जस्टिस अतुल चंदूरकर ने कहा कि ये संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 का 'उल्लंघन' करते हैं.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को आईटी नियमों में 2023 के संशोधन को रद्द कर दिया है. ये संशोधन केंद्र सरकार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अपने बारे में प्रकाशित खबरों की "तथ्य-जांच" का अधिकार देता था.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस अतुल चंदूरकर ने कहा कि यह संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन करता है.
जस्टिस चंदूरकर को कोर्ट के टाई-ब्रेकर जस्टिस के रूप में नियुक्त किया गया था, जब जनवरी में इस मुद्दे पर जस्टिस गौतम पटेल और डॉ. नीला गोखले की खंडपीठ ने विभाजित फैसला सुनाया था.
जस्टिस पटेल ने संशोधनों को रद्द करने का प्रस्ताव रखा, जबकि जस्टिस गोखले ने उन्हें बरकरार रखा. बाद में जस्टिस पटेल ने कहा, "हमारे बीच असहमति है. मैंने याचिकाओं के पक्ष में और जस्टिस गोखले ने सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया है. इसलिए अब इस मामले की सुनवाई तीसरे जस्टिस द्वारा की जाएगी."
अगस्त में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा था.
एडिटर्स गिल्ड ने किया फैसले का स्वागत
वहीं, हाईकोर्ट के इस फैसले का ए़डिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने स्वागत किया है. मीडिया को जारी एक बयान में एडिटर्स गिल्ड ने कहा कि हाईकोर्ट ने इस फैसले को असंवैधानिक बताते हुए रोक लगा दी है. हम इसका स्वागत करते हैं.
केस का बैकग्राउंड
संशोधनों में केंद्र सरकार के लिए एक "तथ्य-जांच इकाई" स्थापित करने का प्रस्ताव था, जो सोशल मीडिया पर उसके बारे में "फर्जी खबरों" की पहचान करके उन्हें हटाने का आदेश दे सके. इन संशोधनों की प्रेस समूहों, विपक्षी नेताओं और पत्रकारों ने कड़ी आलोचना की थी.
संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाएं कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया, एसोसिएशन ऑफ़ इंडियन मैगज़ीन और न्यूज़ ब्रॉडकास्ट एंड डिजिटल एसोसिएशन द्वारा दायर की गई थीं.
कामरा के वकील ने तर्क दिया था कि तथ्य-जांच इकाई (फैक्ट चेक यूनिट) का "स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर बुरा प्रभाव" पड़ेगा, जबकि एडिटर्स गिल्ड की ओर से कहा गया कि "केंद्रीय प्राधिकरण अन्य सभी आवाज़ों को दबा देगा."
मार्च में, जस्टिस चंदूरकर ने केंद्र की तथ्य-जांच इकाई की अधिसूचना पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. उसी महीने, केंद्र द्वारा संशोधित आईटी नियमों के तहत तथ्य-जांच इकाई की अधिसूचना जारी होने के एक दिन से भी कम समय बाद, सुप्रीम कोर्ट ने उसके संचालन पर रोक लगा दी थी.
न्यूज़लॉन्ड्री ने इन संशोधनों से जुड़े विवादों और प्रेस की स्वतंत्रता पर इसके प्रभावों पर विस्तार से रिपोर्ट की है. जिसे यहां पढ़ा जा सकता है.
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