अजित पवार: राजनीति के दिग्गज या विद्रोह के नेता?

फिलहाल वह शायद महाराष्ट्र के 'मैन ऑफ द मोमेंट' के रूप में उभरे हैं, लेकिन क्या वह अपने परिवार और शत्रुओं के खिलाफ टिक पाएंगे?

WrittenBy:प्रतीक गोयल
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“जब पानी है ही नहीं तो छोड़ें कैसे?…क्या हम वहां पेशाब कर दें? लेकिन अगर पानी न हो तो पेशाब करना भी संभव नहीं है."

महाराष्ट्र राज्य, जहां के 65 प्रतिशत मतदाता किसान हैं, वहां पानी की मांग कर रहे सूखा प्रभावित किसानों के विरोध प्रदर्शन के जवाब में इस तरह का बयान किसी नेता की राजनैतिक पारी खत्म कर सकता है. लेकिन अप्रैल 2013 में उपमुख्यमंत्री के रूप में यह टिप्पणी करने वाले अजित पवार के साथ ऐसा नहीं हुआ, बल्कि वह कम से कम एक लाख वोटों के अंतर से एक के बाद एक चुनाव जीतते आ रहे हैं.

इस बयान के एक दशक बाद- जिसे उन्होंने अपने राजनैतिक करियर की "सबसे बड़ी गलती" बताया था और प्रायश्चित के रूप में अनशन किया था, वो अजित पवार आज बहुत आगे निकल चुके हैं. और अब उपमुख्यमंत्री के रूप में उनके पांचवें कार्यकाल में, ऐसा लगता है कि उन्होंने अपने गुरु और चाचा शरद पवार को पछाड़ कर अपनी सबसे कठिन चुनौती को पार कर लिया है. लेकिन उनके इस कदम से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में जो दरारें आई हैं, उन्हें भरना बहुत मुश्किल हो सकता है. 

पिछले दिनों उन्होंने जो शक्ति प्रदर्शन किया उसमें पार्टी के अधिकतर विधायक पहुंचे, जिनमें उनके चाचा के पुराने वफादार थे. वहीं पवार सीनियर के शक्ति प्रदर्शन में कम विधायक थे. लेकिन जैसे-जैसे उलटफेर चलता रहेगा, यह अनुमान लगाना मुश्किल होगा कि महाराष्ट्र के इस नए राजनीतिक सत्र में हवाएं किस तरफ चलेंगी.

तो अजित पवार के लिए यह कैसे संभव हुआ? उन्हें पारिवारिक बंधनों को तोड़ने की जरूरत क्यों महसूस हुई? क्या वह केवल "विकास" के बारे में सोच रहे हैं, जैसा कि उनके कई समर्थक दावा कर रहे हैं? उनका वित्तीय और राजनैतिक दबदबा कितना है? और क्या वह अपने गुरु से अलग होकर अपनी पहचान बना पाएंगे, या देवेन्द्र फडणवीस-एकनाथ शिंदे के खेमे में अलग-थलग पड़ जाएंगे?

पढ़ाई छोड़कर बने किसान, फिर राजनेता

महाराष्ट्र के सबसे शक्तिशाली राजनैतिक परिवारों में से एक पवार फैमिली की जड़ें पुणे की बारामती तहसील के काटेवाड़ी गांव से जुड़ी हैं. परिवार की राजनैतिक पारी की शुरुआत की थी शरद पवार की माताजी शारदा पवार ने, जो 1936 में वामपंथी पेसेंट वर्कर्स पार्टी से जुड़ीं और पुणे लोकल बोर्ड की सदस्य चुनी गईंं.

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