चुनाव आयोग द्वारा अभी तक जारी किए गए इलेक्टोरल बॉन्ड्स के आंकड़े इसकी पूरी तस्वीर बयां नहीं करते हैं.
सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार, भारतीय स्टेट बैंक ने मार्च 2018 के बाद से 16,518 करोड़ रुपये के 28,030 चुनावी बॉन्ड बेचे हैं. लेकिन चुनाव आयोग ने एसबीआई की ओर से दिया गया जो डाटा जारी किया है, उसमें केवल 12,516 करोड़ रुपये के 18,871 बॉन्ड की ही जानकारी शामिल है. तो आखिर 4,002 करोड़ रुपये के 9,159 बॉन्ड की जानकारी का खुलासा क्यों नहीं किया गया?
इस सवाल के जवाब का एक हिस्सा, इस सप्ताह की शुरुआत में भारतीय स्टेट बैंक द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे मैं है. जिसमें कहा गया कि उसने अपनी गणना में "अनदेखी" की थी. इसी जवाब का एक अन्य भाग "सीलबंद लिफाफे" में है.
एसबीआई का हलफनामा
मालूम हो कि 15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित कर दिया था. यह योजना व्यक्तियों और कंपनियों को गुमनाम रूप से ये बॉन्ड खरीदने और राजनीतिक दलों को दान करने की अनुमति देती थी. अदालत ने भारतीय स्टेट बैंक से 6 मार्च तक चुनाव आयोग के समक्ष बॉन्ड से संबंधित विस्तृत जानकारी का खुलासा करने को कहा.
1 मार्च 2018 के बाद से बैंक 30 चरणों में बॉन्ड बेच चुका है.
हालांकि, 4 मार्च को चुनाव आयोग को डाटा सौंपने के लिए एसबीआई ने और वक्त मांगा. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. जिसमें कहा गया उसके पास केवल 12 अप्रैल 2019 के बाद से 22 चरणों में बेचे गए बॉन्ड का हिसाब है.
इसमें कहा गया कि, 12 अप्रैल, 2019 और 15 फरवरी, 2024 के बीच "बाईस हजार दो सौ सत्रह (22,217) चुनावी बॉन्ड का इस्तेमाल विभिन्न राजनीतिक दलों को दान देने के लिए किया गया था".
आठ दिन बाद, उसने स्पष्ट किया कि उसने अपनी गणना में "गलती" की.
12 मार्च को अदालत के समक्ष दायर एक दूसरे हलफनामे में, बैंक ने बताया कि उसने वास्तव में 12 अप्रैल, 2019 और 15 फरवरी, 2024 के बीच केवल 18,871 बॉन्ड बेचे थे.
जैसा कि हलफनामे के पैराग्राफ 4 की तालिका से पता चलता है, शेष 3,346 बॉन्ड 1 अप्रैल, 2019 और 11 अप्रैल, 2019 के बीच बेचे गए.
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Contributeबैंक ने इन 3,346 बॉन्डों का डाटा क्यों जारी नहीं किया?
हलफनामे में बैंक ने सुप्रीम कोर्ट के फरवरी 2024 के फैसले का हवाला दिया, जिसमें इसे "12 अप्रैल 2019 के इस न्यायालय के अंतरिम आदेश के बाद से आज तक खरीदे गए चुनावी बॉन्ड का विवरण चुनाव आयोग के पास जमा करने के लिए कहा गया था".
अंतरिम आदेश 12 अप्रैल, 2019 को रंजन गोगोई, जो उस समय मुख्य न्यायाधीश थे, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ द्वारा पारित किया गया था. बेंच ने बैंक से उस वर्ष की 15 मई तक जारी किए गए चुनावी बॉन्ड से जुड़ी विस्तृत जानकारी चुनाव आयोग को "सीलबंद लिफाफे" में भेजने को कहा.
इस अंतरिम आदेश का हवाला देते हुए, वर्तमान मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ का आशय, संभवतः एसबीआई को सीलबंद कवर में पहले से प्रस्तुत किए गए डेटा के अलावा अन्य डेटा जारी करने का निर्देश देना था.
हालांकि, एसबीआई ने इसकी व्याख्या 12 अप्रैल, 2019 और 15 फरवरी, 2024 के बीच जारी किए गए बॉन्डों पर जानकारी जारी करने के निर्देश के रूप में की. जिससे डाटा में अंतर खुल गया.
सीलबंद कवर
नतीजा यह है कि सीलबंद लिफाफे में मौजूद डाटा का एक हिस्सा सार्वजनिक है जबकि दूसरा नहीं.
सीलबंद कवर डाटा में 1 मार्च, 2018 और 15 मई, 2019 के बीच दस चरणों में जारी किए गए बॉन्ड की जानकारी शामिल होगी.
यह कुल 11,681 बॉन्ड्स हैं.
इसमें से 12 अप्रैल, 2019 और 15 मई, 2019 के बाद से जारी किए गए 2,522 बॉन्ड के डाटा का खुलासा किया गया है.
लेकिन 1 मार्च 2018 से 12 अप्रैल 2019 के बीच जारी किए गए 9,159 बॉन्ड की जानकारी अभी भी गायब है. ये 4,002 करोड़ रुपये के बॉन्ड हैं.
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