क्या हुआ जब मिल बैठे छह दलित-आदिवासी पत्रकार और राहुल गांधी.
राहुल गांधी से यह मुलाकात दिसंबर में हुई थी. हालांकि, उनकी टीम ने अभी इस बातचीत का वीडियो जारी नहीं किया है.
चार नवंबर की दोपहर मेरे मोबाइल पर एक अनजान नंबर से फोन आया. फोन करने वाले ने सवाल किया, क्या मेरी बात अवधेश से हो रही है?
मैंने जवाब दिया- हां, मैं बोल रहा हूं.
उधर से जवाब आया- जी, मैं राहुल गांधी के दफ्तर से बोल रहा हूं, दो मिनट होंगे आपके पास?
मैंने कहा- जी बताइए?
राहुल गांधी आपके साथ बात करना चाहते हैं. उस सज्जन की बात सुन कर मुझे थोड़ी हैरानी हुई, मैं सोच रहा था कि राहुल गांधी भला मेरे साथ क्यों बात करना चाहेंगे. न तो मैं कोई राजनैतिक व्यक्ति हू्ं और न ही कांग्रेस पार्टी से मेरा कभी कोई संबंध रहा है. बतौर पत्रकार मैंने कभी कांग्रेस पार्टी को बीट के रूप में कवर भी नहीं किया है. यह मेरे लिए इसलिए अजीब बात थी क्योंकि आमतौर पर पत्रकार नेताओं को फ़ोन कर उनसे बाइट या इंटरव्यू लेने की गुजारिश करते हैं, लेकिन यहां बात उलट थी. यहां नेता के दफ्तर से एक पत्रकार के साथ बातचीत की पेशकश थी, वो भी कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं में से एक राहुल गांधी. मुझे संदेह हो रहा था कि क्या सही में ये कॉल राहुल गांधी के दफ्तर से ही आई है.
मैं इस उहापोह से बाहर निकलता, उससे पहले ही फोन के दूसरी तरफ मौजूद व्यक्ति ने मुझसे कहा, "आपने उनका एक प्रेस कॉन्फ्रेंस देखा होगा जहां पर राहुल जी हमारे मीडिया साथियों से पूछते हैं कि बताइए यहां पर कितने दलित ओबीसी हैं?"
मैंने कहा- हां मुझे याद है.
सामने वाले ने कहा- इसी मुद्दे पर राहुल गांधी जी आपसे बात करना चाहते हैं, क्योंकि जैसा मुझे पता चला है कि आप भी दलित बैकग्राउंड से हैं. इस बातचीत का फोकस मीडिया और देश में दलितों की क्या स्थिति है उस पर होगा. मीडिया में उनकी भागीदारी क्यों नहीं है, इस पर भी चर्चा होगी. ये सारी बातचीत ऑन रिकॉर्ड होगी. आपका मीडिया का जो अनुभव है, उस पर भी बात कर सकते हैं.
इस बीच मेरे ज़हन में कई सवाल उठ रहे थे. कहीं ये स्क्रिप्टेड (पहले से तय) तो नहीं होगा? क्या मैं भी राहुल गांधी से सवाल कर पाऊंगा या यह बातचीत सिर्फ एक तरफा होगी? मैंने कहा एक पत्रकार के नाते मैं चाहता हूं कि मैं भी राहुल से कुछ सवाल कर पाऊं? इस पर उन्होंने हामी भर दी.
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