दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
लंबे वक्त के बाद टिप्पणी और टिप्पणी में ढृतराष्ट्र संजय संवाद की वापसी. लोकसभा चुनावों के नतीजों को लेकर दरबार में हड़कंप मचा हुआ था. अफरा तफरी का आलम था. धृतराष्ट्र की देह उखमज से टूट रही थी. हर आदमी किसी गुत्थी को सुलझाने में उलझा हुआ था. सबके माथे पर एक प्रश्नवाचक चिन्ह छपा हुआ था- आखिर यह हुआ कैसे?
इस साधारण से सवाल के उत्तर में सबके अपनी-अपनी कल्पना के घोड़े थे जो आर्यावर्त के विस्तीर्ण उत्तर भारतीय मैदानों में बेतहाशा दौड़ रहे थे. किसी के पास विशुद्ध गणितीय फार्मूला था, तो किसी के पास सामाजिक समीकरणों से लैस तर्क और कुछ लोगों के पास रियाया की गद्दारी के कुतर्क भी थे.
देखिए दरबार में क्या-क्या हुआ.
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