संसद टीवी के टिकर पर विज्ञापन: क्या सरकार की तारीफ का आदेश है?

संसद टीवी की तटस्थता पर लगातार सवाल उठ रहे हैं. कार्यवाही के दौरान विपक्ष के साथ भेदभाव और अब सरकार की उपलब्धियों के टिकर विज्ञापन का सच क्या है.

WrittenBy:अवधेश कुमार
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8 अगस्त को विपक्ष द्वारा संसद में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर बहस शुरू होने के साथ ही एक नया विवाद खड़ा हो गया. मणिपुर के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संसद में बोलने के लिए मजबूर करने की रणनीति के तहत विपक्षी गठबंधन इंडिया की ओर से लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान, लोकसभा की कार्यवाही के लाइव प्रसारण के दौरान टिकर पर मोदी सरकार की उपलब्धियों का जिक्र दौड़ने लगा. इस पर आयुष मंत्रालय, मत्स्य पालन विभाग, राजमार्ग और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजनाओं आदि से संबंधित टिकर शामिल थे.

इस पर विपक्ष ने हंगामा शुरू कर दिया. यह हंगामा तब तक जारी रहा जब तक कि टिकर हटा नहीं दिए गए. झारखंड के गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ बोल रहे थे. तभी बहुजन समाज पार्टी के सांसद दानिश अली ने सबका ध्यान संसद टीवी के टिकर की ओर खींचा. वहां अविश्वास प्रस्ताव के अपडेट के बजाय सरकार की उपलब्धियों का टिकर चल रहा था. 

विपक्ष का हंगामा बढ़ गया तो निशिकांत दुबे ने कुछ देर के लिए बोलना बंद कर दिया. फिर जब टिकर हटा दिए गए तब बोलना शुरू किया. इस दौरान लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा, “आपको पता है कि लोकसभा और राज्यसभा टीवी को मिलाकर संसद टीवी कर दिया है. पहले संसद टीवी नहीं था तो लोकसभा और राज्यसभा दोनों अलग से लाइव होते थे. आपने जो विषय ध्यान में डाला है, मैं उसे संज्ञान में लेता हूं.” 

लोकसभा की कार्यवाही कुछ मिनट के लिए रोक दी गई और टिकर बंद होने के बाद शुरू हुई लेकिन फिर से वही टिकर चलने लगे. तब विपक्ष ने फिर हंगामा शुरू कर दिया. इस बार लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला नाराज स्वर में बोले, “इसका बटन मेरे पास थोड़ी है. आप इतने वरिष्ठ सदस्य हैं, आप जानते हैं कि टीवी का कंट्रोल स्पीकर के पास नहीं होता है. ये टीवी का कंट्रोल एक सिस्टम है, जो आपने बनाया है. आपका इन छोटी बातों पर गंभीर टिप्पणी करना उचित नहीं है.”

संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने विपक्ष पर तंज करते हुए कहा कि गौरव गोगोई बोल चुके हैं. उनका पूरा वक्तव्य लाइव गया. अब इनको (विपक्षियों को) स्क्रॉल को लेकर क्या परेशानी है?

दरअसल टिकर पर सरकार की उपलब्धियों का दौड़ना एक बड़ी लापरवाही और सरकार के पक्ष में जानबूझकर पैदा की गई गड़बड़ी का संकेत है. संसद टीवी से हाल ही में छंटनी के तहत निकाले गए एक पत्रकार कहते हैं, "संसद टीवी के दोनों चैनलों (लोकसभा और राज्यसभा) के स्क्रीन पर टिकर चलाने की एक स्पष्ट नियमावली है. हालांकि यह अलिखित परंपरा ही है. इसके मुताबिक जैसे ही सदन की कार्यवाही शुरू होती है स्क्रीन से सारे टिकर हटा लिए जाते हैं. सिर्फ चेयर पर बैठे व्यक्ति का नाम और जिस विषय पर बहस हो रही है उसकी जानकारी वाला टिकर चलता है. यह सैद्धांतिक रूप से लिया गया निर्णय है ताकि सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों को बराबरी का अवसर मिल सके. जाहिर है अविश्वास मत पर बहस के दौरान टिकर पर गड़बड़ी करके इस सिद्धांत और टिकर नियमावली का उल्लंघन किया गया."

इस गड़बड़ी की बाबत हमने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के ओएसडी एनसी गुप्ता से संपर्क कर जानना चाहा कि क्या इस मामले में लोकसभा अध्यक्ष ने किसी तरह की जांच का आदेश दिया है या किसी के ऊपर कोई कार्रवाई की गई है? लेकिन उनका कोई जवाब नहीं मिला.

लोकसभा टीवी और राज्यसभा टीवी का तीन साल पहले एकीककरण हुआ था. दोनो को मिलाकर संसद टीवी का जन्म हुआ. चैनल पर विपक्ष लगातार आरोप लगाता रहा है कि वह अपनी कवरेज में विपक्ष के साथ भेदभाव कर रहा है. 

इसका हालिया उदाहरण राहुल गांधी द्वारा लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान दिया गया वक्तव्य है. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी सदन में 37 मिनट तक बोले लेकिन संसद टीवी के कैमरे ने उन्हें केवल 14 मिनट 37 सेकंड के लिए दिखाया, बाकी पूरा वक्त लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला नजर आए. ऐसे भी आरोप लगते हैं कि सत्ता पक्ष संसद टीवी का दुरुपयोग कर रहा है. 

सदन की कार्यवाही के दौरान संसद टीवी पर क्या चलेगा और क्या नहीं यह कैसे तय होता है, साथ ही हमने यह भी जानने का प्रयास किया कि क्या इसे लेकर कोई नियम है? 

संसद टीवी के संपादक श्याम सहाय हमारा सवाल सुनने से पहले ही कहते हैं, “मैं बहुत नीचे पद पर हूं, आपके किसी भी सवाल का जवाब मैं नहीं दे सकता. इसके लिए आप हमारे सीईओ रजित पुन्हानी से बात कीजिए.”

संसद टीवी के दूसरे संपादक विशाल दहिया ने लगभग वही बात दोहराई. दहिया सख्त लहजे में कहते हैं, "आपने गलत आदमी को फोन किया है. ऐसे किसी विषय पर बात करने के लिए वे अधिकृत नहीं हैं." 

इसके बाद हमने संसद टीवी के सीईओ रजित पुन्हानी से भी बात करने की कोशिश की. हालांकि, काफी प्रयासों के बाद भी उन्होंने फोन नहीं उठाया. हमने उन्हें लिखित में सवाल भेज दिए हैं. साथ ही दोनों संपादकों को भी कुछ सवाल भेजे हैं. हमें उनके जवाब का इंतजार है.

मालूम हो कि अभी तक सदन की कार्यवाही के दौरान सिर्फ कुछ ही चीजें टिकर पर चला करती थीं. इनमें स्पीकर और जिस सदन में कार्यवाही चल रही है उसका नाम लिखा होता था. इसके अलावा जिस विषय पर चर्चा हो रही होती है, वह विषय टिकर पर चलता था. कार्यवाही के दौरान कोई विज्ञापन चलाना या सरकार संबंधी किसी योजना के बारे में बताने की परंपरा नहीं थी.

इस बात की पुष्टि राज्यसभा टीवी के संसदीय मामलों के पूर्व संपादक अरविंद सिंह ने हमसे की. सिंह कहते हैं, “यह सरकार का नहीं बल्कि संसद का टीवी है. इसका मालिक संसद है. संसद टीवी में सत्ता और विपक्ष दोनों बराबर के स्टेकहोल्डर हैं. इसलिए सत्ता और विपक्ष दोनों के नेताओं को बराबर दिखाया जाना चाहिए. लेकिन सरकार ऐसे टिकर चलाकर इसका दुरुपयोग कर रही है.” 

वे आगे कहते हैं, “राज्यसभा टीवी की जब शुरुआत हुई तो प्रसारण के दौरान क्या चलेगा, इस बाबत एक मीटिंग हुई थी. जिसमें हम सब शामिल थे. तब निर्णय लिया गया कि जो भी सदस्य बोलेंगे उनका नाम, पार्टी का नाम, उस समय जो चेयरपर्सन होगा उनका नाम और जिस विषय पर सदस्य बोलें उसका टिकर चलेगा. इसके कुछ महीनों बाद लोकसभा टीवी ने भी यही परंपरा अपना ली. तब से यही चलता आ रहा था. इसको लेकर मेरी जानकारी में कोई लिखित नियम नहीं बनाया गया है.”

संसद टीवी में काम करने वाले एक कर्मचारी ने हमें जानकारी दी कि 8 अगस्त को टिकर पर हुई गड़बड़ी के पीछे संसद टीवी के सीईओ रजित पुन्हानी के एक सलाहकार विचित्र मणि की भूमिका है.  

अगर यह बात सच है तो साफ है कि लोकसभा टीवी के टिकर पर विज्ञापन गलती से नहीं बल्कि जानबूझकर चलाए गए थे. संसद टीवी के कर्मचारी के मुताबिक, विचित्र मणि ने पीसीआर-दो, जो कि पार्लियामेंट लाइब्रेरी बिल्डिंग से संचालित होता है में जाकर कहा था कि- "यह सरकार का चैनल है और हमें सरकार की बात रखनी है."

हालांकि विचित्र मणि इस बात से साफ इनकार करते हुए न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, "जो बात आप कह रहे हैं, वही बात मैंने भी सुनी है. यह आरोप पूरी तरह से गलत है. मैं तो अभी यहां नया हूं. मुझे खुद यहां के प्रॉसेस के बारे में नहीं पता है."

सत्ता पक्ष और विपक्ष को मिलने वाली कवरेज में हो रहे भेदभाव को लेकर छंटनी के शिकार हुए एक कर्मचारी कहते हैं, “मैनेजमेंट की ओर से आदेश आता है कि चैनल पर किसे, कितना दिखाना है. उसके बाद वहां कर्मचारी सिर्फ उस आदेश का पालन करते हैं. ऊपर से आदेश आता है. यही टिकर के मामले में भी हो सकता है.” 

करीब डेढ़ दशक से ज्यादा समय से लोकसभा चैनल और अब संसद टीवी में कार्यरत एक पत्रकार चैनल के एसओपी यानी स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीज़र के बारे में बताते हैं, “अभी यहां कोई एसओपी नहीं है. सब हवा हवाई है.”

वो आगे कहते हैं, “पहले अगर कुछ बदलाव होते थे तो मेल के जरिए सूचना दी जाती थी. पहले सब कुछ क्लियर होता था कि लोकसभा टीवी पर क्या जाएगा, क्या नहीं? बकायदा गाइडलाइंस बनी हुई थीं. लेकिन अब संसद टीवी बनने के बाद सब गड्डमड्ड है. अब तो ऐसा हो गया है कि अगर कोई अधिकारी आया तो वह ‘ऊपर वालों को’ खुश करने के लिए खुद ही एक-दो ‘नियम’ जोड़ देता है. लेकिन उसमें कुछ लिखित में नहीं होता है.” 

बीते कुछ समय से यह आरोप भी लग रहा है कि संसद टीवी की कार्यवाही से सरकार को असहज करने वाले और सवाल उठाने वाले विपक्षी नेताओं के वक्तव्यों एक्सपंज भी किया जा रहा है. जबकि सत्ता पक्ष के नेताओं के वक्तव्य को ज्यों का त्यों रखा जाता है. लेकिन इस पर स्पीकर ने कोई टिप्पणी नहीं की है.

एक छोटी जानकारी और भी है. संसद टीवी पर आप जो लाइव प्रसारण देखते हैं, वह कैमरे की फीड संसद भवन में स्थित प्राइमरी कंट्रोल रूम (पीसीआर) से आता है जबकि संसद टीवी के बाकी ऑपरेशन्स जैसे टिकर, कार्यक्रम आदि पार्लियामेंट लाइब्रेरी बिल्डिंग में स्थित कंट्रोल रूम से संचालित होते हैं.

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