भारतमाला परियोजना: नियमों की अनदेखी कर अडाणी के नेतृत्व वाले कंसोर्टियम और भाजपा को चंदा देने वाली कंपनियों को मिले ठेके

अडाणी ट्रांसपोर्ट के नेतृत्व वाले एक कंसोर्टियम को सूर्यापेट और खम्मम परियोजना का ठेका दिया गया था, हालांकि उसके पास अपेक्षा के अनुरूप निर्माण कार्य का अनुभव नहीं था.

WrittenBy:प्रत्युष दीप
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केंद्र सरकार की भारतमाला परियोजना के पहले चरण में जिन कंपनियों को सड़क निर्माण परियोजनाएं दी गईं, उनमें अडाणी ट्रांसपोर्ट के नेतृत्व वाले कम से कम एक कंसोर्टियम, कथित तौर पर भाजपा से संबंधित एक फर्म और भाजपा को चंदा देने वाली चार कंपनियां शामिल हैं. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की एक हालिया रिपोर्ट में इन सभी कंपनियों को ठेका देने की प्रक्रिया में अनियमितताएं पाई गईं.

उदाहरण के लिए, अडाणी ट्रांसपोर्ट के नेतृत्व वाला कंसोर्टियम है सूर्यापेट खम्मम रोड प्राइवेट लिमिटेड. इसे हाइब्रिड एन्युटी मॉडल (इस मॉडल के तहत, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण कुल परियोजना का 40% भुगतान करता है. शेष 60% राशि की व्यवस्था डेवलपर को करनी होती है) के तहत तेलंगाना में सूर्यापेट और खम्मम के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग को चार लेन करने की परियोजना दी गई थी. लेकिन यह कंपनी राजमार्ग क्षेत्र में निर्माण कार्य का अनुभव होने की अपेक्षित शर्त पूरा नहीं करती.

दूसरा मामला है, पीएनआर इन्फोटेक का, जो भाजपा नेता नवीन जैन द्वारा प्रमोटेड इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी है. पीएनआर इंफोटेक को अगस्त 2019 में लखनऊ रिंग रोड के पैकेज 1 का ठेका दिया गया था, जो अनुमानित लागत से 17.44 प्रतिशत अधिक लागत पर दिया गया था. कंपनी ने जो बोली लगाई थी वह संशोधित अनुमान से भी 2.02 प्रतिशत अधिक थी. उस समय जैन आगरा के मेयर थे.

इसी तरह, कैग रिपोर्ट में चार कंपनियों- आईआरबी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपर्स, जे कुमार इंफ्राप्रोजेक्ट्स, लार्सन एंड टुब्रो और एमकेसी इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड- के संबंध में अनियमितताएं दर्ज की गईं हैं. इन कंपनियों ने 2013 से 2021 के बीच भाजपा को 77 करोड़ रुपए का चंदा दिया था.

हमारी पड़ताल में हमें निम्न बातें पता चलीं.

अडाणी ट्रांसपोर्ट कंसोर्टियम 

कैग रिपोर्ट के मुताबिक, सूर्यापेट खम्मम रोड प्राइवेट लिमिटेड के प्रमुख सदस्य ने "किसी अन्य कंपनी" का अनुभव प्रमाणपत्र जमा किया था. इस "अन्य कंपनी" ने हाइवे निर्माण क्षेत्र में काम ही नहीं किया था, इसने बिजली क्षेत्र में काम किया था. 

इसके अतिरिक्त, रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रमुख सदस्य की कुल संपत्ति पर जारी किया गया चार्टर्ड अकाउंटेंट प्रमाणपत्र - जो 304.33 करोड़ रुपए होना आवश्यक था- किसी तीसरे पक्ष के नाम पर था.

अडाणी फर्म के पास कंसोर्टियम में 74 प्रतिशत की बड़ी हिस्सेदारी थी, लेकिन उसके पास "प्रस्ताव हेतु अनुरोध (आरएफपी) की शर्त के मुताबिक हाइवे सेक्टर में निर्माण का पांच साल का अनुभव नहीं था". कंपनी द्वारा दी गई कार्यों की सूची के अनुसार उसने कभी भी "प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से" कोई निर्माण कार्य नहीं किया था. 

हालांकि, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने मार्च 2019 में "बिना कोई कारण बताए बोलीदाता को तकनीकी रूप से योग्य घोषित कर दिया" और बोली में दी गई 1,566.30 करोड़ रुपए की लागत पर परियोजना स्वीकृत कर दी. हाइब्रिड एन्युटी मॉडल के तहत, एनएचएआई ने परियोजना के कुल व्यय का 40 प्रतिशत भुगतान किया. शेष 60 प्रतिशत की व्यवस्था डेवलपर द्वारा की जानी थी, जिसने आमतौर पर परियोजना की लागत का लगभग 20-25 प्रतिशत फाइनेंस किया और शेष राशि के लिए कर्ज लिया.

न्यूज़लॉन्ड्री ने कैग रिपोर्ट में लगे आरोपों के बारे में पूछने के लिए अडाणी समूह के प्रवक्ता से संपर्क किया. उन्होंने कहा, "हम ऐसे किसी भी सुझाव को दृढ़तापूर्वक खारिज करते हैं कि अडाणी समूह और उसके व्यवसायों ने नियमों और क्षेत्र के अकाउंटिंग मानकों के अनुरूप काम नहीं किया है." 

प्रवक्ता ने कहा कि तकनीकी क्षमता के संबंध में आरएफपी की शर्त "कंसोर्टियम के अन्य सदस्य" द्वारा पूरी की गई थी और उसने "अपने सहयोगी- अडानी एंटरप्राइजेज के निवल मूल्य (नेट वर्थ) को लेकर" न्यूनतम निवल मूल्य की आवश्यकता को पूरा किया.

बीजेपी नेता से जुड़ी कंपनी 

7 मार्च, 2019 को, लखनऊ रिंग रोड के पैकेज 1 के लिए निविदाएं जारी की गईं. इस परियोजना की अनुमानित लागत 904.31 करोड़ रुपए थी. लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, पीएनसी इन्फोटेक को 1,062 करोड़ रुपए में ठेका दे दिया गया- जो मूल अनुमान से 17.44 प्रतिशत अधिक था.

एनएचएआई का मूल अनुमान 2016-17 की निर्धारित दरों पर आधारित था. परियोजना की अनुमानित लागत को बाद में 2019 की दरों के आधार पर संशोधित किया गया लेकिन फिर भी, जैसा कि कैग रिपोर्ट में बताया गया है, जैन की कंपनी की बोली संशोधित अनुमान से 2.02 प्रतिशत अधिक थी.   

आईआरबी इंफ्रास्ट्रक्चर ने भाजपा को दिया 65 करोड़ रुपए का चंदा

आईआरबी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपर्स को 68 प्रतिशत कम प्रीमियम पर हापुड बाईपास-मुरादाबाद राजमार्ग परियोजना के लिए एनएचएआई का टेंडर दिया गया. इस कंपनी ने 2013 से भाजपा को लगभग 65 करोड़ रुपए का चंदा दिया है. कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, एनएचएआई ने विस्तृत परियोजना रिपोर्ट सलाहकार द्वारा यातायात पूर्वानुमान और होलसेल प्राइस इंडेक्स का हवाला देते हुए अपने फैसले को सही ठहराया.

इस बीच, आईआरबी इंफ्रास्ट्रक्चर की वेबसाइट ने कहा कि परियोजना की लागत 3,345 करोड़ रुपये थी. कैग रिपोर्ट में कहा गया है: "(लागत को लेकर) एनएचएआई की धारणा में यह बदलाव परियोजना के लिए बोली लगाए जाने की नीयत तारीख के एक सप्ताह पहले हुआ. एनएचएआई ने बिना किसी उचित कारण के और दोबारा टेंडर जारी किए बिना, अपने अनुमान में त्रुटि स्वीकार कर ली."

गौरतलब है कि एनएचएआई ने यह टेंडर टोल के आधार पर खोला था, जिसे बीओटी मोड के रूप में जाना जाता है, जिसके तहत निजी कंपनी अनुबंधित अवधि के दौरान फैसिलिटी की डिजाइन, निर्माण, और संचालन के लिए जिम्मेदार होती है और उससे राजस्व अर्जित कर सकती है. अंततः फैसिलिटी सरकार को वापस कर देते हैं.

आईआरबी इंफ्रास्ट्रक्चर ने 2020-21 में भाजपा को 20 करोड़ रुपए का चंदा दिया, जबकि इससे जुड़ी तीन कंपनियों ने 2013 से 2021 के बीच भाजपा को करीब 45 करोड़ रुपए का चंदा दिया.

जे कुमार इंफ्राप्रोजेक्ट्स ने भाजपा को दिया 6.46 करोड़ रुपए का चंदा 

दिसंबर 2018 में जे कुमार इंफ्राप्रोजेक्ट्स को द्वारका एक्सप्रेसवे पैकेज 1 के लिए 1,349 करोड़ रुपए का ठेका मिला. कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रस्ताव हेतू अनुरोध की शर्त को पूरा करने में विफल रहने के बावजूद कंपनी को कॉन्ट्रैक्ट दिया गया. प्रस्ताव में आवश्यक था कि टेंडर पाने वाले बोलीदाता ने "सिंगल या ट्विन ट्यूबों वाली कम से कम एक गहरी या उथली सुरंग" का निर्माण किया हो.    

2013 से 2018 के बीच जे कुमार इंफ्राप्रोजेक्ट्स ने भाजपा को करीब 6.46 करोड़ रुपये का चंदा दिया. इसने भाजपा को 2017-18 में 5.25 करोड़ रुपए, 2015-16 में 1 करोड़ रुपए और 2013-14 में 21 लाख रुपए दिए.

कंपनी के स्वतंत्र निदेशकों में पूर्व आईएएस अधिकारी राघव चंद्रा शामिल हैं, जो 2015 और 2016 के बीच एनएचएआई के अध्यक्ष रह चुके हैं. चंद्रा जीआर इंफ्राप्रोजेक्ट की सहायक कंपनी जीआर हाईवेज़ इन्वेस्टमेंट मैनेजर के अतिरिक्त निदेशक और अडाणी समूह के बिजनेस पार्टनर वेलस्पन एंटरप्राइज के एक स्वतंत्र निदेशक भी हैं. अडाणी समूह और वेलस्पन एंटरप्राइजेज का अडाणी वेलस्पन एक्सप्लोरेशन नामक एक गैस एक्सप्लोरेशन संयुक्त उद्यम भी है. 

जे कुमार इंफ्राप्रोजेक्ट के मिचिंगन इंजीनियर्स के साथ भी व्यावसायिक संबंध हैं, जिसके पास वेलस्पन एंटरप्राइज की 50.10 प्रतिशत हिस्सेदारी है. 

गौरतलब है कि जे कुमार इंफ्राप्रोजेक्ट को 2015 के एक सड़क घोटाले के सिलसिले में 2016 में बृहन्मुंबई महानगरपालिका द्वारा ब्लैकलिस्ट किया गया था. 2021 में यह फिर सुर्ख़ियों में रही जब मुंबई में इसके द्वारा बनाया जा रहा एक फ्लाईओवर ढह गया. उस समय, विपक्ष ने कंपनी को परियोजना का टेंडर देने के लिए महाराष्ट्र की भाजपा सरकार की कड़ी आलोचना की थी. 

एमकेसी इन्फ्रास्ट्रक्चर और लार्सन एंड टुब्रो द्वारा डोनेशन 

कैग रिपोर्ट ने एनएचएआई द्वारा दिल्ली-वडोदरा एक्सप्रेसवे के पैकेज 17 से 25 का ठेका जियांगक्सी कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन, एमकेसी इंफ्रास्ट्रक्चर, जीआर इंफ्राप्रोजेक्ट्स, लार्सन एंड टुब्रो और जीएचवी इंडिया के संयुक्त उद्यम को देने में विसंगतियों को उजागर किया.

न्यूज़लॉन्ड्री ने पाया कि लार्सन एंड टुब्रो ने 2014-15 में भाजपा को 5 करोड़ रुपए का चंदा दिया था और एमकेसी इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड ने 2018 से 2020 के बीच 75 लाख रुपए का चंदा दिया था.

कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली-वडोदरा एक्सप्रेसवे की अनुमानित सिविल कॉस्ट 32,839 करोड़ रुपए थी, जबकि पूर्व-निर्माण लागत 11,209.21 करोड़ रुपए थी- दोनों को 31 परियोजनाओं में विभाजित किया गया था. जिन आठ परियोजनाओं में अनियमितताएं पाईं गईं, वह मई 2019 से जून 2020 के बीच आवंटित की गई थीं. यह देखा गया कि इन परियोजनाओं के लिए बोलियां गलत अनुमानों के आधार पर आमंत्रित की गईं, जिससे 'प्रस्ताव हेतु अनुरोध की निष्पक्ष शर्तें' कमजोर हुईं, जिन पर बोलियां आमंत्रित की जा सकती थीं और उनका विश्लेषण किया जा सकता था. 

एनएचएआई ने "दरों की पुरानी अनुसूची के आधार पर सिविल कॉस्ट का गलत अनुमान" लगाया, जबकि निविदाएं आमंत्रित करने के लिए नोटिस जारी होने से पहले ही संशोधित दरें उपलब्ध थीं.

इन आठ परियोजनाओं में से पांच को जीआर इंफ्राप्रोजेक्ट ने पूरा किया था, एक को जीएचवी इंडिया इंफ्रास्ट्रक्चर ने, एक को एल एंड टी ने और दो को एमकेसी इंफ्रास्ट्रक्चर ने.

पिछले साल जून में बिहार के किशनगंज में निर्माणाधीन पुल ढहने के बाद जीआर इंफ्राप्रोजेक्ट लोगों की नजर में आई. जब इसके कर्मचारियों पर सड़क परियोजना के बिल पास करने के लिए एनएचएआई अधिकारियों को कथित रूप से रिश्वत देने का आरोप लगा, तो सीबीआई ने इसके कार्यालयों पर भी छापे भी मारे थे.

पिछले साल एनएचएआई रिश्वत मामले में आरोपी जीएचवी इंडिया इंफ्रास्ट्रक्चर भी सवालों के घेरे में है.

‘फर्जी दस्तावेज़, अंतिम डीपीआर से पहले जारी किए गए टेंडर’

कैग रिपोर्ट में एनएचएआई द्वारा केआरसी इंफ्राप्रोजेक्ट्स को ग्वालियर-शिवपुरी राजमार्ग के चार किलोमीटर लंबे हिस्से के लिए दिए गए कॉन्ट्रैक्ट पर भी सवाल उठाए गए हैं. 18.39 करोड़ रुपए का यह ठेका 2018 में दिया गया था.

इस बीच, लखनऊ रिंग रोड पैकेज 3बी के लिए बोली में फर्जी दस्तावेज देने के सबूत होने के बावजूद एनएचएआई ने बोलीदाता को कॉन्ट्रैक्ट दिया.

चूड़ाचांदपुर-तुइवई परियोजना पैकेज 2बी में, आवश्यक बिडिंग क्षमता को पूरा करने में विफल रहने के बावजूद बोलीदाता को कॉन्ट्रैक्ट मिला. "बोलीदाता की बिडिंग क्षमता 101.48 करोड़ रुपए थी, जबकि परियोजना के लिए 240.01 करोड़ रुपए की क्षमता आवश्यक थी. इसके बावजूद, बिडिंग की निर्धारित प्रक्रिया का स्पष्ट उल्लंघन करते हुए संबंधित ठेकेदार को काम सौंप दिया गया," कैग रिपोर्ट में कहा गया है.

इसमें कहा गया है कि चूड़ाचांदपुर-तुइवई और चित्तूर-मल्लावरम परियोजनाओं में विस्तृत परियोजना रिपोर्ट को अंतिम रूप देने से पहले निविदाएं आमंत्रित करने के नोटिस जारी किए गए थे, जिसके परिणामस्वरूप परियोजना के विनिर्देशों और काम के दायरे को लेकर स्पष्टता कम हुई.

लखनऊ रिंग रोड पैकेज 3बी, चूड़ाचांदपुर-तुइवई पैकेज-2बी और चित्तूर-मल्लावरम परियोजनाओं के लिए ठेका पाने वाली कंपनियों के बारे में कोई विवरण उपलब्ध नहीं था. 

न्यूज़लॉन्ड्री ने इस संबंध में एक आरटीआई दायर किया है और कंपनियों को प्रश्नावली भी भेजी है. यदि वह जवाब देते हैं तो यह रिपोर्ट अपडेट कर दी जाएगी. 

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