एमजे अकबर, ब्रेन ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया के प्रतिनिधि के तौर पर बोली में शामिल होंगे. वहीं, गुजरात स्टेट एक्सपोर्ट कॉरपोरेशन के सीएमडी राकेश रमनलाल शाह भी इसे खरीदने के लिए बोली लगा रहे हैं.
छह दशक पहले प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) के एकाधिकार को खत्म करने के लिए बनाई गई यूनाइटेड न्यूज़ ऑफ इंडिया (यूएनआई) एजेंसी की इस समय नीलामी की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. इसका मालिकाना हक़ गौतम अडाणी के रिश्तेदार राकेश रमनलाल शाह या वरिष्ठ पत्रकार एमजे अकबर के हाथ में जा सकता है. दरअसल, यूएनआई को खरीदने के लिए जो पांच लोग बोली लगा रहे हैं, उनमें ये दोनों भी शामिल हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री को मिली जानकारी के मुताबिक, जिन पांच लोगों ने यूएनआई की बोली में हिस्सा लिया है उनके नाम ब्रेन ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया, स्टेट्समैन अख़बार, राकेश रमनलाल शाह, चौथी दुनिया के संपादक रहे संतोष भरतिया और कोलकता की कंपनी फोर स्क्वायर इंफ्रास्ट्रक्चर हैं.
यूएनआई की बोली प्रक्रिया से जुड़े एक शख्स ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि एमजे अकबर, ब्रेन ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया के प्रतिनधि के तौर पर बोली में शामिल होंगे. वहीं, गुजरात स्टेट एक्सपोर्ट कॉरपोरेशन के सीएमडी राकेश रमनलाल शाह भी इसमें शामिल हैं. शाह की शादी अडानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडाणी की बहन से हुई है.
सूत्रों की मानें तो अगले दो से तीन महीने में बोली की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी. उसके बाद यह तय हो जाएगा कि यूएनआई का मालिकाना हक़ किसके पास जाएगा. यूएनआई से जुड़े कर्मचारियों और अधिकारियों में इस बात की चर्चा और भरोसा है कि यह बोली शाह ही जीतेंगे. खैर ये तो अटकलें हैं. लेकिन अगर ऐसा होता है तो एनडीटीवी और आईएएनएस न्यूज़ एजेंसी के बाद यूएनआई तीसरा ऐसा न्यूज़ प्लेटफॉर्म होगा, जिस पर अडाणी समूह या उनके करीबी का स्वामित्व होगा.
बता दें कि यूएनआई पिछले कई सालों से घाटे में चल रही है. साल 2023 से इसे दिवालिया घोषित कर दिया गया था. अब नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) के जरिए इसकी बोली लगाई जा रही है.
ट्रिब्यूनल द्वारा नियुक्त पूजा बाहरी, इस पूरी प्रक्रिया को देख रही हैं. पूजा बताती हैं, ‘‘काफी लोग यूएनआई में अपनी दिलचस्पी दिखा रहे हैं. अभी इसकी प्रक्रिया जारी है. अब तक कोई नाम तय नहीं हुआ है क्योंकि यह कोर्ट को तय करना है. हालांकि, यूएनआई जल्द पुर्नजीवित होगा. हमें आशा है कि यह सब दो से तीन महीने में हो जाएगा.’’
यूएनआई के पतन की शुरुआत साल 2006 में हुई, जब शेयरधारकों सहित इसके उपभोक्ताओं ने एक-एक करके इसे अनसब्सक्राइब करना शुरू कर दिया था. धीरे-धीरे एजेंसी की वित्तीय स्थिति इतनी खराब हो गई कि साल 2017 से इसने अपने कर्मचारियों को वेतन देना भी बंद कर दिया. संकट की इस घड़ी में यूएनआई के सबसे बड़े और भरोसेमंद ग्राहक प्रसार भारती ने भी अक्टूबर 2020 में इसकी सेवाएं लेना बंद कर दिया. सरकारी प्रसारणकर्ता प्रसार भारती हर महीने 57 लाख रुपए यूएनआई को देता था.
ऐसे में अप्रैल 2023 में यूएनआई के कर्मचारी यूनियन ने एनसीएलटी में अपना बकाया लेने के लिए केस फाइल किया. इसमें बताया गया कि कर्मचारियों के 103 करोड़ रुपए बकाया हैं, जिसमें वर्तमान कर्मचारियों का वेतन, ग्रेच्युटी और पूर्व कर्मचारियों की भविष्य निधि शामिल है.
यूएनआई के एक पूर्व कमर्चारी बताते हैं, ‘‘हमारा केस सुनने के बाद कोर्ट ने रेजोल्यूशन प्रोफेशनल को नियुक्त करने का आदेश दिया. अब कंपनी उन्हीं की देख रेख में चलती है. कंपनी के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर को सस्पेंड कर दिया गया, इसके बाद बोली लगाने की प्रक्रिया शुरू हुई.’’
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