने एक आदेश जारी किया. जिसमें कहा गया कि यदि इसका पालन नहीं किया गया तो पत्रिका की वेबसाइट ब्लॉक कर दी जाएगी. इशके बाद 1 मार्च को, द कारवां ने दिल्ली हाईकोर्ट में इस आदेश को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की. जिसमें कहा गया कि यह प्रेस की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. इसके तुरंत बाद, मंत्रालय ने पीसीआई के पास अपनी शिकायत दर्ज कराई. हालांकि, रिपोर्ट फिलहाल वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है.
पत्रिका द कारवां ने कहा कि मंत्रालय की शिकायत में ‘तथ्यों और पत्रकारिता की बुनियादी समझ का अभाव है.’
वहीं, पीसीआई के कारण बताओ नोटिस को लेकर पत्रिका ने कहा कि यह नोटिस प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करने के अपने ही वादे के साथ विश्वासघात है. पत्रिका ने कहा कि वह “पूरी तरह से इस रिपोर्ट के पक्ष में है.” यह “सावधानीपूर्वक रिपोर्टिंग पर आधारित है” और “हमारी संपादकीय और तथ्य-जांच प्रक्रियाओं की कठोरता से गुज़री है. साथ ही इसमें नैतिक पत्रकारिता के उन उच्च मानकों का पालन किया गया है, जिन्हें वे खुद भी मानते हैं.”