गांधी की हत्या के पाप और उससे मिली सामाजिक अछूत की समस्या के चलते संघ ने लंबे समय तक गोडसे से दूरी बनाए रखी. लेकिन हाल के वर्षों में संघ विचार परिवार का एक बड़ा हिस्सा गोडसे की महिमा और प्रशंसा खुलकर करने लगा है.
महात्मा गांधी की हत्या देश की राजधानी दिल्ली में एक प्रार्थना सभा के लिए जाते वक्त की गई थी. हत्यारा 10वीं फेल गोडसे दक्षिणपंथी पार्टी हिंदू महासभा का सक्रिय सदस्य था और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पूर्व सदस्य था. संघ के साथ उसके रिश्ते गांधी हत्या पर्यंत जारी रहे, इससे कटाव दुराव का कोई सबूत उपलब्ध नहीं है. कुंठित, हिंसक और हीन भावना से ग्रस्त गोडसे और उसकी पार्टी को लगता था कि गांधी मुसलमानों और पाकिस्तान के समर्थक थे. इससे भी ज्यादा संघ, हिंदू महासभा और गोडसे को यकीन था कि गांधी हिंदू राष्ट्र की राह में सबसे बड़ा रोड़ा थे. भारत का बंटवारा उन्होंने किया और ऐसा करके उन्होंने हिंदुओं के साथ विश्वासघात किया था.
गांधी की हत्या के एक साल बाद ट्रायल कोर्ट ने गोडसे को मौत की सजा दी. हाई कोर्ट की सुनवाई में इस सज़ा को बरकरार रखा गया. जिसके बाद नवंबर 1949 को नाथूराम गोडसे को फ़ांसी दे दी गई. इस हत्या की साजिश में गोडसे के साथी रहे नारायण आप्टे को भी मौत की सज़ा सुनाई गई थी, जबकि अन्य छह लोगों को आजीवन कारावास की सज़ा दी गई. इन सबके गुरू रहे विनायक दामोदर सावरकर भी इस हत्या में एक आरोपी थे जो किसी तरह से इस आरोप से बच निकले.
Independent journalism is not possible until you pitch in. We have seen what happens in ad-funded models: Journalism takes a backseat and gets sacrificed at the altar of clicks and TRPs.
Stories like these cost perseverance, time, and resources. Subscribe now to power our journalism.
₹ 500
Monthly₹ 4999
AnnualAlready a subscriber? Login