एनएल सारांश: सरल शब्दों में जटिल मुद्दों को समझाने की कोशिश.
देश की सर्वोच्च अदालत ने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया है. मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी. आर. गवई, जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस योजना को असंवैधानिक करार दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ये योजना असंवैधानिक है, इसीलिए इसे तुरंत बंद कर दिया जाए.
साथ ये मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है क्योंकि उन्हें नहीं पता चल पाता कि किसने कितना चंदा किस पार्टी को दिया. कोर्ट ने कहा कि चंदा देने देने वाले को अपना नाम गुप्त रखने की छूट नहीं दी जा सकती. वहीं, कोर्ट ने माना कि ये योजना सत्तासीन पार्टी को ही लाभ पहुंचाती है.
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना को यह कहकर उचित नहीं ठहराया जा सकता कि इससे राजनीति में काले धन पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी. चंदा देने वाले की गोपनीयता महत्वपूर्ण जरूर है, लेकिन इसे आधार बनाकर राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता हासिल नहीं की जा सकती.
तो सुप्रीम कोर्ट इस नतीजे पर कैसे पहुंची? ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक कैसे पहुंचा? क्या है चुनावी बॉन्ड की कहानी और फैसले के बाद कौन क्या बोला?
सारांश में हम इन्हीं सब सवालों पर बात करने वाले हैं.