गिरता वोट शेयर, मुद्दों पर चुप्पी, नेताओं की अनुपस्थिती और भाजपा के हिंदुत्व के सामने बसपा, मायावती और आकाश आनंद के टिके रहने की चुनौती.
लोकसभा चुनाव ऐलान के करीब 26 दिन बाद 11 अप्रैल को महाराष्ट्र के नागपुर में मायावती ने चुनावी शंखनाद कर अपनी चुप्पी तोड़ी. उन्होंने शिक्षा, रोजगार, महंगाई के मुद्दे पर न सिर्फ भाजपा को घेरा, बल्कि कांग्रेस और इंडिया गठबंधन की खामियों को भी जनता के सामने रखा. उन्होंने मतदाताओं से सत्ताधारी पार्टी द्वारा किए गए विकास कार्यों का रिपोर्ट कार्ड मांगने की अपील की. बसपा सुप्रीमो ने यूपी की मुख्यमंत्री रहते हुए अपने चार टर्म में किए गए विकास कार्यों का बखान भी किया. अब गेंद वोटर के पाले में है.
लगभग इसी तरह मायावती ने 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी मतदान से सिर्फ आठ दिन पहले जनसभाओं की शुरुआत की थी. नतीजे आए तो पार्टी को सिर्फ 1 सीट हासिल हुई. पार्टी के वोट शेयर में लगभग 10 प्रतिशत की भारी गिरावट दर्ज हुई. 2017 में जहां इसे 22.23% वोट मिले थे वहीं, 2022 में यह आंकड़ा 12.88% पर आ गया.
सीएसडीएस (सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज) के मुताबिक, बसपा के कोर वोटर- जाटव के शेयर में 35 प्रतिशत कमी आई. 15 सालों में बसपा का वोट प्रतिशत लगातार गिरा है. 2007 में यह 30% से ऊपर था.
बसपा अपने 40 सालों के सबसे खराब दौर से गुजर रही है. उत्तर प्रदेश की विधानसभा में उसका सिर्फ एक विधायक है. लोकसभा में जो दस सांसद पिछली बार पहुंचे थे, उनमें से कई साथ छोड़ गए हैं. मायावती का चुनाव में देरी से उतरना, आकाश आनंद का पहली बार सक्रिय होना, और बसपा के मतदाताओं के मन में क्या है? इसे टटोलने की कोशिश है यह रिपोर्ट.
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