कुणाल कामरा की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि दिशा-निर्देशों के अभाव में आईटी अधिनियम के नए नियम अनियंत्रित शक्ति देते है.
आईटी नियमों में संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि ये नए नियम दिशा-निर्देशों के अभाव में सरकार को अनियंत्रित शक्ति प्रदान करते हैं.
एनडीटीवी के मुताबिक, जस्टिस गौतम पटेल और नीला गोखले की संविधान पीठ ने आईटी अधिनियम में संशोधन की जरूरतों और प्रेस सूचना परिषद की फैक्ट चेक यूनिट के बावजूद एक अलग फैक्ट चेक यूनिट के प्रावधान पर भी सवाल उठाए.
जस्टिस पटेल ने पूछा, “आपके पास पीआईबी की फैक्ट चेक यूनिट है, जिसकी सोशल मीडिया पर मौजूदगी है. फिर एक अलग फैक्ट चेक यूनिट बनाने के लिए संशोधन करने की क्या ज़रूरत है? मुझे लगता है कि सरकार कुछ और करना चाहती है.” उन्होंने इसके लिए दिशा-निर्देश स्थापित करने की आवश्यकता पर जोर दिया.
इस दौरान, सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पीआईबी दंतहीन है.
मेहता ने कहा, “आईटी नियम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिए नहीं है. सरकार विचारों की अभिव्यक्ति, आलोचना या तुलनात्मक विश्लेषण पर अंकुश लगाना नहीं चाहती है, बल्कि हम उनका स्वागत करते हैं, बढ़ावा देते हैं और सीखते हैं.”
आगे मेहता कहते हैं, “इस नियम का सटायर या ह्यूमर से कोई लेना देना नहीं है जब तक वो निर्धारित सीमा का उल्लंघन न करें.”
स्टैंड अप कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड् ऑफ इंडिया और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैग्जीन ने आईटी नियम में संशोधन को चुनौती देने के लिए याचिका दर्ज की है. उन्होंने नियम को मनमाना और असंवैधानिक बताया है. याचिका पर अगली सुनवाई बुधवार को होगी.
6 अप्रैल को अधिसूचित संशोधन में कहा गया है कि सोशल मीडिया कंपनियों और अन्य मध्यस्थों को सरकारी फैक्ट चेक यूनिट द्वारा फेक करार दी गई सामग्री को हटाना होगा.
प्रेस समूहों, विपक्षी नेताओं और पत्रकारों द्वारा इसकी व्यापक आलोचना की गई. अधिसूचना जारी होने के कुछ दिनों बाद कामरा द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि यह लोगों को डराने और चुप करा देने के लिए काफी है.