दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
हमारे देश का आदमी पढ़ता भगवत गीता है लेकिन आस्था भाग्य में रखता है. कर्म को पिछले पांव पर, भाग्य को पहले पायदान पर रखता है. यह लॉजिक छोड़ मैजिक के पीछे भागता है. सरकारों से उसे बस इतनी सी उम्मीद रहती है कि अस्सी करोड़ लोगों को पांच-दस किलो महीने का राशन मिल जाए. बाकी कामों के लिए वो कोई बाबा खोज लेता है. पूरी जिंदगी चमत्कार के आसरे गुजार देता है. जीवन को माया-मोह मान कर धन संचय को पाप समझता है. और फिर एक दिन उसकी चमत्कार की उम्मीद हादसे में बदल जाती है. बाबा के सत्संग में भगदड़ मच जाती है. नेता और बाबा अपनी लग्जरी कारों से उसे रौंदते हुए निकल जाते हैं, जनता स्टैंपीड में फंस कर जान दे देती है.
हाथरस की घटना ने हमारे खबरिया चैनलों को नए सिरे से नंगा कर दिया. यह घटना दिन में करीब ढाई बजे के आस पास घटी. इसके लगभग दो घंटे बाद सवा चार बजे से प्रधानमंत्री ने लोकसभा में राष्ट्रपति के भाषण पर धन्यवाद देना शुरू किया. यह भाषण दो घंटे तक चलता रहा. छह बजे के बाद अपने भाषण के अंत में प्रधानमंत्री ने इस हादसे पर संवेदना जताई.
प्रधानमंत्री तो खैर अपने भाषण के बीच में थे, लेकिन दरबारी मीडिया ने पूरे समय, पूरी शिद्दत से इस बात का ख्याल रखा कि चापलूसी में कमी न आने पाए. जब तक भाषण चला तब तक इतनी बड़ी ख़बर दबी रही और मोदीजी का चेहरा दिखता रहा. चार घंटे बाद जब प्रधानमंत्री का भाषण खत्म हुआ तब जाकर हाथरस की घटना की कवरेज शुरू हुई.
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