रवीश कुमार जैसी सफलताएं प्रेरणा तो देती हैं, पर ये हर किसी को हासिल नहीं.
पांच महीने पहले पत्रकार सोहित मिश्रा सुर्खियों में आए, जब उन्होंने अपने वरिष्ठों द्वारा दिए अडानी समूह के खिलाफ आरोपों की जांच की मांग करते हुए राहुल गांधी की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में "हंगामा पैदा करने" के निर्देश को नज़रअंदाज़ किया.
उस समय मिश्रा एनडीटीवी के मुंबई ब्यूरो प्रमुख थे, जिसे दिसंबर 2022 में अडानी ने अधिग्रहित कर लिया था.
मिश्रा ने यह बात मानने से इनकार कर दिया और इस्तीफा दे दिया. एक सप्ताह बाद, उन्हें नोटिस अवधि पूरी किए बिना जाने के लिए कह दिया गया. एक "सपने के सच होने" जैसी नौकरी खोने के बाद, मिश्रा ने अपने विकल्पों को लेकर चिंतन किया.
प्रिंट पत्रकारिता उनकी मिजाज़ की नहीं थी. अन्य समाचार चैनलों को लेकर उन्होंने सोचा, "अगर मैं ऐसे चैनल में टिक नहीं सका जो अभी 'गोदी' बनने के शुरुआती चरण में है, तो मैं अन्य चैनलों में कैसे टिक पाऊंगा?"
और इस तरह, मिश्रा एक और अधिक संकटमय रास्ते पर चल पड़े - उन्होंने अपना खुद का यूट्यूब चैनल शुरू किया. उन्होंने पत्रकार रवीश कुमार से प्रेरणा ली, जिन्होंने अडानी के अधिग्रहण के तुरंत बाद एनडीटीवी छोड़ दिया था और इसके बजाय एक सफल यूट्यूब चैनल शुरू किया था.
7 सितंबर को अपलोड किए गए मिश्रा के पहले वीडियो को दो दिनों में 90,000 बार देखा गया. उनके दूसरे, जिसमें एनडीटीवी की नौकरी से विदाई ली, को 20 लाख से अधिक बार देखा गया. इसके बाद उन्होंने औपचारिक रूप से अपना चैनल, सोहित मिश्रा ऑफिशियल लॉन्च किया, जिसके आज 3.3 लाख से अधिक सब्सक्राइबर हैं.
लेकिन मिश्रा भाग्यशाली लोगों में से एक हैं. पिछले कुछ वर्षों में, भारत में कॉर्पोरेट मीडिया ने कई अधिग्रहण, पुनर्गठन और छंटनी देखी हैं, और "राष्ट्र-विरोधी" के रूप में देखे जाने वाले पत्रकारों के खिलाफ नाराजगी बढ़ रही है. जैसे ही पत्रकारों ने टेलीविज़न न्यूज़ रूम छोड़ा, उनमें से कई ने यूट्यूब की ओर रुख किया और अकेले चलने का जोखिम उठाया.
रवीश, मिश्रा और फेय डिसूजा जैसे कुछ लोग अपने दर्शकों को अपने साथ ले गए. लेकिन जिन पत्रकारों के पास पहले से ही प्रसिद्धि नहीं थी, उनके लिए यूट्यूब पर शुरुआत करना कठिन रहा है.
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