पत्रकार कोविड-19 के दहलाने वाले दृश्य क्यों दिखा रहे हैं?

क्योंकि यही सच्चाई है. और हां, विदेशी मीडिया भी श्मशान घाटों और कब्रिस्तानों की रिपोर्टिंग केवल भारत से ही नहीं कर रहा.

WrittenBy:तनिष्का सोढ़ी
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बीबीसी की योगिता लिमये जिनके कोविड संकट की पत्रकारिता ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय असर डाला है, उन्हें भी अपने सहकर्मियों की तरह ही इस प्रकार के अपशब्द झेलने पड़े.

फोटोग्राफर अनुपम नाथ की चिताओं की फोटो को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रकाशनों ने इस्तेमाल किया है. एसोसिएटेड प्रेस के फोटो जर्नलिस्ट कहते हैं कि चाहे आलोचक या ट्रोल कुछ भी कहें, वह अपना काम करना बंद नहीं करेंगे. यह काम बहुत आवश्यक है और सिर्फ इसीलिए नहीं कि इस हो रही आपदा को आने वाली पीढ़ियों के लिए दर्ज करना है. वे समझाते हैं, "यह एक दुख की बात है लेकिन यह अब एक मानवीय संकट है. हम शवों की कतारें देख रहे हैं और कभी कभी परिस्थिति की गंभीरता को दर्शाने के लिए ऐसे दृश्यों को दिखाना आवश्यक होता है."

वह अंत में कहते हैं, "हमें इतिहास के लिए यह दर्ज करना चाहिए. अगर किसी ने हिरोशिमा बमबारी की फोटो ली ही नहीं होती तो हमें अंदाजा नहीं होता कि हालात कितने बुरे थे. जब तक आप परिस्थिति को देखते नहीं तो आप उसकी कल्पना नहीं कर पाते."

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