चुनाव प्रचार में मां-बहन की एंट्री और स्मिता प्रकाश का TINA फैक्टर

दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.

WrittenBy:अतुल चौरसिया
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पिछले बीस दिनों से प्रधानमंत्री के चुनावी मंचों पर एक ही फिल्म चल रही है. हिंदू-ुमसलमान, राम विरोधी कांग्रेस, पाकिस्तान और सीएए. अलग-अलग तरीके से इसी बासी रायते को परोसा जा रहा है. और एएनआई वाली स्मिता प्रकाश इसी पर बेक़दर फिदा हो गई हैं. वो पूछ रही हैं- “कौन? मोदीजी के मुकाबले है कौन?” है कोई जो और इनकी तरह दस साल राज करने के बाद फिर से काठ की हांडी चूल्हे पर चढ़ा दे. 

स्मिताजी पर विस्तार से बात लेकिन चुनावी झगड़े में मां-बहन, दादी-नानी को घसीटना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण हैं. मर्दों को अपनी लड़ाई अपने तक ही सीमित रखनी चाहिए. हमेशा यही होता है कि मर्द अपनी नाक की लड़ाई में जबरन उन महिलाओं को घसीट लाते हैं जिनका उससे कोई लेना देना नहीं होता.   

सांप्रदायिकता की जो कढ़ाई मोदीजी ने चढ़ाई है, उसमें एक बड़ी चतुराई है. वो कह रहे हैं कि मुसलमानों की आबादी 43 प्रतिशत बढ़ी है और बाकी धर्मों की आबादी घटी है. यह दरअसल आंकड़ों के साथ हेराफेरी है. यह तथ्यों की गलत व्याख्या है. 

उधर 23 दिन के लिए चुनावी माहौल में मसालेदार तड़का लगाने के लिए अरविंद केजरीवाल जेल से बाहर आ गए हैं. उम्मीद के मुताबिक ही उन्होंने अपने पहले चुनावी संबोधन में चुनावी रंग को चकाचक कर दिया.

इन तमाम मुद्दों पर पेश है हमारी खास टिप्पणी. देखिए और राय दीजिए.

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