विज्ञापन पर करोड़ों खर्च करने वाली 'आप' सरकार ने कहा कि उनके पास आरआरटीएस परियोजना को आगे बढाने के लिए पर्याप्त बजट नहीं है.
दिल्ली सरकार ने पिछले तीन वर्षों में विज्ञापन पर 1,073 करोड़ रुपय खर्च किए हैं. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि अरविंद केजरीवाल सरकार विज्ञापन पर 1,073 करोड़ खर्च कर सकती है तो निश्चित रूप से निर्माण परियोजनाओं पर भी निवेश कर सकती है.
कोर्ट… दिल्ली, मेरठ और गाजियाबाद को जोड़ने वाली “रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम” को अमल में लाने की देरी से संबंधित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. 3 जुलाई को दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसके पास इस परियोजना को आगे बढाने के लिए फंड की कमी है. वहीं बार एंड बेंच के अनुसार, कोर्ट ने कहा कि अगर सरकार के पास विज्ञापन पर खर्च करने के लिए इतने पैसे हैं तो सरकार इस परियोजना पर निवेश क्यों नहीं कर सकती जो परिवहन को आसान बना सकता है?
बता दें कि दिल्ली सरकार को पिछले तीन वर्षों में किए गए खर्च पर कोर्ट द्वारा एफिडेविट बनाने के लिए कहा गया था. इस एफिडेविट में खुलासा हुआ कि पिछले तीन वर्षों में विज्ञापन पर 1,073 करोड़ खर्च किए गए हैं.
सुनवाई के दौरान न्यायाधीश एसके कौल ने आज दिल्ली सरकार से कहा कि या तो आप भुगतान करें या हम आपके विज्ञापन बजट को अटैच कर देंगे.
दिल्ली सरकार का कोर्ट में प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि सरकार द्वारा आरआरटीएस परियोजना का भुगतान किया जाएगा. लाइव लॉ के अनुसार कोर्ट ने भुगतान संबंधी दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं.
वहीं 2021-22 तक देखा गया है कि पिछले 10 वर्षों में दिल्ली सरकार का विज्ञापन पर 4,273 प्रतिशत खर्च बढ़ गया है. न्यूज़लॉन्ड्री ने रिपोर्ट की थी कि कैसे 2020-22 के बीच दिल्ली सरकार ने पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए बायो डी-कंपोजर के छिड़काव पर 68 लाख रुपय खर्च किए थे. हालांकि लगभग 23 करोड़ रुपये इस परियोजना के विज्ञापन पर खर्च किए गए. हमारी रिपोर्ट आप यहां पढ़ सकते हैं.
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