उद्धाटन के लाल फीते में बंधा मोदीजी का सदाचार का ताबीज

दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.

WrittenBy:अतुल चौरसिया
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भारत ने T-20 का विश्वकप जीता तो कई चमत्कार देखने को मिले. भारत रात 11 बजकर 31 मिनट पर विश्वकप का फाइनल मैच जीता. 11 बजकर 40 मिनट पर प्रधानमंत्री का बधाई वाला वीडियो आ गया. नौ मिनट के अंदर. लेकिन प्रधानमंत्री की यह चटकवाही, यह फुर्ती, यह पूर्व प्लानिंग हमेशा देखने को नहीं मिलती.

देश की राजधानी के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर शुक्रवार को छत गिर गई. एक व्यक्ति की मौत हो गई. कई लोग घायल हो गए. लेकिन प्रधानमंत्री ने इस भयावह हादसे पर कोई वीडियो, ट्वीट या बयान जारी नहीं किया. आरोप लग रहे हैं कि मार्च महीने में मोदी ने टर्मिनल वन के विस्तारित हिस्से का उद्गाटन किया और उसका एक हिस्सा जून महीने में गिर गया. लेकिन प्रधानमंत्री ने इस हादसे पर श्रद्धांजलि का एक शब्द खर्च नहीं किया.

अठारह-अठारह घंटे काम करके मोदीजी ने जो राष्ट्र आपको दिया है उसकी प्राचीरें दरक रही हैं. पुल बह रहे हैं, छतें ढह रही हैं, भवन गिर रहे हैं, सड़कें धंस रही हैं. फीता काटना ही अगर किसी राष्ट्र की महानता और प्रभुत्व का पैमाना हो तो बीते दस सालों में मोदीजी ने जितने फीते काटे हैं उस अनुपात में भारत दुनिया का सबसे विकसित और ताकतवर देश बन चुका है.

हाल के सालों में इस ताकत की झलक हमें कई मौकों पर दिखी है. एक मौका पिछले साल नवंबर महीने में आया था जब ताकतवर देशों के राष्ट्राध्यक्ष दिल्ली में इकट्ठा हो रहे थे. G-20 शिखर सम्मेलन के ठीक पहले 2700 करोड़ रुपए कि लागत से बना भारत मंडपम ताल तलैया बन गया. मेहमानों से ये अपेक्षा की गई कि वो तैरते हुए सम्मेलन में आएं और तौलिया से सुखाते हुए वापस जाएं.

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