पतंजलि द्वारा भ्रामक विज्ञापन दिए जाने के मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट काफी सख्त रुख अपनाए दिखा. कोर्ट ने रामदेव के साथ-साथ उत्तराखंड सरकार के लाइसेंस विभाग को भी आड़े हाथों लिया.
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर से बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण का माफीनामा खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि दोनों ने गलत जानकारी अदालत को गुमराह करने की कोशिश की.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट ने पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन मामले में दोनों को ही किसी भी तरह की राहत देने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने बिना शर्त माफीनामे के बारे में टिप्पणी करते हुए कहा कि ये सिर्फ काग़ज़ भर हैं.
इसके अलावा कोर्ट ने उत्तराखंड राज्य लाइसेंस विभाग को भी आड़े हाथ लिया. कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि लाइसेंस विभाग इस मामले में पतंजलि के दिव्य फार्मेसी के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने में नाकाम रहा. विभाग चुपचाप बैठकर तमाशा देखता रहा. कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि इस मामले में विभाग ने या तो डाकिए कि तरह कारण बताओ नोटिस पहुंचाने और पतंजलि का जवाब इकट्ठा करने का काम किया या फिर मामले को लटकाने का प्रयास किया.
बार एंड बेंच की खबर के अनुसार, कोर्ट ने विभाग में 2018 के बाद तैनात सभी अधिकारियों को जवाब तलब करते हुए पूछा कि इन विज्ञापनों को रोकने के लिए विभाग ने क्या किया?
खबर के मुताबिक, पतंजलि ने लाइसेंस विभाग द्वारा भेजे कारण बताओ नोटिस का जवाब देते हुए लिखा था कि उनके विज्ञापन सांकेतिक हैं. उनका उद्देश्य लोगों को आयुर्वेद से जोड़े रखने के लिए है. इसपर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि “ऐसा लगता है कि केवल पतंजलि ही अकेले आयुर्वेदिक दवाएं बनाती है.”
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