29 मई को पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला अपने दो दोस्तों के साथ, मानसा में रहने वाली अपनी मौसी के घर जा रहे थे. इस दौरान रास्ते में घेरकर उनकी हत्या कर दी.
पिछले कुछ सालों में पंजाब के संगीतकारों पर हमले बढ़े हैं साथ ही उन्हें ज्यादा धमकियां भी दी जाती हैं. मूसेवाला को गाने के लिए पहला मौका देने वाले गिप्पी गरेवाल ने भी 2018 में धमकियों की शिकायत की थी. उसी साल पंजाबी गायक नवजोत सिंह की पांच गोलियां मार कर हत्या कर दी गई थी. 2018 में ही गायक परमीश वर्मा पर मोहाली में हमला हुआ था जिसमें उनके पैर पर चोट लगी थी. इस हमले की जिम्मेदारी गैंगस्टर दिलप्रीत सिंह ने ली थी. वर्मा के अलावा बलकार सिद्धू, करण औजला, आर नेत, मनकीरत औलख जैसे कई अन्य कलाकारों ने भी धमकी मिलने की शिकायत की है.
मूसा और मानसा का मान
सिद्धू की हत्या के करीब पांच दिनों बाद से उनके प्रशंसकों, दोस्तों, ग्रामीणों और राजनेताओं का मूसा गांव में आना-जाना लगा हुआ है. मूसेवाला का परिवार करीब 15 दिन पहले ही इस नए घर में आया था. इससे पहले वे गांव के पुराने घर में ही रहते थे जहां अभी भी कांग्रेस का झंडा और पोस्टर लगा हुआ है.
सिद्धू अपने मां-बाप की इकलौती संतान थे. पिता बलकार सिंह कुछ समय सेना में रहने के बाद, चोट लगने के कारण सेना से रिटायर हो गए और दमकल विभाग में काम करने लगे. उनकी मां चरण कौर 2018 में, करीब 600 वोटों से जीत हासिल करने के बाद मूसा गांव की सरपंच बनीं. सिद्धू की शादी भी होने वाली थी. पहले उनकी शादी अप्रैल में होनी थी लेकिन चुनावों के कारण उसे अक्टूबर तक टाल दिया गया. उनकी शादी संगरूर जिले के एक अकाली दल के नेता की बेटी से होने वाली थी, दोनों की सगाई हो चुकी थी.
अपने इकलौते बेटे को खो चुके परिवार ने मीडिया से दूरी बनाई हुई है. पुलिस की टीम किसी भी मीडियाकर्मी को घर के आंगन में नहीं जाने दे रही. आंगन में ही एक टेंट लगा है जहां सभी रिश्तेदार, दोस्त और नेता शोक व्यक्त करने के लिए आते हैं. बलकार सिंह ज्यादातर समय टेंट में ही रिश्तेदारों और वहां आ रहे लोगों से मुलाकात में काट देते हैं. लेकिन चरण कौर की तबीयत खराब होने के कारण घर के अंदर आराम कर रही थीं.
टेंट में शोक व्यक्त कर रहे लोगों में मूसेवाला की 13 वर्षीय भतीजी गुरलीन कौर भी मौजूद थीं. गुरलीन कहती हैं, "वह (सिद्धू) हमारे घर आ रहे थे, जिस दिन उन्हें गोली मारी गई. ज्यादातर समय वह अपने बॉडीगार्ड्स के साथ ही आया करते थे लेकिन कभी-कभी वह खुद ही आ जाते थे और फिर वह मुझे गोल गप्पे खिलाने के लिए बाहर ले जाते थे.”
मूसा गांव के लोगों का मानना है कि सिद्धू मूसेवाला ने ही उनके जिले और गांव का नाम रौशन किया है. उसके कारण ही लोग आज मानसा और मूसा दोनों को जानने लगे हैं. टेंट में मौजूद गांव के ही नवदीप सिंह कहते हैं, “मानसा बहुत पिछड़ा हुआ इलाका है, लेकिन अब लोग जानने लगे हैं.”
मालवा क्षेत्र में आने वाले मानसा जिले में पानी की गुणवत्ता बहुत खराब है. देश में सबसे ज्यादा कैंसर के मरीज इसी जिले से हैं. जिले की साक्षरता दर 58 प्रतिशत है.
मूसा गांव की 60 वर्षीय अमरजीत कौर और 55 वर्षीय शिंदर कौर कहती हैं, “सिद्धू मूसेवाला ने मानसा और यहां तक कि मूसा गांव को भी प्रसिद्ध किया. इससे पहले किसी को हमारे गांव के बारे में पता भी नहीं होगा.”
घर में मातम मनाने वालों में 40 वर्षीय कांग्रेस कार्यकर्ता मंजीत कौर भी थीं, जिन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान मूसेवाला के साथ काम किया था. वह कहती हैं, "वह (सिद्धू) अपने गांव में विकास कार्य करने पर बहुत ध्यान केंद्रित कर रहा था. वह जिस जगह से आता है, उसे उस पर भी बहुत गर्व था. यदि आप ध्यान दें, भले ही वह हिंदी बोलता है, लेकिन शायद ही आपको उसका हिंदी में कोई इंटरव्यू मिलेगा. वह हमेशा पंजाबी में बात करते थे. एक शुद्ध जट्ट लड़के की तरह.”
नवदीप सिंह समझाते हुए बताते हैं कि वह अन्य गायकों से काफी अलग था. “अधिकतर गायक प्रसिद्ध होने के बाद चंडीगढ़ या मुंबई चले जाते हैं लेकिन सिद्धू अपने गांव में ही रहा. अगर वह किसी काम से नहीं जा रहे होते तो वह हमेशा अपने गांव में रहते थे.”
वह कहते है कि मूसेवाला भले ही चुनाव हार गए लेकिन वह समाज सेवा कर रहे थे. उनकी मां सरपंच हैं तो उन्होंने कई सालों से खाली मैदान पर स्टेडियम और जिम बनवाना शुरू किया था. वह हर साल गांव में कैंसर के लिए कैंप भी लगवाते थे.
नवदीप सिंह कहते है, “सिद्धू अपने गांव के लोगों के लिए एक कैंसर अस्पताल भी बनाना चाहता था.”
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने सिद्धू के परिवार से मिलने के बाद सिद्धू मूसेवाला के नाम पर कैंसर अस्पताल और स्पोर्ट्स स्टेडियम बनवाने की घोषणा की.
हरियाणा के सिरसा से शोक व्यक्त करने सिद्धू के घर आए उनके फैन मनदीप कहते हैं, “सिद्धू की एक खासियत जो उसे सबसे अलग बनाती थी, कि वह साधारण तरीके से रहते थे और सबसे मुलाकात करते थे.”
मीडिया से चुप्पी और राजनीतिक संदेश
मूसा गांव के लोग मीडिया से काफी सतर्कता के साथ बात कर रहे हैं. नवदीप सिंह कहते हैं, "हम नहीं चाहते कि मीडिया इस मामले में कुछ भी सनसनीखेज खबर फैलाए. वैसे भी मीडिया चैनलों को इसे एक बड़ा मुद्दा बनाने के लिए केवल एक छोटे से ट्रिगर की जरूरत है. एक परिवार ने अपना बेटा खो दिया. वे मीडिया से क्या बात करें? इसलिए हम लोग मीडिया के तमाशे में भाग नहीं लेना चाहते.”
सिद्धू के घर पर कवरेज के लिए आए स्थानीय पत्रकारों में से एक आनलाइन चैनल के पत्रकार कहते हैं, “ऐसा नहीं है कि लोग मीडिया से गुस्सा हैं. लेकिन उन्हें डर है कि मीडिया इस त्रासदी को तोड़-मरोड़ कर पेश न कर दे. इसलिए कोई भी बोलना से मना कर रहा है. वैसे भी किसान विरोध-प्रदर्शन के दौरान सबने देखा की कैसे मीडिया ने सब कुछ तोड़ मरोड़ कर पेश किया.”
एक अन्य पंजाबी पत्रकार कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि गुस्सा है. हम स्थानीय पत्रकारों ने किसान आंदोलन में इन लोगों का समर्थन किया था. वो हमें जानते हैं, लेकिन दाह-संस्कार किए जाने वाले दिन किसी भी मीडिया को अंतिम संस्कार के स्थल में जाने की अनुमति नहीं थी. हम सबने दूर के एक घर से शूट किया. परिवार सिर्फ प्राइवेसी चाहता है.”
3 जून के दिन ग्रामीणों ने सीएम भगवंत मान के दौरे का विरोध प्रदर्शन किया. ग्रामीण आम आदमी पार्टी की सरकार से नाराज हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि सुरक्षा कटौती के कारण ही सिद्धू की मौत हुई, और इसलिए वह सीएम को आने नहीं देना चाहते थे. मुख्यमंत्री मान को पहले 8 बजे आना था लेकिन विरोध प्रदर्शन के कारण उन्हें देरी से आना पड़ा. वहीं आम आदमी पार्टी के विधायक गुरप्रीत सिंह बनावली को मजबूर होकर माफी मांगनी पड़ी और गांव से लौटना पड़ा.
ग्रामीणों के विरोध के बाद जिला कलेक्टर ने सिद्धू के परिवार से बातचीत कर सीएम के दौरे के दौरान लोगों को विरोध प्रदर्शन नहीं करने को कहा. इसके बाद सुबह करीब 10 बजे भगवंत मान गांव पहुंचे और करीब 1 घंटा परिवार के साथ रहे. वहीं 4 जून को गृह मंत्री अमित शाह से मिलने सिद्धू मूसेवाला का परिवार चंडीगढ़ पहुंचा.
ग्रामीणों ने दावा किया कि मूसेवाला का घर राजनीतिक जंग का मैदान बन गया है. अखिल कहते हैं, “कांग्रेस पार्टी ‘आप सरकार’ के खिलाफ राजनीति करने के लिए दौरा कर रही है. वहीं ‘आप’ के नेता डैमेज कंट्रोल के लिए जा रहे हैं.”
माना जा रहा है कि मूसेवाला का परिवार इस बार के संगरूर लोकसभा उप चुनावों में जिस भी पार्टी का समर्थन करेगा, उसे सिद्धू के मौत के कारण सहानुभूति लहर से चुनाव जीतने में मदद मिलेगी.