2024 के लोकसभा चुनावों में पाला बदलने वाले उम्मीदवारों की पड़ताल.
चुनाव, यानि दलबदलुओं का पसंदीदा मौसम. जब उन्हें एक नाव से दूसरी पर सवार होने का मौका मिलता है या यूं कहें कि एक दल से दूसरे दल में जाने का- जैसे कि भाजपा से कांग्रेस, कांग्रेस से भाजपा या फिर अन्य दल में.
लोकसभा चुनाव का ऐलान हो चुका है. इस बीच बहुत सारे नेताओं ने पाला बदल लिया है. इस बार का चुनाव भी सात चरणों में होना है. पहले चरण के लिए 19 अप्रैल को वोटिंग होनी है. लेकिन उससे पहले अब तक करीब 18 नेता दल बदल चुके हैं. इनमें से कइयों ने तो एक या दो बार वहीं कुछ ने अब तक कई बार पार्टी बदली है. कुछ का हृदय परिवर्तन तो आम चुनावों के महज कुछ हफ्ते या महीने पहले हुआ है.
इन 18 में से 9 तो फिलहाल भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का हिस्सा हैं. दो ऐसे हैं, जो कांग्रेस से सीधे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हुए हैं. वहीं, एक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना का हिस्सा बना है.
6 नेताओं ने विपक्षी पार्टियों के गठबंधन इंडिया (INDIA) हाथ थामा है. तीन लोग एआईडीएमके में शामिल हुए हैं. पाला बदलने वालों में भाजपा के 2 नेता भी शामिल हैं. जिन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम लिया. इनमें टिकट न मिलने पर नाराज एक वर्तमान सांसद भी हैं.
तो आखिर कौन हैं ये पाला बदलने वाले नेता, आइए उनमें से कुछ के बारे में जानते हैं.
ज्योति मिर्धा: चुनाव से पहले भाजपा में शामिल
ज्योति मिर्धा फिलहाल राजस्थान के नागौर लोकसभा क्षेत्र से भाजपा की उम्मीदवार हैं. 51 साल की मिर्धा पेशे से एक डॉक्टर हैं. साल 2009 में उन्होंने कांग्रेस की टिकट पर नागौर से चुनाव लड़ा. यहीं से उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई. तब उनकी चुनावी रैली में सोनिया गांधी भी शामिल हुई थी. मिर्धा ने इस दौरान भाजपा उम्मीदवार बिंदू चौधरी को डेढ़ लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से मात दी.
हालांकि, मिर्धा पहले से एक राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखती हैं. उनके दादा नाथू राम मिर्था इलाके के प्रमुख जाट नेता थे. नागौर को उनका गढ़ माना जाता था. नाथू राम ने नागौर से कांग्रेस की टिकट पर 6 बार लोकसभा चुनाव जीता.
2009 की जीत मिर्धा की पहली और आखिरी जीत थी. इसके बाद वे नागौर में भाजपा और उसके सहयोगी दलों से दो बार हारीं. अंततः, 2023 में विधानसभा चुनावों के ठीक पहले वे कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चली गईं. उस वक़्त, भाजपा को नागौर में जाट वोट लुभाने के लिए एक मजबूत उम्मीदवार की भी दरकार थी. मिर्धा ने दिल्ली पहुंचकर भाजपा का दामन थामा. तब भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी ने “बाबा की पोती, नागौर की पोती” का नारा देते हुए उनका जोरदार स्वागत किया.
हालांकि, मिर्धा के भाजपा में शामिल होने को लेकर कई तरह की बातें कही गईं. उनके प्रतिद्वंद्वी और भाजपा के पूर्व सहयोगी, राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक पार्टी (आरएलपी) के हनुमान बेनीवाल ने आरोप लगाया कि मिर्धा ने यह कदम उनके खिलाफ “केन्द्रीय एजेंसियों की कार्रवाई” के कारण उठाया है. हालांकि, न्यूजलॉन्ड्री को ऐसी किसी कार्रवाई का कोई सुबूत नहीं मिला.
वहीं, पिछले करीब डेढ़ दशक में मिर्धा की संपत्ति में जबरदस्त इजाफा हुआ है. उनकी संपत्ति में करीब 3300 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. साल 2009 में उनकी घोषित संपत्ति 3 करोड़ रुपये थी. जो कि साल 2024 आते-आते 102 करोड़ रुपये हो गई है. सांसद के तौर पर 5 साल के इकलौते कार्यकाल के अंत तक उनकी संपत्ति बढ़कर 58 करोड़ हो गई थी.
भाजपा में जाने के बाद, मिर्धा ने सितंबर, 2023 तक मौजूद एक्स हैंडल की फीड को हटा दिया. अब उनका अकाउंट भगवामय नजर आता है. जिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कवर चित्र के साथ “मोदी साथे राजस्थान” लिखा है. उनकी प्रोफाइल फ़ोटो में उनके दादाजी नाथू राम की एक धुंधली से तस्वीर नजर आती है.
पिछले कुछ महीनों में राजस्थान में कांग्रेस से भाजपा में जाने की होड़ सी दिखी. मिर्धा के साथ-साथ सवाई सिंह चौधरी ने भी पाला बदल लिया. जल्दी ही करीब 30 और छोटे-बड़े नेता भी उनके साथ चले गए. इनमें कांग्रेस के कद्दावर महेन्द्रजीत सिंह मालवीय, लालचंद कटारिया (अशोक गहलोत के निष्ठावान माने जाने वाले), पूर्व राज्य मंत्री राजेन्द्र यादव और विधायकों में रिचपाल सिंह मिर्धा, विजयपाल मिर्धा, खिलाड़ी भैरव और राम नारायण किसान शामिल हैं.
हनुमान बेनीवाल: पाला बदलने में माहिर जाट नेता
हनुमान बेनीवाल, खींवसर लोकसभा क्षेत्र से राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक पार्टी के उम्मीदवार हैं. वह इस पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और संस्थापक भी हैं. 4 बार विधायक रह चुके और युवाओं के बीच खासे लोकप्रिय बेनीवाल का पिछला एक दशक उथल-पुथल से भरा रहा है.
उन्होंने साल 2008 में भाजपा की टिकट पर खींवसर से विधानसभा चुनाव जीता. साल 2013 में वे निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर यहां से जीते. इसके बाद साल 2018 में, उन्होंने राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक पार्टी का गठन किया. इसके बाद वह खींवसर से 2 बार जीते. उनके दल ने 2019 लोकसभा चुनावों में भाजपा से गठबंधन किया. हालांकि, एक साल बाद ही किसान आंदोलन के मुद्दे पर भाजपा से किनारा कर लिया.
बेनीवाल अपनी बयानबाजी के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने भाजपा में रहते हुए पार्टी के शीर्ष नेताओं लालकृष्ण आडवाणी से लेकर वसुंधरा राजे तक पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए. जिसके बाद उन्हें निष्काषित कर दिया गया.
पूर्व में बेनीवाल ने अपने मौजूदा सहयोगी दल कांग्रेस को भी नहीं बख्शा है. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान उन्होंने राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से “राहुल गांधी की शादी करवाने” की बात कही. साथ ही राहुल गांधी पर “भारतीय संस्कृति को खराब करने” का आरोप भी लगाया.
बेनीवाल का सोशल मीडिया अकाउंट उनकी राजनीतिक यात्रा की एक झलक दिखाता है. उनका एक्स अकाउंट फिलहाल कांग्रेस नेताओं के फोटो से पटा पड़ा है. जिसमें वह एक ‘परिवार’ होने का दावा करते हैं. जबकि पिछले साल ही उन्होंने वादा किया था कि आरएलपी कांग्रेस या भाजपा किसी से भी गठबंधन नहीं करेगी. थोड़ा और पीछे जाने पर, उनका सोशल मीडिया भाजपा नेताओं को जन्मदिन की शुभकामनाओं और मोदी को “दोबारा वोट” देने की अपील से भरा नजर आता है.
उल्लेखनीय है कि विधायक के रूप में पहले कार्यकाल के दौरान बेनीवाल की संपत्ति में 200 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई. उनकी संपत्ति साल 2008 में 11 लाख से 2013 में 33 लाख तक पहुंच गई. 2008 से 2019 के दौरान उनकी संपत्ति कुल 381 प्रतिशत बढ़ी. अगले पांच सालों में यह संपत्ति दोगुना होकर करीब 82 लाख तक पहुंच गई.
राहुल कासवां: राजस्थान का सबसे युवा सांसद
राहुल कासवां चुरू से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. यह उनकी पारिवारिक सीट है. यहां से उनकी तीन पीढ़ियां लोकसभा तक पहुंचती रही हैं. जिसमें राहुल कासवां, उनके पिता राम सिंह कासवां और उनके दादा दीपचन्द कासवां शामिल हैं.
साल 2014 में 37 वर्षीय राहुल कासवां कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीते. उन्होंने बसपा के अभिनेश महर्षि को रिकार्ड 2.9 लाख के बड़े अंतर से हराया. साथ ही वे तत्कालीन लोकसभा के लिए राजस्थान के सबसे युवा सांसद बने. उन्होंने 2019 में भी जीत दर्ज की. वे भाजपा की वरिष्ठ नेता वसुंधरा राजे के करीबी माने जाते थे. उनकी राजनीतिक यात्रा उनके पिता और दादा के जैसी ही थी. वे दोनों भाजपा के वरिष्ठ जाट नेता थे.
कासवां का सोशल मीडिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देने की पोस्ट्स से भरा पड़ा है. जिसमें सड़क साफ करवाने से लेकर भारत के रेल नेटवर्क में बढ़ोतरी के ऐलान तक उन्होंने हर चीज के लिए पोस्ट किया है.
मार्च 2024 में एक नाटकीय बदलाव देखने को मिला. जब भाजपा ने चुरू से कासवां की बजाए 2016 पैरा-ओलिम्पिक स्वर्ण पदक विजेता देवेन्द्र झंझारिया को उम्मीदवार बनाया.
कासवां को इससे तगड़ा झटका लगा.
एक हफ्ते बाद, उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे के साथ अपनी तस्वीर पोस्ट की. साथ ही लिखा कि उनकी राहें “भाजपा से जुदा” हो गई हैं और वे कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ेंगे. हालांकि, उन्होंने अभी नामांकन पर्चा नहीं भरा है. लेकिन उनके पहले कार्यकाल के हलफनामों से हम जानते हैं कि उनकी संपत्ति 2014 में 2.57 करोड़ से बढ़कर 2019 में 3.67 करोड़ हो गई.
उदय शंकर हजारिका : एक सीट, दो पार्टी, चार चुनाव
उदय शंकर हजारिका असम के लखीमपुर लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं.
हजारिका के बारे में इंटरनेट पर कुछ खास जानकारी उपलब्ध नहीं है. एक सर्च करने पर यह पता चलता है कि वे कभी भाजपा से जुड़े रहे हैं. उन्होंने भाजपा कि टिकट पर तीन बार 1998, 1999 और 2004 में लखीमपुर सीट से चुनाव लड़ा. हालांकि, उन्हें कभी जीत नहीं मिली. अंततः दिसंबर 2024 में उन्होंने भाजपा को छोड़ दिया.
इस चुनाव में, हजारिका फिर से लखीमपुर से चुनाव लड़ रहे हैं. लेकिन इस बार वह कांग्रेस से 3 बार की सांसद और पूर्व केन्द्रीय मंत्री रानी नाराह की जगह उम्मीदवार हैं. उनकी उम्मीदवारी के ऐलान के बाद नाराह के पति भारत नाराह ने भी कांग्रेस छोड़ दी. हजारिका का मुकाबला वर्तमान भाजपा सांसद प्रधान बरुआ से है.
पूर्व भाजपा नेता कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष भूपेन कुमार बोरा के करीबी माने जाते हैं. उन्होंने हजारिका को टिकट मिलने पर बधाई भी दी.
हजारिका के खिलाफ कोई आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं है. उनकी संपत्ति पिछले आठ साल में काफी बढ़ी है. 2016 में उनकी संपत्ति 3.77 करोड़ थी, जो कि 2024 में बढ़कर 11.8 करोड़ हो गई.