6 दिसंबर 1992 को जब बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया जा रहा था तो भीड़ का नेतृत्व करने वालों में से एक विनय कटियार भी थे. आगे चलकर वो भाजपा के वरिष्ठ नेता हुए, लेकिन अब जब वहां राम मंदिर बन रहा तो उनकी कहीं चर्चा तक नहीं है.
90 के दशक में राम मंदिर का आंदोलन तेज हुआ और हिंसक भी हुआ. जो लोग इसका नेतृत्व कर रहे थे उसमें से एक विनय कटियार भी हैं. एक तरफ अयोध्या में राम मंदिर की तैयारी जोर-शोर से चल रही है तो दूसरी तरफ कटियार अपने घर में कुछ गार्ड्स के साथ अकेले बैठे हुए हैं. मीडिया वाले आते हैं और इंटरव्यू लेकर चले जाते हैं.
क्या उस दौर के नेतृत्व की उपेक्षा हो रही है? जब हमने कटियार से यह सवाल पूछा तो वे थोड़े संकुचाए लेकिन फिर बोले, “नए लोग आते हैं. और पुराने चले जाते हैं. यही परंपरा है. कहीं कुछ बिगड़ेगा तो संभालने के लिए हम हैं.”
मीडिया रिपोर्टर्स की मानें तो कटियार को ग्यारह जनवरी तक प्राण प्रतिष्ठा का न्योता नहीं मिला था. हालांकि, वो मीडिया के इस दावे को खारिज करते हैं.
चंपत राय द्वारा लालकृष्ण आडवाणी को राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह नहीं आने को लेकर कटियार कहते हैं, ‘‘उम्र को देखते हुए ऐसा कहा है. हम ही नहीं जा रहे हैं. क्या करेंगे वहां जाकर.’’
अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा क्या लोकसभा चुनाव की जल्दबाजी में हो रही है? इस पर कटियार कहते हैं, “ये कोई जल्दी में नहीं हो रहा है. आधे से ज़्यादा मंदिर बन चुका है. ऐसे में रामभक्तों को और ज्यादा प्रतीक्षा क्यों कराना.’’
इसके अलावा शंकराचार्यों की नाराजगी, स्थानीय दुकानदारों और निवासियों को विकास के नाम पर उजाड़े जाने और कांग्रेस द्वारा पूरे कार्यक्रम का राजनीतिकरण किए जाने को लेकर भी कटियार से बातचीत हुई. इन सवालों पर कटियार ने क्या कुछ कहा, जानने के लिए देखिए ये इंटरव्यू.