दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
चंद्रयान-3 मिशन की सफलता ऐतिहासिक है. चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन गया है. इस सफलता ने इसरो की क्षमता को नये सिरे से स्थापित किया है. भारत को यह क़ामयाबी ऐसे समय में मिली है जब ‘तर्क’ और ‘वैज्ञानिक चेतना’ पर सबसे ज्यादा हमले हो रहे हैं. सियासत विज्ञान के उस बुनियादी उसूल पर हमलावर है जहां हर शुरुआत ‘क्यों’ से होती है. इस ‘क्यों’ के बचाने के लिए हमें कुछेक मौलिक सवालों से मुठभेड़ करना होगा. उनसे मुंह नहीं छुपाना चाहिए.
चांद पहुंचने के क्रम में हमारा घोघाबसंत मीडिया अपनी टीआरपी की भूख मिटाने के लिए एक नया विदूषक खोज लाया है. इतने अहम राष्ट्रीय मसलों के बीच उसने मिथिलेश भाटी नाम की एक बददिमाग महिला को घंटों-घंटों दिखाया.
दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले से एक दिल तोड़ देने वाला वीडियो सामने आया. यह वीडियो किसी भी संवेदनशील आदमी को अवसाद में डाल सकता है. एक स्कूल की शिक्षिका जो कि स्कूल की मालकिन भी है, उसका नाम है तृप्ता त्यागी. कोई व्यक्ति किस अधिकतम सीमा तक काठकरेजा, यानी निर्जीव हृदय वाला हो सकता है, यह महिला उस सीमा को पार कर जाती है.