महीनों से घूम रही ख़बर की ग्राउंड रिपोर्ट के बाद पीआईबी के निशाने पर बीबीसी

जुलाई से अब तक तमाम मीडिया संस्थानों में प्रकाशित हुई खबर के लिए पीआईबी और पूर्व पत्रकार ने बीबीसी पर साधा निशाना.

WrittenBy:अवधेश कुमार
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‘इसरो के लिए लॉन्चपैड बनाने वाले कर्मचारियों को 18 महीनों से वेतन नहीं मिला.’ यह ख़बर चर्चा में बनी हुई है. जहां कई मीडिया संस्थानों ने इस ख़बर को प्रमुखता से प्रकाशित किया. वहीं, सोशल मीडिया पर भी लोग सवाल कर रहे हैं कि हम चांद पर पहुंच गए लेकिन इसरो के लिए लॉन्चपैड बनाने वाले कर्मचारियों को वेतन क्यों नहीं मिल रहा है?

23 अगस्त को चंद्रयान-3 की चांद पर सफल लैंडिंग हुई थी. इस लैंडिंग से पहले और बाद में भी कई मीडिया संस्थानों ने इससे जुड़ी एक ख़बर प्रकाशित किया था. इसी कड़ी में बीबीसी ने भी इस पर एक ग्राउंड रिपोर्ट की. इस रिपोर्ट पर पीआईबी और वरिष्ठ पत्रकार कंचन गुप्ता ने सवाल उठाए हैं. 

गत 17 सिंतबर को बीबीसी हिंदी ने इससे संंबंधित एक ग्राउंड रिपोर्ट प्रकाशित की. बीबीसी की खबर का शीर्षक है- ‘इसरो के लिए लॉन्चपैड बनाने वाले एचईसी के लोग बेच रहे हैं चाय और इडली, 18 महीने से नहीं मिला है वेतन: ग्राउंड रिपोर्ट

बीबीसी में यह खबर प्रकाशित होने के बाद भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) ने फैक्ट चेक किया. पीआईबी ने कहा कि बीबीसी ने अपने एक आर्टिकल की हेडलाइन में दावा किया है कि इसरो के लिए लॉन्चपैड बनाने वाले हैवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचईसी) के कर्मचारियों का 18 महीने का वेतन बकाया है. यह हेडलाइन भ्रामक है.

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एक अन्य ट्वीट में पीआईबी ने कहा, ‘एचईसी को #Chandrayaan3 के लिए किसी भी घटक के निर्माण का काम नहीं सौंपा गया था. एचईसी ने इसरो के लिए सितंबर 2003 से जनवरी 2010 तक कुछ बुनियादी ढांचे की आपूर्ति की थी.’

इसके बाद बीबीसी हिंदी ने भी प्रतिक्रिया दी. बीबीसी हिंदी ने ट्वीट कर लिखा, ‘बीबीसी न्यूज़ हिंदी की इस रिपोर्ट https://bbc.com/hindi/articles/cyxdyxdqex5o.amp…… की हेडलाइन को #PIBFactCheck ने भ्रामक करार दिया है, उनका कहना है कि एचईसी को चंद्रयान-3 के लिए कोई ऑर्डर नहीं दिया गया. यह बात बीबीसी हिंदी की इस रिपोर्ट में भी साफ़ तौर पर लिखी गई है. बीबीसी हिंदी की पूरी रिपोर्ट और हेडलाइन तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह सही है. इसरो के लिए लॉन्चपैड एचईसी ने बनाया है, यह एक तथ्य है, उसी एचईसी के स्टाफ़ को डेढ़ साल से वेतन नहीं मिला है ये दूसरा तथ्य है. हेडलाइन में इन्हीं दोनों तथ्यों का ज़िक्र है जो किसी भी तरह से कतई भ्रामक नहीं है क्योंकि हेडलाइन में “चंद्रयान” कहीं भी नहीं है, आप खुद देख सकते हैं.’

इस बारे में हमने बीबीसी के लिए यह रिपोर्ट करने वाले स्वतंत्र पत्रकार आनंद दत्ता से भी बात की. दत्ता न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, “पीआईबी कह रहा है कि चंद्रयान-3 के लिए एचईसी ने कोई लॉन्चपैड नहीं बनाया है. हेडलाइन भ्रामक है. जबकि, हमारी ख़बर की हेडलाइन में चंद्रयान-3 का कोई जिक्र ही नहीं है. जिस डॉक्यूमेंट को देखकर वे ये बात कह रहे हैं कि पार्लियामेंट में सरकार ने जवाब दिया है. राज्यसभा के सदस्य परिमल नाथवानी के उस सवाल का और डॉक्यूमेंट का जिक्र हमारी ख़बर में भी है.”

वो आगे बताते हैं, "जिस डॉक्यूमेंट का जिक्र कर सरकार कह रही है कि चंद्रयान-3 के लिए कुछ नहीं बनाया है तो उसका जवाब भी हमने एचईसी के एक इंजीनियर के हवाले से लिख दिया है."  

बीबीसी ने अपनी रिपोर्ट में एचईसी में बतौर मैनेजर काम कर रहे पुरेंदू दत्त मिश्रा के हवाले से लिखा है कि जो उपकरण एचईसी ने इसरो को दिए, इस बार चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग के समय उन उपकरणों को इंस्टॉल करने के लिए एचईसी के ही दो इंजीनियर भी गए थे.

किन संस्थानों ने खबर प्रकाशित की?

टीवी- 9 भारतवर्ष 

टीवी-9 भारतवर्ष ने इस ख़बर को 14 जुलाई को प्रकाशित किया था. अशोक कुमार द्वारा लिखी गई इस खबर का शीर्षक है- ‘Ranchi News: 18 महीने से वेतन को तरस रहे ‘इसरो’ के उपकरण बनाने वाली कंपनी के कर्मचारी

टीवी- 9 की इस ख़बर में लिखा है- ‘इसरो के ड्रीम प्रोजेक्ट चंद्रयान-3 के लिए हॉरिजेंटल स्लाइडिंग डोर, फोल्डिंग प्लेटफॉर्म, एसीसीआरपी और विल बोगी सिस्टम जैसे महत्वपूर्ण उपकरण बनाने वाली भारत सरकार की उपक्रम मदर इंडस्ट्री एचईसी के कर्मचारी मुफलिसी में जीने को मजबूर हैं. पिछले लगभग 18 महीने से एचईसी के अधिकारियों को जबकि लगभग 15 महीनों से कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला है. वेतन की मांग को लेकर एचईसी अपने कामगार लगातार समय-समय पर आंदोलन करते रहे हैं.’

दैनिक भास्कर

दैनिक भास्कर ने यह ख़बर दो महीने पहले प्रकाशित की है. ख़बर का शीर्षक है- HEC के इंजीनियर्स को 17 महीने से सैलरी नहीं मिली: उधार लेकर घर चला रहे, फिर भी समय से पहले चंद्रयान 3 का लॉन्च पैड बनाकर दिया

भास्कर लिखता है, ‘रांची में हैवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन के इंजीनियर्स को 17 महीने से सैलरी नहीं मिली है. यह जानकारी न्यूज एजेंसी IANS ने दी है. इस कंपनी में करीब 2,700 कर्मचारी और 450 अधिकारी काम करते हैं. इस कंपनी ने चंद्रयान-3 के लॉन्च पैड बनाए हैं. इसका ऑर्डर कंपनी को ISRO ने दिया था. एचईसी इंजीनियर्स अपना घर रिश्तेदारों से उधार पैसा लेकर चला रहे हैं. लेकिन फिर भी इन्होंने तय समय से पहले इसरो के लिए लॉन्च पैड बना दिए.’

ज़ी बिज़नेस हिंदी

ज़ी बिज़नेस हिंदी की वेबसाइट ने इस ख़बर को 14 जुलाई को प्रकाशित किया. ख़बर का शीर्षक है- Chandrayaan-3 का लॉन्चिंग पैड बनाने वाले HEC के इंजीनियरों-कर्मियों को 17 महीने से नहीं मिली है सैलरी, आखिर क्‍यों?

खबर में लिखा है, ‘चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग पर हर्ष में डूबे देश के लोग इस बात पर हैरान हो सकते हैं कि इस यान के लिए लॉन्चिंग पैड सहित तमाम जरूरी उपकरणों को बनाने वाली कंपनी के इंजीनियरों-अफसरों-कर्मियों को 17 महीनों से तनख्वाह नहीं मिली है. चंद्रयान सहित इसरो के तमाम बड़े उपग्रहों के लिए लॉन्चिंग पैड बनाने वाली इस कंपनी का नाम है- HEC (Heavy Engineering Corporation).’

द टेलीग्राफ

द टेलीग्राफ ने इस ख़बर को 20 सितंबर को प्रकाशित किया है. इस आर्टिकल का शीर्षक है- ‘No salary for 18 months, HEC staff to protest in Delhi with cut-out replicas of Chandrayaan-3

इस रिपोर्ट के मुताबिक, ‘एचईसी मजदूर यूनियन के अध्यक्ष भवन सिंह कहते हैं कि हम अलग-अलग ट्रेनों से दिल्ली पहुंच रहे हैं. हम 21 सिंतबर को प्रदर्शन के लिए दिल्ली के जंतर-मंतर पर इकट्ठा होंगे. हमें 18 महीनों से वेतन नहीं मिला है. हम जनता को दिखाने और केंद्र को इसरो के हालिया चंद्रयान मिशन में हमारे योगदान की याद दिलाने के लिए चंद्रयान-3 की कट-आउट प्रतिकृतियां भी ले जा रहे हैं.”

द लल्लनटॉप

कर्मचारियों को वेतन नहीं मिलने की ख़बर को इंडिया टुडे ग्रुप की वेबसाइट ‘द लल्लनटॉप’ ने 27 जुलाई को प्रकाशित किया. शिवेंद्र गौरव द्वारा लिखी गई इस ख़बर का शीर्षक है- 3 चंद्रयान लॉन्च करने का इनाम- 18 महीनों से तनख्वाह नहीं मिली

ख़बर में लिखा है, ‘एचईसी की कहानी बताती है कि आत्मनिर्भर भारत का कैसे मखौल उड़ाया जा रहा है. जो सरकारी कंपनियां चंद्रयान जैसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स से जुड़ी हैं, वो तनख्वाह तक नहीं बांट पा रही हैं.’

इस तरह कई अन्य मीडिया संस्थानों ने भी इस ख़बर को प्रकाशित किया लेकिन पीआईबी ने फैक्ट चेक सिर्फ बीबीसी की ख़बर का किया है.

पीआईबी के फैक्ट चेक के बाद अब एक तबका बीबीसी को फिर से भारत विरोधी बताकर ट्रोल कर रहा है. सोशल मीडिया पर लोग बीबीसी को भारत विरोधी और देश को बदनाम करने की कोशिश बता रहे हैं. 

इस पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार के वरिष्ठ सलाहकार, कंचन गुप्ता ने भी ट्वीट किया. उन्होंने लिखा, “बीबीसी ने हमेशा की तरह दुर्भावनापूर्ण, दुष्प्रचार फैलाया है. उन्होंने बीबीसी को टैग करते हुए लिखा कि कम से कम फर्जी कहानियों को फैलाने के बजाय नैतिक पत्रकारिता के बुनियादी न्यूनतम मानक को हासिल करने का प्रयास करना चाहिए.”

कंचन गुप्ता ने न्यूज़लॉन्ड्री के सवाल पर कहा कि वो हमसे बात करना नहीं चाहते. इस मुद्दे पर हमने पीआईबी फैक्ट चैक यूनिट के प्रभारी सौरभ सिंह से भी बात की. हमने पूछा कि इसरो के लिए लॉन्चपैड बनाने वालों को वेतन नहीं मिलने की खबर दो महीनों से पब्लिक है लेकिन आपने सिर्फ बीबीसी की ख़बर का ही फैक्ट चेक किया? इस सवाल पर वह कहते हैं, “हमारा फैक्ट चैक सभी क्लैरिफिकेशन के साथ ऑनलाइन मौजूद है. ऐसा कोई कारण नहीं है कि किसी को इग्नोर किया गया है और बीबीसी को चुना गया है.”

इसके बाद वह कहते हैं कि आपके जो भी सवाल हैं हमें भेज दीजिए, हमने सिंह को कुछ सवाल भेजे हैं. उनका जवाब आने पर ख़बर में जोड़ दिया जाएगा.  

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