आईसीएआर ने उन 75,000 किसानों पर एक पुस्तक जारी की है, जिनकी आमदनी दोगुनी हो गई है. न्यूज़लॉन्ड्री ने जब इसमें शामिल किसानों की तहक़ीकात की तो हैरान करने वाली जानकारी सामने आई.
गौतम बुद्ध नगर जिले के दादरी ब्लॉक के खुरशैदपुरा गांव के रहने वाले 18 साल के हिमांशु को जब हमने बताया कि उनके पास पांच एकड़ जमीन है. जिसमें खेती करके वह सालाना पांच लाख रुपये की कमाई करते हैं. वो हैरान हो गए. पास में खड़ी उनकी मां हंसते हुए, अपने घर की तरफ इशारा करते हुए बोलीं, ‘‘अगर इतना ही खेत और कमाई होती तो हम क्या ऐसे घर में रहते.’’
दरअसल, भारत सरकार की संस्था, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर) ने साल 2022 में उन 75 हजार किसानों पर एक पुस्तक जारी की थी, जिनकी आय दोगुनी या उससे ज़्यादा हो गई है. इसमें गौतमबुद्ध नगर जिले के 110 किसानों का नाम है. इनमें हिमांशु भी एक हैं. हिमांशु के साथ-साथ उनके पिता सुरेंद्र सिंह का भी नाम इस सूची में शामिल है.
आईसीएआर ने इस पुस्तक में विस्तार से किसानों की आमदनी को लेकर जानकारी दी है. किसानों की तस्वीरें भी छापी हैं. हिमांशु के बारे में बताया गया है कि इनकी उम्र 21 साल है. यह 5 एकड़ जमीन में खेती करते हैं. साल 2016-17 में खेती और पशु पालन से इनकी नेट इनकम (शुद्ध आय) 2 लाख 47 हज़ार रुपये थी जो 2020-21 में बढ़कर 5 लाख 21 हज़ार हो गई.
वहीं, सुरेंद्र सिंह के बारे में बताया गया है कि ये आठ एकड़ जमीन पर खेती करते हैं. कृषि और पशुपालन से 2016-17 में इनकी शुद्ध आय 3 लाख 61 हज़ार रुपये थी जो 2020-21 में बढ़कर 7 लाख 61 हज़ार से ज़्यादा हो गई. यह जानकारी जब हमने पढ़कर सिंह को सुनाई तो वो भौचक्के रह गए और बोले, ‘‘सब झूठ है.’’
सिंह ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उनके बेटे हिमांशु की अभी उम्र 18 साल है. वह पॉलिटेक्निक की पढ़ाई कर रहा है. उसके पास एक खूड (छोटा सा हिस्सा) जमीन नहीं है. जबकि सरकार दोनों (बाप-बेटे) के पास 13 एकड़ जमीन बता रही है लेकिन मेरे पास सिर्फ आठ बीघे जमीन है. जो डेढ़ एकड़ होगा. जो कमाई ये बता बता रहे हैं, न जाने कहां से जानकारी लाए हैं. ये सरासर गलत लिखा हुआ है. जब उसके पास जमीन ही नहीं तो आमदनी कहां से हो गई.’’
आईसीएआर द्वारा दी गई जानकारी को सिंह सिरे से झूठ बताते हैं.
साल 2016 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले बरेली में किसानों की सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात की थी. उन्होंने इसके लिए जनता से भी पूछा था कि आमदनी दोगुनी करनी चाहिए कि नहीं? और जनता ने मोदी के सवाल का जवाब हां में दिया था.
इसके बाद भारत सरकार ने किसानों की आमदनी बढ़ाने हेतू सुझाव देने के लिए वरिष्ठ आईएएस अधिकारी डॉक्टर अशोक दलवाई के नेतृत्व में ‘दलवाई कमेटी’ का गठन किया. इस कमेटी ने विस्तृत रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी. 2021 में न्यूज़लॉन्ड्री ने अशोक दलवई का इंटरव्यू किया था तब उन्होंने बताया कि किसानों की आमदनी बढ़ी या नहीं इसको लेकर अभी कोई सर्वे नहीं हुआ, लेकिन हम सही रास्ते पर हैं.
2022 आते-आते किसानों की आमदनी को लेकर सवाल पूछे जाने लगे तब सरकार की तरफ से हर बार किसानों के लिए चल रही योजनाओं के नाम गिनाए जाते थे. आगे चलकर यह जानकारी दी गई कि आईसीएआर ने एक पुस्तक जारी की है, जिसमें ‘असंख्य’ सफल किसानों में से 75 हजार किसानों की सफलता दर्ज है. ये वो किसान हैं, जिनकी आय दोगुनी से ज्यादा हो चुकी है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने सरकार के दावे की पड़ताल की तो हिमांशु और उनके पिता सुरेंद्र सिंह जैसे कई किरदार मिले. इस पड़ताल के लिए हम गौतम बुद्ध नगर के दो और गुरुग्राम के तीन गांव के 20 किसानों से मिले, जिनकी कथित तौर पर आमदनी दोगुनी हो गई है.
इस पुस्तक के मुताबिक, गुरुग्राम जिले में 110 किसानों की आमदनी दोगुनी हुई है. इसमें एक हैं, शिकोहपुर गांव के रहने वाले पवन कुमार. शाम के करीब छह बजे हम कुमार से उनके घर पर मिले. जहां वो इलेक्ट्रिक मैकेनिक का काम करते हैं.
बीते दो दशक से ज़्यादा समय से आसपास के इलाकों में घूमकर मैकेनिक का काम करने वाले कुमार के बारे में बताया गया है कि वो 5 एकड़ जमीन पर खेती करते हैं. 2016-17 में कृषि और इलेक्ट्रिक वर्क्स से इनकी शुद्ध आय करीब 3 लाख रुपये थी, जो 2020-21 में बढ़कर 6 लाख 88 हज़ार के करीब हो गई.
बताया गया है कि 2016-17 में ये खेती से 1 लाख 11 हज़ार 591 रुपये कमाते थे. बाकी की कमाई भैंस और इलेक्ट्रिक वर्क्स से होती थी. 2020-21 में खेती से कमाई 2 लाख 14 हज़ार 275 रुपये हो गई.
जब हमने इसको लेकर कुमार से बात की तो हैरान होते हुए बोले कि साल 2011 से तो मैं यहां खेती ही नहीं कर रहा हूं. उसी साल डीएलएफ ने हमारी जमीन खरीद ली थी. इलेक्ट्रिक वर्क्स से तो मेरी ठीक-ठाक कमाई है क्योंकि सालों से मैं यह काम कर रहा हूं, लेकिन खेती से कमाई का आंकड़ा न जाने कहां से आया है मुझे नहीं पता है.’’
शिकोहपुर में जमीन बिकने के बाद कुमार के परिवार ने रेवाड़ी जिले में जमीन खरीदी है. जहां इनके पास डेढ़ एकड़ जमीन है. इस जमीन पर कभी खुद तो कभी लीज पर देकर खेती करवाते हैं. बीते दो साल से लीज पर ही खेती करा रहे हैं.
ऐसे में आईसीएआर द्वारा कुमार का खेती से कमाई वाला दावा हास्यास्पद है. वहीं, वो मैकेनिक के तौर पर काम करते हैं. इसमें आईसीएमआर का क्या योगदान है? इस सवाल पर वो कहते हैं, ‘‘मैंने साल 2000 में कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) से मैकेनिक की दस दिन की ट्रेनिंग ली थी. उसके बाद मैंने दूसरी जगहों से भी काम सीखा. ऐसे में सीधे तौर पर उनका मेरे कारोबार में तो कोई सहयोग नहीं है. हां, बीते कुछ सालों से केवीके वाले अपने यहां मुझे ट्रेनिंग देने के लिए बुलाते हैं.’’
शिकोहपुर गांव की ही रहने वाली सर्वेश देवी का भी नाम आमदनी दोगुनी होने वाले किसानों में शामिल है. बताया गया है कि उनके पास डेढ़ एकड़ जमीन है. जो वो लीज पर देकर खेती कराती हैं. साथ ही वो स्टिचिंग (सिलाई) का काम करती है.
2016-17 में लीज पर जमीन देने से 16 हजार रुपये और सिलाई से 1,52,000 शुद्ध कमाई करती थी. वहीं सरकारी सहयोग से 2020-21 में इनकी लीज वाली जमीन से कमाई 30 हज़ार हो गई और सिलाई से 3 लाख 15 हज़ार रुपये.
इन्हें सरकारी सहयोग क्या मिला ये भी लिखा गया है. जिसमें बताया गया है कि इन्हें सिलाई से होने वाली आय की तुलना में शहर में अधिक किराया चुकाने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा. ड्रेस डिजाइनिंग पर व्यवसायिक प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षक के रूप में नियुक्त करने और केवीके से तकनीकी मार्गदर्शन और प्रशिक्षण के साथ, वह गांव में लोकप्रिय हो गईं. जिसके बाद उन्होंने गांव में अपना बुटीक खोला और 3,45,000 रुपये की वार्षिक आय प्राप्त कर रही हैं. शहर में वो 42,000 रुपये किराए पर देती थी जिसकी बचत हो रही है.’’
न्यूज़लॉन्ड्री को सर्वेश ने बताया कि शिकोहपुर में उनके पास जमीन नहीं है. 1997-98 में उनकी यहां से जमीन बिक गई थी. जिसके बाद झज्जर जिले में जमीन खरीद ली. वहां इनके पास 7 एकड़ जमीन है. हालांकि, आईसीएआर के दावे के मुताबिक इनकी जमीन गुरुग्राम के शिकोहपुर में है.
अब लौटते हैं केवीके की मदद से शहर से हटाकर गांव में बुटीक खोलने के दावे पर. सर्वेश बताती हैं, ‘‘कोरोना से पहले वो मानेसर में ही अपना बुटीक चलाती थीं. लॉकडाउन लगा तो मैंने वहां काम छोड़ दिया क्योंकि तब नुकसान हो रहा था. वहीं मैं केवीके से साल 1999 से ही जुड़ गई थी. दरअसल, एक बार गांव की औरतें केवीके की मीटिंग में गई थीं. वहां उन्होंने कहा कि आप पुरुषों के लिए इतना सब करते हैं लेकिन महिलाओं के लिए कुछ नहीं करते. मैं तब यहां नई थीं. लोग मेरा सिलाई का काम पसंद करते थे. वही महिलाएं मुझे लेकर केवीके गईं तब से मैं वहां ट्रेनिंग देती हूं. ऐसे में मैं गांव-गांव घूमकर ट्रेनिंग देने लगी जिससे मेरी लोकप्रियता बढ़ी और साथ में काम भी बढ़ा.’’
ऐसे में देखें तो सर्वेश कोई 2016-17 में आकर केवीके से नहीं जुड़ी हैं और न ही इनकी लोकप्रियता तब बढ़ी है. वहीं, केवीके का यह दावा कि उनकी मदद से वो शहर का बुटीक छोड़कर गांव आई यह भी गलत है.
हम अपनी पड़ताल के दौरान नोएडा के खटाना गांव पहुंचे. यहां के 17 किसानों का नाम आईसीएआर की पुस्तक में है. इसी गांव के रहने वाले आकाश के बारे में लिखा गया है कि ये दस एकड़ जमीन में खेती करते हैं. 2016-17 में इनकी खेती और पशुपालन से आय चार लाख 73 हज़ार 398 रुपये थी जो 2020-21 में बढ़कर 10 लाख 6 हज़ार 66 रुपये हो गई. यानी दोगुना से भी ज़्यादा.
आईसीएआर ने बताया है कि किसान (आकाश) की धान, ज्वार और गेहूं आदि से सालाना आमदनी 4 लाख 73 हज़ार 398 हुआ करती थी. इन्हें कोविड-19 और धान के बाजार मूल्य में उतार-चढ़ाव जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा. ओएस्टर, मशरूम उत्पादन और विपणन, सब्जियों और हरे चने आदि को शामिल करने जैसे डीएफआई हस्तक्षेपों के साथ इन्हें 10लाख 6 हज़ार 66 रुपये की सलाना आय हो रही है.
हमारी मुलाकात आकाश से तो नहीं हुई क्योंकि तब वो नौकरी करने के लिए दादरी गए हुए थे. वो ब्लॉक में संविदा पर काम करते हैं. घर पर उनके पिता नरेश खटाना मिले. जब हमने उन्हें यह डिटेल्स पढ़कर सुनाई तो बाकियों की तरह ये भी हैरान हुए. खटाना ने बताया कि आकाश तो खेती ही नहीं करता है. जहां तक रही दस एकड़ जमीन की बात तो मेरे पास ही कुल 7 बीघा (तक़रीबन डेढ़ एकड़) जमीन हैं. मेरे दो लड़के हैं. ऐसे में उसके पास दस एकड़ जमीन कैसे आ गई? यह सब झूठ लिखा हुआ है.
क्या आपने कभी मशरूम या सब्जी की खेती की है? इस पर नरेश कहते हैं, ‘‘यहां धान, गेहूं और बीच-बीच में मूंग हो जाता है. इसके अलावा यहां दूसरी फसल होती ही नहीं. सब्जी कोई कैसे बोये इतने आवारा जानवर भी तो हैं. यह सब झूठ लिखा है. आकाश नौकरी करता है. खेत इतना है नहीं. केवीके वालों ने दफ्तर में बैठे-बैठे लिख दिया होगा.’’
हिमांशु, आकाश, पवन कुमार, सर्वेश यादव और सुरेंद्र सिंह की कहानी से आईसीएआर की किसानों की आमदनी दोगुनी करने के दावे की पोल खोलती है. जो आज़ादी के अमृत महोत्सव जैसे अवसर पर जारी किया गया है.
कभी कोई जानकारी मांगने नहीं आया
‘असंख्य सफल’ किसानों में से 75 हजार किसानों की यह पुस्तक आईसीएआर ने केवीके के सहयोग से जारी की है. वहीं किसानों की आमदनी केवीके के सुझाव और सहयोग से बढ़ी है.
इस पुस्तक में कृषि राज्य मंत्री शोभा करांदलाजे ने भूमिका लिखी है. जिसमें वो लिखती हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में बरेली में कहा था कि क्या हम किसानों की आमदनी दोगुनी कर सकते हैं? सरकारी व्यवस्था ने पूरी ऊर्जा के साथ इस पर प्रतिक्रिया दी. कृषि विज्ञान केंद्र ने भी इस नोबेल विचार को बड़े पैमाने पर समर्थन देने की जिम्मेदारी निभाई.
मुझे यह जानकर खुशी हुई कि केवीके ने 2016-17 के दौरान किसानों की आय दोगुनी करने के लिए बहुआयामी और स्थान विशिष्ट रणनीति तैयार की और उसे अपनाया., जिसमें वैज्ञानिक रूप से सर्वोत्तम किस्मों और अन्य इनपुट के स्वस्थ बीजों के उपयोग की सुविधा प्रदान कर उत्पादकता में वृद्धि के माध्यम से किसानों की आय बढ़ाना शामिल था. यानी इस पुस्तक के केंद्र में केवीके ही है. भारत में 731 केवीके हैं. बता दें कि साल 1974 में पुडुचेरी में पहला केवीके स्थापित किया गया था.
गुरुग्राम के जिन गांवों में हम अपनी पड़ताल के लिए गए वो शिकोहपुर केवीके के अंतर्गत आता हैं. यहां की प्रमुख अनामिका हैं. न्यूज़लॉन्ड्री ने जब आंकड़ों की कलाबाजी पर सवाल करने के लिए उनसे संपर्क किया तो उन्होंने सवाल सुनते ही हमारा फोन काट दिया.
केवीके शिकोहपुर पर न्यूज़लॉन्ड्री ने साल 2021 में भी एक रिपोर्ट की थी.
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किसानों की आय दोगुनी करने की घोषणा के बाद हरेक केवीके को दो गांव गोद लेकर उनकी आय दोगुनी करने के लिए कहा था. शिकोहपुर केवीके को भी सकतपुर और लोकरा गांव मिला था. हमारी ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान सामने तब आया कि यहां किसानों की आमदनी बढ़ी ही नहीं है. तब हम अनामिका से मिले भी थे और उन्होंने कहा था कि सरकार की तरह से गांव तो हमें दे दिए गए, लेकिन उसके लिए बजट नहीं मिला. हैरानी की बात है कि उसी दौरान केवीके इन किसानों की सफलता की भी लिस्ट बना रहा था. हमने 2021 में अपनी रिपोर्ट के दौरान सकतपुर के जिन किसानों से बात की थी, उनका भी नाम इस पुस्तक में शामिल है.
हमने दादरी स्थित केवीके के प्रमुख मयंक राय को भी कई बार फोन किया लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. ऐसे में हमने उन्हें कुछ सवाल भेजे हैं, जवाब आने पर उन्हें ख़बर में जोड़ दिया जाएगा.
क्या कभी कोई किसानों से मिलने और उनकी आय की जानकारी लेने आया. ख़ुरर्शीदपुर के गांव के किसान पवन वीर, भाजपा के नेता हैं. इनका नाम भी इस सूची में है. उनके बारे में बताया गया है कि केवीके की मदद से इनकी चार एकड़ जमीन में आमदनी 2 लाख 75 हज़ार से बढ़कर 6 लाख 22 हज़ार हो गई.
क्या केवीके की तरफ से कोई आपकी आमदनी जानने आया इस सवाल पर पवन वीर कहते हैं, ‘‘आज तक कोई आमदनी पूछने नहीं आया है. केवीके वाले मीटिंग के लिए बुला लेते हैं. वहां वो बताते हैं कि खेती कैसे करें. इसके अलावा उनका मुझे कोई योगदान नहीं लगता है. मेरी दो बार से धान की फसल खराब हो रही है. मैंने फसल का बीमा कराया हुआ है. बीमा की राशि हर साल काट ली जाती है लेकिन फसल का नुकसान नहीं मिलता. भटक-भटक का थक गए है. कोई सुनने वाला नहीं है. मैं भाजपा का नेता हूं. आपसे बात करने के बाद भाजपा की ही रैली में जाऊंगा, लेकिन सच बताऊं तो किसानों की कोई सुनने वाला नहीं है.’’
पवन वीर हमें अपना बैंक स्टेटमेंट दिखाते हैं. जिसमें बीमा का पैसा कटे होने की जानकारी है. वो नाराजगी जाहिर करते हैं. तभी गांव के ही एक अन्य भाजपा नेता गाड़ी लेकर आ गए. वो अपना नंबर मुझे देकर बाद में बात करने की बात कह प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रैली में शामिल होने के लिए निकल जाते हैं.
वहीं, आमदनी पूछने के सवाल पर आकाश के पिता नरेश खटाना कहते हैं, ‘‘केवीके में ही बैठकर लिख दिए होंगे. अगर पूछने आए होते तो इतनी गड़बड़ी तो नहीं करते.’’
आईसीएआर की पुस्तक में किसानों की आमदनी के साथ-साथ खेत में उनके काम करने या खड़े होने की भी तस्वीर लगाई गई है. आखिर यह तस्वीर कहां से उनके पास आई. यहां भी गड़बड़झाला है. जैसे हिमांशु के मामले में. वो बताते हैं कि मैं घर वालों के साथ केवीके में हुई बैठक में शामिल होने गया था. जब मीटिंग खत्म हुई तो वहीं एक वैज्ञानिक ने मेरी तस्वीर खींच ली. यह वही तस्वीर है.’’
अन्य किसानों से बात कर पता चला कि केवीके वाले कभी-कभी गांव में भ्रमण के लिए आते हैं. इस दौरान किसानों को सलाह भी देते हैं. जिसकी फसल अच्छी होती है, उसकी तस्वीर खींच लेते हैं.
ऐसा नहीं है कि किसानों को केवीके से कोई फायदा नहीं है. हम अपनी पड़ताल के दौरान 20 किसानों से मिले थे, जिसमें से तीन ने बताया कि केवीके के वैज्ञानिकों की सलाह से हमें फायदा भी हुआ है. वहीं, नोएडा के एक किसान शिव कुमार ने बताया कि उनकी आमदनी दोगुनी हुई है. क्योंकि वो जैविक खेती कर रहे हैं. जैविक खेती में केवीके से इन्हें मदद मिल रही है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने आईसीएआर के महानिर्देशक डॉ. हिमांशु पाठक से भी इस बारे में संपर्क किया है. हमने उन्हें कुछ सवाल भेजे हैं, जवाब आने पर उन्हें ख़बर में जोड़ दिया जाएगा.
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