प्रदर्शन में पत्रकारों के साथ-साथ लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनेता और वकील भी पहुंचे. सबने लगभग यही कहा कि सरकार का मकसद डराना है.
प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में आज की शाम काफी गहमा गहमी भरी रही. यहां एक ज़ोरदार प्रदर्शन हुआ. इस प्रदर्शन में भारी संख्या में पत्रकारों के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता, राजनेता, वकील और मानव अधिकार कार्यकर्ता शामिल हुए. प्रदर्शन का आह्वान दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल द्वारा न्यूज़क्लिक पर की गई कार्रवाई को लेकर किया गया था.
मंगलवार को स्पेशल सेल ने सुबह से ही न्यूज़क्लिक से जुड़े पत्रकारों के घर पर दबिश दी और इस दौरान उनके इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (मोबाइल, लैपटॉप) जब्त कर लिए. दिनभर की पूछताछ के बाद ज्यादातर को छोड़ दिया गया और इस बीच न्यूज़क्लिक के दफ्तर को सील कर दिया गया. वहीं, शाम में न्यूज़क्लिक के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ और मानव संसाधन प्रमुख अमित चक्रवर्ती की गिरफ्तारी की पुष्टि की गई. इस बारे में विस्तार से जानने के लिए ये रिपोर्ट भी पढ़ सकते हैं.
न्यूज़क्लिक ने बुधवार को बयान जारी कर छापेमारी की इस कार्रवाई को मीडिया की आवाज दबाने की कोशिश करार दिया.
वहीं, दिल्ली पुलिस की इस कार्रवाई की मीडिया संगठनों समेत काफी लोगों ने निंदा की और इसे प्रेस की आजादी पर हमला बताया. इस बारे में ज्यादा जानने के लिए यह रिपोर्ट पढ़ें.
इसी कार्रवाई के सिलसिले में आज प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में प्रदर्शन का आयोजन किया गया. प्रेस क्लब में आयोजित इस प्रदर्शन को जंतर-मंतर तक जाना था लेकिन दिल्ली पुलिस से इजाजत नहीं मिलने के कारण यह प्रेस क्लब के अहाते में ही हुआ. इसमें इतिहासकार रामचंद्र गुहा, लेखिका अरुंधति रॉय, प्रोफेसर अपूर्वानंद, वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण, राजद सांसद मनोज झा, वरिष्ठ पत्रकार प्रेम शंकर झा और कमल वाहिद नक़वी समेत भारी संख्या में वरिष्ठ और युवा पत्रकार पहुंचें.
प्रदर्शन में शामिल होने वरिष्ठ पत्रकार और न्यूज़क्लिक से जुड़े उर्मिलेश भी आए. उनका फ़ोन और लेपटॉप पुलिस द्वारा मंगलवार को जब्त कर लिया गया. साथ ही उनसे घंटों तक पूछताछ की गई. पुलिस ने पूछताछ के दौरान क्या सवाल किए इस बारे में उन्होंने बताने से इनकार कर दिया. सवालों के बारे में ज्यादा जानने के लिए ये रिपोर्ट पढ़िए.
इस दौरान उर्मिलेश ने कहा, ‘‘मैंने पत्रकारिता को अपनी ज़िन्दगी की तरह प्यार किया है. इसलिए मैं अपने पत्रकारीय मूल्यों से किसी भी तरह का समझौता नहीं करूंगा. जब तक जीवन है तब तक अपने मूल्यों के साथ खड़ा रहूंगा.’’
साथ ही उर्मिलेश ने यूएपीए के तहत हुई कार्रवाई को असंवैधानिक बताते हुए कहा, ‘‘हम पत्रकार है. हम समाज के लिए लिखते हैं. समाज का यह कतर्व्य है कि किसी भी पत्रकार पर अगर हमले होते हैं तो उस पर सोचें और विवेक सम्मत फैसला करें.’’
वहीं, वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा, ‘‘यह यूएपीए का केस नहीं है क्योंकि अगर किसी ने चीनी आदमी से फंडिंग ली है और चीन का प्रोपेगेंडा भी कर रहा है तो यूएपीए में केस नहीं बनता है.”
वे कहते हैं कि इस केस की आड़ में न्यूज़क्लिक से जुड़े पत्रकारों के घर पर पहुंचकर उनके लैपटॉप और मोबाइल जब्त करना तो बिलकुल ही गैरक़ानूनी है और निजता के अधिकार के बिल्कुल खिलाफ है. भूषण इस कार्रवाई को प्रेस को धमकाने की कोशिश बताते हैं.
इस बीच सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ को प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया, डिजीपब समेत 16 मीडिया संगठनों द्वारा एक पत्र भेजा गया.
पत्र में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि मीडिया की आजादी पर हमला सिर्फ इसकी आजादी को खत्म नहीं करता है बल्कि यह देश के लोकतांत्रित ढांचे को भी प्रभावित करता है.
पत्र में लिखा है कि मीडिया के खिलाफ राज्य की कार्रवाइयां हद से ज्यादा बढ़ती जा रही हैं. हमारा डर यह है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब स्थिति ऐसी हो जाएगी कि जिसमें सुधार करना मुश्किल हो जाएगा. इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए यह रिपोर्ट पढ़िए.
वहीं, पुलिस की इस कार्रवाई की टाइमिंग पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. 2 अक्टूबर को बिहार हुए जातिगत सर्वेक्षण की रिपोर्ट आई. इसके अगले दिन ही यह कार्रवाई हुई.
बिहार से राजद के सांसद मनोज झा कहते हैं, ‘‘यह सवाल करोड़ों हिंदुस्तानियों के मन में है. इसमें दम है. क्योंकि राजा डर गया है. तानाशाह डर गया है. जातिगत सर्वेक्षण की रिपोर्ट आई. यह महज रिपोर्ट नहीं है, ज़िंदा आंकड़ें हैं. वो जिन्दा आंकड़ें अपना हक़ मांग रहे हैं. प्रधानमंत्री जी हक़ नहीं देना चाहते हैं. ऐसे में उन्होंने 2 अक्टूबर की रात का भी इंतज़ार नहीं किया.”
इसके अलावा प्रदर्शन में शामिल होने आए योगेंद्र यादव सहित कई और लोगों से भी न्यूज़लॉन्ड्री ने बातचीत की. देखिए ये वीडियो रिपोर्ट.