हत्या, हथियार और नशे का कारोबार, फिर भी सनातन संस्था है पाक-साफ?

हाईकोर्ट के निर्देश के बाद गोविंद पंसारे के परिवार ने पत्र लिखकर कई अहम पहलूओं पर रोशनी डाली है.

WrittenBy:प्रतीक गोयल
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गोविंद पानसरे (बाएं) और संस्था प्रमुख जयंत आठवले

महाराष्ट्र एटीएस को लिखे 68 पन्नों के पत्र में वामपंथी राजनेता और बुद्धिजीवी गोविंद पंसारे के परिवार ने पुलिस के दस्तावेजों से “सबूत” पेश किए हैं. मालूम हो कि पंसारे की फरवरी, 2015 में उनकी कुछ लोगों ने हत्या कर दी थी.  

परिवार ने पुलिस को लिखे पत्र में कथित तौर पर हिंदुत्ववादी संगठन सनातन संस्था द्वारा महाराष्ट्र और कर्नाटक में तर्कवादियों और बुद्धिजीवियों की हत्या करने की एक सोची समझी योजना की ओर इशारा किया है. इसमें आरोप लगाया गया है कि जांचकर्ताओं ने संगठन की जांच करने में लापरवाही बरती है, “जिसका कारण वे ही जानते हैं”.

जांच की निगरानी कर रहे बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछले महीने एटीएस से कहा था कि वह अपराध के मकसद की जांच के लिए पंसारे के परिवार द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली अतिरिक्त जानकारी पर गौर करे. न्यूज़लॉन्ड्री को मिली जानकारी के अनुसार, परिवार ने पिछले सप्ताह शुक्रवार को पुणे में एटीएस अधिकारी और एसपी जयंत मीना से मुलाकात की. पत्र में कहा गया है कि इन जानकारियों की मदद से एटीएस मास्टरमाइंड की पहचान करने में सक्षम होगी.

नरेंद्र दाभोलकर हत्या मामले में दिए गए फैसले के कुछ महीने बाद यह सब हुआ है. मालूम हो कि दाभोलकर मामले में कोर्ट ने अभियोजन पक्ष को 20 अभियोजन गवाहों, तीन आरोपपत्रों और सीबीआई व पुणे पुलिस द्वारा 11 सालों की जांच में एकत्र किए गए सबूतों के बावजूद, मास्टरमाइंड और आपराधिक साजिश का पर्दाफाश करने में विफल रहने के लिए फटकार लगाई गई थी.

‘5 आरोपपत्रों, 12 आरोपियों पर ध्यान दें’

पंसारे के परिवार के पत्र में बताया गया है कि कैसे सनातन संस्था ने कथित तौर पर हत्याओं को अंजाम देने, हथियार प्रशिक्षण शिविरों की व्यवस्था करने, तर्कशील बुद्धिजीवियों की दिनचर्या पर नज़र रखने, बड़ी मात्रा में पिस्तौल और विस्फोटक जमा करने और युवाओं के मस्तिष्क को लगातार प्रभावित करने के लिए अथाह पैसे, संगठनात्मक कौशल और ‘साधकों’ की एक समिति का इस्तेमाल किया.

परिवार ने एटीएस से भी प्रारंभिक जांच करने और पंसारे हत्या मामले में कथित भूमिका के लिए संस्था प्रमुख जयंत अठावले, नेता वीरेंद्र मराठे और अन्य पदाधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की अपील की है.

संस्था पर वामपंथी नेता गोविंद पंसारे की हत्या में भूमिका होने का संदेह है, जिनकी 2015 में कोल्हापुर में हत्या कर दी गई थी, शिक्षाविद एमएम कलबुर्गी की 2015 में धारवाड़ में हत्या कर दी गई थी और पत्रकार गौरी लंकेश की 2017 में बेंगलुरु में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.

पत्र में संस्था के 12 सदस्यों के नाम हैं.

“हम आपका ध्यान कॉमरेड पंसारे के मामले में दायर पांच आरोपपत्रों की ओर आकर्षित करना चाहते हैं. बारह लोगों को आरोपी बनाया गया है. 12 आरोपियों में से दो को फरार घोषित किया गया है. सभी आरोपी सनातन संस्था या हिंदू जनजागृति समिति के सदस्य हैं. कुछ आरोपियों का नाम डॉ. नरेंद्र दाभोलकर, प्रोफेसर एमएम कलबुर्गी और सुश्री गौरी लंकेश की हत्या के मामलों और नालासोपारा हथियार जब्ती मामले और अन्य संबंधित मामलों में भी है, जो साबित करता है कि एक साझा कड़ी मौजूद है.”

“इन मामलों में आरोपियों की समानता के अलावा, चारों हत्या मामलों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है… वे सभी मास्टरमाइंड द्वारा तालमेल बनाए हुए और संगठित थे. यह संबंध समान हथियारों के इस्तेमाल से और भी साबित होता है… इन चारों मामलों में एक से ही हथियारों के इस्तेमाल का उल्लेख पंसारे की हत्या के मामले में एसआईटी द्वारा दायर 11 फरवरी, 2019 की चार्जशीट में किया गया है.”

‘एजेंसियां संस्था की जांच नहीं कर रही हैं, इसके पीछे के कारण उन्हें ही पता हैं’

परिवार का कहना है कि एक के बाद एक एजेंसियों ने संस्था की कथित भूमिका पर आंखें मूंद ली हैं.

“हम इस तथ्य से अवगत हैं कि आप (एटीएस) और सीबीआई, महाराष्ट्र पुलिस, कर्नाटक पुलिस और गोवा पुलिस जैसी अन्य जांच एजेंसियों को इन चार हत्याओं और अन्य गंभीर अपराधों में सनातन संस्था और उसके सदस्यों की भूमिका के बारे में पता है. हालांकि, इस पहलू की जांच न करने की वजह इन एजेंसियों को ही पता है. इसलिए, अपराधियों के एक संगठित नेटवर्क के रूप में सनातन संस्था और उसके नेताओं, श्री जयंत अठावले और श्री वीरेंद्र मराठे की भूमिका की जांच करना आवश्यक है.”

संगठित अपराध को रेखांकित करने के लिए पत्र में सनातन संस्था के सदस्यों रमेश गडकरी और विक्रम भावे द्वारा पनवेल, ठाणे और वाशी में किए गए बम विस्फोटों की ओर इशारा किया गया है. इस मामले में गडकरी और भावे को दोषी पाया गया था. एसआईटी की चार्जशीट में सनातन संस्था के सदस्यों वीरेंद्र तावडे, अमोल काले, शरद कालस्कर, सचिन अंदुरे व अन्य लोगों द्वारा महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और देश के अन्य हिस्सों में हथियारों और विस्फोटकों के प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने, पिस्तौल और बम खरीदने और युवाओं की भर्ती करने के लिए व्यापक यात्राओं के बारे में दर्ज बयान का भी उल्लेख किया गया है.

“संगठन के संचालन और तरीके से यह स्पष्ट है कि यह एक सुस्थापित नेटवर्क है, जो सनातन संस्था और इसके संस्थापकों और नेताओं की विचार प्रक्रिया का विरोध करने वाले लोगों को खत्म करके समाज में आतंक पैदा करने के उद्देश्य से काम कर रहा है.”

दाभोलकर की हत्या के दोषी, सनातन साधक शरद कालस्कर के बयान का उल्लेख करते हुए पत्र में कहा गया है, "शरद कालस्कर ने कबूल किया है कि डॉ. दाभोलकर की हत्या के बाद सभी आरोपी इकट्ठे हुए और हिंदू विरोधी माने जाने वाले बुद्धिजीवियों, तर्कवादियों आदि के नाम लिखे. इसके बाद आरोपी अमोल काले के निर्देश पर ऐसे लोगों को निशाना बनाने और खत्म करने के लिए हिट-लिस्ट बनी. यह स्पष्ट रूप से कबूल किया गया है और दर्ज किया गया है कि कैसे हिट-लिस्ट बनाई गई. जिसके तहत सुश्री गौरी लंकेश का नाम सूची में सबसे ऊपर रखा गया और इस तरह उनकी हत्या कर दी गई."

इसमें केसीओसीए के तहत दर्ज कालस्कर के बयान का भी हवाला दिया गया है, जिसमें उन्होंने एक अन्य साधक अमोल काले के साथ मिलकर बॉम्बे हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बीजी कोलसे पाटिल का पता लगाने के लिए पुणे में रेकी का उल्लेख किया था.

“कर्नाटक एसआईटी द्वारा जब्त की गई उक्त हिट-लिस्ट में पूर्व सांसद और पत्रकार कुमार केतकर, प्रसिद्ध अभिनेता गिरीश कर्नाड आदि सहित विभिन्न राज्यों के लगभग 35-36 बुद्धिजीवियों, तर्कवादियों आदि के नाम शामिल हैं.”

केसीओसीए के तहत दिए गए बयान में आगे दावा किया गया है कि सनातन संस्था ने दिसंबर 2017 में, पुणे में सनबर्न फेस्टिवल में लगभग 30 बम लगाने के लिए लगभग तीन टीमों का गठन किया था. हालांकि, कुछ सदस्यों के सीसीटीवी कैमरों में कैद होने के बाद, योजना को कथित तौर पर रद्द कर दिया गया था. इसमें कहा गया है कि कथित तौर पर मुंबई, पुणे, कोल्हापुर और कर्नाटक के बेलगाम में, पद्मावत फिल्म दिखा रहे सिनेमाघरों और ऑडिटोरियम में बम विस्फोट करने की एक अन्य योजना बनाई गई थी.

गौरी लंकेश हत्याकांड में कर्नाटक एसआईटी के आरोपपत्र की ओर इशारा करते हुए, पत्र में दावा किया गया कि मैसूर में प्रोफेसर केएस भगवान की हत्या की साजिश रचने के लिए वही साधक जिम्मेदार थे, और लंकेश मामले में गिरफ्तार किए गए कुछ आरोपी पंसारे मामले में भी आरोपी थे.

“इस सबूत से पता चलता है कि कैसे सनातन संस्था बुद्धिजीवियों की हत्या करने की रणनीतिक और अच्छे से तैयार की गई योजना को अंजाम दे रही थी, साथ ही यह भी कि गिरफ्तार आरोपियों के अलावा सनातन संस्था के अन्य लोग भी इसमें शामिल हैं. यह स्पष्ट है कि जांच एजेंसियों द्वारा गिरफ्तार किए गए लोगों के अलावा तर्कवादियों की हत्याओं में अन्य लोग भी शामिल थे… शरद कलस्कर और अमोल काले ने एक सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की टोह ली, जब डॉ. वीरेंद्रसिंह तावड़े पहले से ही जेल में थे. यहां तक ​​कि जब हिट-लिस्ट बनाई गई थी, तब भी मुख्य आरोपी और साजिशकर्ता डॉ. वीरेंद्र सिंह तावड़े पुलिस की हिरासत में थे. इससे इन अपराधों में अन्य प्रमुख साजिशकर्ताओं की संलिप्तता का पता चलता है.”

पंसारे परिवार ने सनातन संस्था के प्रमुख आठवले द्वारा लिखित पुस्तक क्षात्रधर्म साधना के सिद्धांत की ओर भी इशारा किया, जो ‘दुर्जन’ की हत्या और ‘ईश्वरीय राज्य’ की स्थापना की वकालत करती है. ‘दुर्जन’ को राष्ट्र-विरोधी और हिंदू-विरोधी के रूप में परिभाषित किया गया है. पत्र में कहा गया है कि जांच से यह साबित हो गया है कि सिंडिकेट भूमिगत था, सावधानीपूर्वक योजना बनाकर हिट-लिस्ट को चिन्हित किया और हिंसक तरीके से उनकी हत्या की.

पंसारे हत्याकांड में दायर आरोपपत्र के अनुसार, दाभोलकर और कॉमरेड पंसारे को हिंदू विरोधी बताया गया.

पंसारे परिवार ने यह भी कहा कि हत्याएं नालासोपारा हथियार जब्ती मामले से जुड़ी हैं. आरोपपत्रों का हवाला देते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि संस्था ने सुलिभंजन वन, जालना, बेलगाम, औरंगाबाद, जंबोती, मंगलुरु और पुणे जैसे क्षेत्रों में घर में बनी बंदूकों, पिस्तौलों और एयर पिस्तौल का उपयोग करके हथियार व विस्फोटक प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए. इन शिविरों में प्रतिभागियों को कथित तौर पर घर में बने बम, पाइप बम, रॉकेट बम और जिलेटिन की छड़ें और डेटोनेटर का उपयोग करके बम बनाने का प्रशिक्षण दिया गया था.

ड्रग्स, वित्त: 'चौंकाने वाली बात है कि आप इसकी जांच करने में विफल रहे'

जांच के प्रति एटीएस के उदासीन रवैये की आलोचना करते हुए, पंसारे परिवार ने कहा, "हम आपका ध्यान गौरी लंकेश की हत्या के मामले में कर्नाटक एसआईटी द्वारा दायर आरोपपत्र की ओर आकर्षित कर रहे हैं. उक्त आरोपपत्र के आरोप कॉलम में, वर्तमान आरोपियों के खिलाफ दर्ज कई अन्य अपराधों का विस्तृत विवरण दिया गया है. यह चौंकाने वाली बात है कि एसआईटी या एटीएस इसकी जांच करने में विफल रही है क्योंकि ये वर्ष 2012-14 से जुड़े हैं, जो डॉ दाभोलकर और कॉमरेड पंसारे की हत्याओं से पहले की बात है."

"यह साफ़ है कि डॉ वीरेंद्रसिंह तावड़े या अमोल काले जैसे व्यक्तियों का शामिल होना इसे अंजाम देने के लिए काफी नहीं है. निर्देश और आदेश सनातन संस्था के नेता डॉ जयंत अठावले या वीरेंद्र मराठे जैसे प्रभावशाली व्यक्तियों से आने चाहिए."

परिवार ने संस्था द्वारा नशीली दवाओं के उपयोग पर भी प्रकाश डाला, जिसमें पंसारे हत्या की जांच के दौरान पनवेल के एक आश्रम से बड़ी मात्रा में दवाइयों - जैसे अल्प्राजोलम, एमिट्रिप्टीलिन 50 मिलीग्राम, रिसपेरीडोन 2 मिलीग्राम, एस्सिटालोप्राम 5 मिलीग्राम और 20 मिलीग्राम, डिगोक्सिन, क्लोनाज़ेपम 0.5 मिलीग्राम, एमिसुलप्राइड 50 मिलीग्राम, क्वेटियापाइन 50 मिलीग्राम, एटिज़ोलम 0.5 मिलीग्राम - की जब्ती का हवाला दिया गया.

जब्ती के बाद, रायगढ़ में खाद्य और औषधि विभाग ने संस्था के पनवेल आश्रम और डॉ. आशा ठाकुर के खिलाफ मामला दर्ज किया. हालांकि एटीएस की ओर से कथित लापरवाही के कारण मामला खारिज कर दिया गया.

“यह चौंकाने वाला है कि एटीएस जैसी एजेंसी ने सनातन के आश्रम में नशीली दवाओं की जब्ती के मामले पर कभी कार्रवाई नहीं की, जिसे एसआईटी महाराष्ट्र ने उजागर किया था और बाद में एटीएस को सौंप दिया था. हम इस तरह की घोर लापरवाही से भी उतने ही हैरान हैं, खासकर तब जब एटीएस को लंबित अदालती कार्यवाही के बारे में पता था. एटीएस जांच करने और मुकदमा चलाने में विफल रही, जिसके कारण फरवरी 2023 में मामला खारिज कर दिया गया."

इसमें आरोपी वीरेंद्रसिंह तावड़े की पत्नी निधि तावड़े के एसआईटी के समक्ष संस्था के आश्रम में साइकोट्रोपिक ड्रग्स दिए जाने के बयान का भी उल्लेख किया गया. उसने दावा किया कि संस्था के अन्य लोगों को उनकी सहमति के बिना रिसपेरीडोन दिया गया था. परिवार ने कहा कि वीरेंद्रसिंह तावड़े को भी यह दवा दी गई थी, जो दर्शाता है कि डॉ. तावड़े के अलावा अन्य लोग सदस्यों के कार्यों को नियंत्रित करते हैं.

पंसारे परिवार ने सनातन संस्था के वित्तीय साधनों की जांच न करने के लिए जांच एजेंसियों की भी आलोचना की. “एसआईटी या एटीएस ने कभी भी धन के स्रोत का पता नहीं लगाया है. यह साबित हो चुका है कि डॉ. वीरेंद्रसिंह तावड़े या अमोल काले तब तक ऐसा धन नहीं कमा सकते, जब तक कि उसे सनातन संस्था द्वारा वित्त पोषित न किया जाए.”

न्यायालय 12 जुलाई को मामले की फिर से सुनवाई करेगा.

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