उत्तर प्रदेश में मुख्य सूचना आयुक्त समेत 10 सूचना आयुक्त नियुक्त हुए हैं. इसमें से चार पत्रकार हैं. वहीं एक भाजपा नेता हैं.
7 मार्च को उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने प्रदेश सूचना आयोग के लिए मुख्य सूचना आयुक्त और 10 सूचना आयुक्तों की नियुक्ति को हरी झंडी दी.
प्रदेश में कार्यवाहक डीजीपी के तौर पर रिटायर हुए राजकुमार विश्वकर्मा को मुख्य सूचना आयुक्त नियुक्त किया गया. वहीं 10 अन्य को सूचना आयुक्त बनाया गया. इन 10 में से दो रिटायर पुलिस अधिकारी, एक रिटायर आईएएस अधिकारी, चार लोग पत्रकार हैं. वहीं बाकी तीनों में एक वरिष्ठ अधिवक्ता, एक पूर्व न्याययिक अधिकारी और एक एसोसिएट प्रोफेसर हैं.
बता दें कि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त के चयन की सिफारिश एक तीन सदस्यीय समिति द्वारा की जाती है. जिसके अध्यक्ष मुख्यमंत्री होते हैं. इसके अलावा विधानसभा में विपक्ष के नेता और मुख्यमंत्री द्वारा नामित मंत्रिमंडल के एक सदस्य होते हैं. इनका कार्यकाल पांच वर्ष की अवधि के लिए या 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक होता है.
नियमों को ताक पर भाजपा नेता को बनाया गया सूचना आयुक्त
उत्तर प्रदेश सरकार के पीआरओ विभाग ने इस नियुक्ति को लेकर सात मार्च की शाम को प्रेस रिलीज जारी की. इसमें सूचना आयुक्त नियुक्त हुए स्वतंत्र प्रकाश गुप्त का परिचय वरिष्ठ अधिवक्ता बताया गया है. जबकि बदायूं के रहने वाले स्वतंत्र प्रकाश भाजपा नेता हैं. ये उत्तर प्रदेश भाजपा के कानून एवं विधि प्रकोष्ठ के सह-संयोजक रह चुके हैं. बीते 12 फरवरी 2024 को इन्हें भाजपा की ओर से लोकसभा चुनाव के लिए बरेली कैंट का प्रभारी बनाया गया है.
सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई एक्ट) में सूचना आयुक्त की पात्रता का मापदंड बताया गया है.
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Contributeआरटीआई एक्ट में साफ-साफ लिखा गया है कि किसी भी राजनीतिक दल से जुड़ा व्यक्ति सूचना आयुक्त नहीं बन सकता है, लेकिन सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली समिति ने गुप्त की सिफारिश की और राज्यपाल ने उसे मंजूरी दे दी.
गुप्त को जुलाई 2021 में तत्कालीन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने गुप्त को कानूनी एवं विधि प्रकोष्ठ का सह संयोजक बनाया था. नए अध्यक्ष बनने के बाद अभी तक नए संयोजक नहीं बनाए गए हैं. ऐसे में फिलहाल गुप्त ही उस भूमिका को निभा रहे हैं.
गुप्त लगातार भाजपा के लिए लिखते-बोलते नजर आते हैं. 3 दिसंबर 2023 को उहोंने फेसबुक पर पोस्ट किया, ‘‘चप्पा-चप्पा भाजपा’. वे भाजपा नेता के तौर पर मीडिया को अक्सर इंटरव्यू देते रहते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चलाई जा रही जन विश्वास यात्रा समेत भाजपा की अन्य गतिविधियों से जुड़े कार्यकर्मों में भी गुप्त दिखाई देते हैं.
बदायूं के रहने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं, ‘‘गुप्त शुरू से आरएसएस से जुड़े रहे हैं. कॉलेज के दिनों में वो अखिल भारतीय विधार्थी परिषद के जिला अध्यक्ष रहे. उसके बाद भाजपा में शामिल हो गए. जिसमें वो राज्य कार्यकरणी के सदस्य रहे. 2017 और 2022 में इन्होंने बदायूं सदर सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए आवेदन भी किया लेकिन पार्टी से टिकट नहीं मिला.’’
गुप्त विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहते थे. इसकी तस्दीक उनके नाम पर बना एक फैन पेज करता है.
ये वरिष्ठ पत्रकार आगे बताते हैं, ‘‘गुप्ता एक अच्छे वक्ता हैं. भाजपा में इनकी अच्छी पकड़ थी लेकिन बीच में हाशिये पर चले गए थे. जिला बार काउंसिल में अध्यक्ष के लिए चुनाव लड़े लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. भाजपा ने टिकट तो नहीं दिया लेकिन विधानसभा और लोकसभा चुनाव में इन्हें प्रभारी बनाती रही है.’’
न्यूज़लॉन्ड्री ने गुप्ता से बात की. वह तस्दीक करते हैं कि पार्टी में कई उच्च पदों पर रहे हैं. वे कहते हैं, “धीरे-धीरे चीजें बदल गई. पार्टी के लिए बहुत काम किया लेकिन अभी मेरे पास पार्टी का सीधे कोई दायित्व नहीं है. हालांकि, मेरी विचारधारा तो भाजपा की ही है.’’
गुप्ता अभी किसी दायित्व के होने से इनकार करते हैं. हालांकि, 27 जनवरी को जब योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी बदायूं जिले के सैजनी गांव में एचपीसीएल इकाई का उदघाटन करने पहुंचे थे तो गुप्ता ने वहां मंच से भाषण दिया था. वे जन विश्वास यात्रा में भाजपा सरकार में हुए फायदे गिनाते और मोदी को ही क्यों चुनें, इसके लिए तर्क देते नजर आते हैं.
आरटीआई कानून के लिए संघर्ष करने वालों में से एक निखिल डे कहते हैं कि कोई व्यक्ति किसी भी राजनीतिक दल से जुड़ा हो उसे सूचना आयुक्त बनाना एक्ट के खिलाफ है. उस व्यक्ति से स्वतंत्रता की उम्मीद आप नहीं कर सकते हैं और जो स्वतंत्र नहीं हो सकता, वो कैसे सूचना देगा.’’
हमने इस बारे में उत्तर प्रदेश सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के निदेशक शिशिर को कुछ सवाल भेजे हैं. अगर उनका कोई जवाब आता है तो उसे खबर में जोड़ दिया जाएगा.
सीएम योगी की शान में कसीदे पढ़ने वाले पत्रकार बने सूचना आयुक्त
वहीं, जिन 4 पत्रकारों को सूचना आयुक्त नियुक्त किया गया है, उसमें से एक वीरेंद्र सिंह वत्स हैं. इन्होंने गत 28 फरवरी को फेसबुक पर योगी आदित्यनाथ के साथ तस्वीर लगाकर लिखा है, ‘‘तू धधकती आग है, तू बरसता राग है, नींव है निर्माण है, तू प्रेम है बैराग है....परम प्रतापी मुख्यमंत्री माननीय श्री योगी आदित्यनाथ जी महाराज से कल लखनऊ में मिलने का सुअवसर प्राप्त हुआ.’’
लंबें समय तक वत्स हिन्दुस्तान हिंदी के न्यूज़ एडिटर रहे हैं. ये पत्रकारिता के साथ-साथ कविताएं और गीत भी लिखते हैं. 26 जनवरी को उत्तर प्रदेश की झांकी जब कर्तव्य पथ से गुजर रही थी तो इनका ही लिखा गीत “जहां अयोध्या सियाराम की देती समता का संदेश’’ बजा था.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वत्स ने और भी कई गीत लिखे हैं. जैसे- सीता राम अयोध्या लौटे घर-घर आज दीवाली है, काशी का गौरव लौटा है जब खुला भव्य गलियारा, विश्वनाथ से मिलकर पुलकित है गंगा की धारा और जहां अयोध्या सिया राम की देती समरसता का संदेश, कला और संस्कृति की धरती धन्य धन्य उत्तर प्रदेश आदि.
वत्स के अलावा जिन पत्रकारों को सूचना आयुक्त बनाया गया है उनमें पदुम नारायण द्विवेदी, राजेंद्र सिंह और नदीम शामिल हैं. नदीम लखनऊ में नवभारत टाइम्स (एनबीटी) के संपादक हैं. राजनीतिक गलियारों में चल रही चर्चाओं को लेकर वो लिखते रहते हैं. वहीं राजेंद्र सिंह, अमर उजाला, मेरठ के संपादक हैं. बिजनौर के रहने वाले सिंह का मीडिया में लंबा अनुभव है. उनके एक सहकर्मी ने बताया कि वह बेहतरीन पत्रकार हैं.
वहीं, पदुम नारायण द्विवेदी, हिन्दुस्थान समाचार के समाचार समन्वयक हैं. हिन्दुस्थान समाचार राष्ट्रीय स्वयंमसेवक संघ यानी आरएसएस से जुड़ी न्यूज़ एजेंसी है. इसकी स्थापना 1 दिसंबर, 1948 के दिन शिवराम शंकर उर्फ़ दादा साहेब आप्टे ने की थी. आप्टे आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक थे. जिन्होंने आगे चलकर विश्व हिन्दू परिषद की भी स्थापना की और इसके पहले महासचिव बने.
द्विवेदी का सोशल मीडिया भाजपा नेताओं के ट्वीट को रीट्वीट करने से, नेताओं को जन्मदिन की बधाई देने से भरा हुआ है. वे पूर्व में दैनिक जागरण से जुड़े रहे हैं. हालांकि, उनका लिखा ना ही उनके सोशल मीडिया पर नज़र आता है और हिन्दुस्थान समाचार की वेबसाइट पर.
एसोसिएट प्रोफेसर जो हर रोज लिखते हैं लेख
डॉक्टर दिलीप कुमार अग्निहोत्री विद्यांत हिंदू कॉलेज लखनऊ में एसोसिएट प्रोफेसर हैं. अग्निहोत्री लगातार अख़बारों और मीडिया वेबसाइट पर लिखते रहते हैं. इन्होंने भी फेसबुक पर योगी आदित्यनाथ के साथ वाली प्रोफाइल पिक्चर लगाई हुई है.
अग्निहोत्री लगातार योगी आदित्यनाथ सरकार की शान में कसीदे पढ़ते हुए लेख लिखते नजर आते हैं. उदाहरण के तौर पर जब इंडियन एक्सप्रेस में पश्चिम बंगाल का विज्ञापन छपा तो योगी सरकार की काफी किरकिरी हुई. इसके बाद इन्होंने स्वदेश नाम के डिजिटल वेबसाइट पर एक लेख लिखा जिसका शीर्षक था ‘‘बेशुमार हैं यूपी की प्रगति के प्रमाण’’
इस लेख में अग्निहोत्री लिखते हैं, ‘‘विगत चार वर्षों में उत्तर प्रदेश के विकास की बेशुमार तस्वीरें हैं. इनके आधार पर अनगिनत विज्ञापन बनाये जा सकते हैं. दूसरी ओर पश्चिम बंगाल एक पिछड़ा राज्य है. यहां पहले कम्युनिस्ट व इस समय तृणमूल कांग्रेस के शासन में विकास का मुद्दा कभी नहीं रहा.’’
अग्निहोत्री भाजपा के थिंक टैंक माने जाने वाली संस्थान श्यामा मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन के लिए भी लगातार लिखते हैं. यहां इनके कुल ग्यारह लेख प्रकाशित हुए हैं. सब प्रधानमंत्री मोदी के गुणगान में हैं. हालांकि, वो पीएम पर लिखते हुए सीएम योगी आदित्यनाथ को नहीं भूलते है. जैसे इस लेख में आप पढ़ सकते हैं.
इसी साल फरवरी में जब केंद्रीय बजट पास हुआ तो अग्निहोत्री ने एक लेख लिखा जिसका शीर्षक है, ‘‘बजट में मोदी की गारंटी’’. इस लेख का पहला वाक्य है, ‘‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दूरदर्शी नीतियों,समर्पण और टीम भावना के साथ देश अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी है.’’
अग्निहोत्री अलग-अलग अख़बारों में भी लिखते हैं. उसके कुछ उदाहरण आप नीचे की तस्वीरों में देख सकते हैं.
सूचना आयुक्त करते क्या हैं?
सूचना आयुक्त का काम सूचना के अधिकार कानून के तहत मांगी गईं सूचना मिले, यह सुनिश्चित कराना है.
यूपी सूचना आयोग की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, आयुक्त की जिम्मेदारी सूचना का अधिकार अधिनियम के उपबन्धों को पूर्णतः प्रभावी बनाते हुए प्रत्येक नागरिक के सूचना के अधिकार को सुरक्षित रखना है. आयोग के समक्ष दायर अपीलों और शिकायतों का न्यायोचित एवं समयबद्ध निस्तारण सुनिश्चित करना.
इन्हें अलग-अलग विभाग और मंडल अलॉट होते हैं. उन विभागों और क्षेत्रों से जुड़ी जानकारी के लिए जब जब कोई आवेदन करता है और विभाग जवाब नहीं देता तो वो अपील करता है. अपील की सुनवाई सूचना आयुक्त करते हैं. कई दफा ये सूचना नहीं देने वाले संबंधित अधिकारी पर जुर्माना भी लगाते हैं.
लंबे संघर्ष के बाद 2005 में सूचना का अधिकार कानून बना, लेकिन भारत के अलग-अलग राज्यों में इसे लगातार कमजोर किया जा रहा है. उत्तर प्रदेश उन राज्यों में से एक है जहां आरटीआई से जानकारी निकालना मुश्किल होता जा रहा है.
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