दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
भारत में इन दिनों पत्रकारिता के साथ जो कुछ भी गड़बड़ है, उन सबका एक साथ प्रतिनिधित्व करता है दैनिक जागरण. दैनिक जागरण भारत की पत्रकारिता का काला अध्याय है. जागरण की आड़ में अंधेरा फैलाने का धंधा.
सरकार के हेडलाइन मैनेजरों ने 14 मार्च से ही खबरों और अखबारों की सुर्खियां दूसरी दिशा में मोड़ने की कोशिश शुरू कर दी थी ताकि इलेक्टोरल बॉन्ड के आंकड़ों से लोगों का ध्यान भटकाया जा सके. सारा फोकस कम महत्व वाली खबरों की ओर मोड़ने पर था. सत्ता का मुखपत्र बन कर शान से हर दिन सरकारी चरणवंदना करने वाले दैनिक जागरण ने 15 मार्च को सारी शर्म-हया उतार फेंकी. इलेक्टोरल बॉन्ड की सबसे बड़ी खबर इस अखबार ने पहले पन्ने से लगभग गायब कर दी.
इलेक्टोरल बॉन्ड के आंकड़ों पर हमने विस्तार से बात की है. जो आंकड़े चुनाव आयोग की वेबसाइट पर सामने आए हैं उसके मुताबिक, 25 राजनीतिक दलों ने एक मार्च 2018 से जनवरी 2024 के बीच 16,492 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड भुनाए. इसमें भाजपा की हिस्सेदारी सबसे बड़ी है. इसने 8,251 करोड़ रुपये के बॉन्ड भुनाए. दूसरे नंबर पर 1,952 करोड़ रुपये के साथ कांग्रेस पार्टी है. तीसरे नंबर पर 1,705 करोड़ रुपये के साथ तृणमूल कांग्रेस, 1,408 करोड़ रुपये के साथ बीआरएस चौथे नंबर पर है. 1,020 करोड़ रुपये के साथ बीजेडी पांचवे नंबर पर और 677 करोड़ रुपये के साथ डीएमके छठवें नंबर पर है. लेकिन अगर आपने गृहमंत्री अमित शाह को इंडिया टुडे कॉनक्लेव में सुना होगा तो आपको लगेगा कि यह तो पवित्र गंगा में नहाई धोयी पार्टी है, इस पर बिलावजह कीचड़ उछाला जा रहा है.
गृहमंत्री ने पूरी तस्वीर देश के सामने नहीं रखी. और आपकी यानी इस देश के लोगों की किस्मत भी थोड़ी गड़बड़ है कि जिस पत्रकार के सामने गृहमंत्री ने यह बात कही, उसने भी पलटकर सवाल नहीं पूछा. अमित शाह से पलट कर सवाल पूछने की हिम्मत भला किसमें हैं. अपनी बात के समर्थन में गृहमंत्री ने जो तर्क दिए, वो भी ठोस नहीं हैं.
सच क्या है, यह जानने के लिए टिप्पणी का यह अंक देखें.