2020 में, आशा के जबरन अंतिम संस्कार के बाद परिवार ने ठाकुर बाहुल्य गांव में सुरक्षा और पुनर्वास की मांग की थी. वो सुरक्षा आज एक दुधारी तलवार बन गई है.
अलमारी के एक कोने में मिट्टी का एक घड़ा पीछे रखा है. इसमें आशा की राख है, जो उसके कपड़ों और सूख चुकी नेल पॉलिश की बोतलों के पीछे छिपी है.
उसकी मां ने कहा, “जब तक हमें न्याय नहीं मिल जाता, हम उसकी अस्थियां नहीं बहाना चाहते.”
हाथरस गैंगरेप और कथित हत्या मामले को चार साल हो चुके हैं. सितंबर 2020 में 19 वर्षीय दलित लड़की आशा को उसके घर से कुछ मीटर की दूरी पर अर्धनग्न, खून से लथपथ और मरणासन्न पाया गया था. दो हफ्ते बाद अस्पताल में उसकी मौत हो गई. उत्तर प्रदेश पुलिस ने उसके शव का जबरन अंतिम संस्कार कर दिया.
आशा की मौत के चार साल बाद, तीन आरोपी गांव वापस आ गए हैं और उसके परिवार के पड़ोसी हैं. वहीं उसका अपना परिवार अपने ही घर के अंदर “कैद” की ज़िंदगी गुज़ार रहा है.
जुलाई 2024 में, आशा के परिवार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय को सूचित किया कि उन्हें नई जगह पुनर्वासित किया जाना था और नौकरी दी जानी थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि सुरक्षा व्यवस्था के कारण उनका आना-जाना मुश्किल हो रहा है. अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है.
जुलाई की शुरुआत में, अपराध के चार साल बाद, न्यूज़लॉन्ड्री ने आशा के घर का दौरा किया.
उनके घर के बाहर एक कूलर की हवा में एक बकरी और एक सीआरपीएफ जवान बैठे थे. एक अस्थायी बंकर के अंदर, चार सुरक्षाकर्मी लेटे हुए थे. 50 मीटर दूर, एक अन्य बंकर में, सीआरपीएफ के पांच जवान आराम कर रहे थे, जबकि एक भैंस उनके बगल में खड़ी होकर जुगाली कर रही थी.
घर के चारों ओर सुरक्षाकर्मियों का एक और समूह अपनी बंदूकें लेकर खड़ा था. कुछ अपने फोन लगे थे और कुछ सो रहे थे.
आठ सीसीटीवी कैमरे हर समय परिवार पर नजर रख रहे थे. घर में आने या बाहर निकलने वाले किसी भी व्यक्ति को सीआरपीएफ द्वारा बनाए गए रजिस्ट्री में अपना विवरण दर्ज कराना पड़ता है.
जब हम मेटल डिटेक्टर से गुज़रे और घर में दाखिल हुए तो आशा के पिता ने कहा, "हर समय कम से कम 20-25 लोग पहरा देते हैं. कुछ बाहर खड़े होते हैं, कुछ घर के पीछे और एक छत पर."
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