हिंदी पॉडकास्ट जहां हम हफ्ते भर के बवालों और सवालों पर चर्चा करते हैं.
इस हफ्ते चर्चा में बातचीत के मुख्य विषय पीएम नरेंद्र मोदी की अमेरिका की पहली राजकीय यात्रा, गीता प्रेस गोरखपुर को गांधी शांति पुरस्कार, उत्तर प्रदेश में लू लगने से करीब 80 लोगों की मौत, बिहार के भागलपुर में गर्मी से लोगों की मौत, आदिपुरुष फिल्म पर विवाद, कोविन डाटा लीक मामले में बिहार का एक व्यक्ति गिरफ्तार, सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोलकाता हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ बंगाल सरकार की आपत्ति को खारिज करना, डब्ल्यूएचओ द्वारा भारत और इंडोनेशिया के करीब 20 कफ सिरप को टॉक्सिक कहकर ब्लैकलिस्ट करना, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म का चुनाव आयोग को पत्र, जिसमें उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि को सार्वजानिक न करने वाले राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहना, समान नागरिक संहिता और पटना में विपक्षीय दलों की बैठक आदि रहे.
चर्चा में इस हफ्ते बतौर मेहमान लेखक अक्षय मुकुल, न्यूज़लॉन्ड्री के सह-संपादक शार्दूल कात्यायन और अवधेश कुमार शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
गीता प्रेस गोरखपुर को दिए जा रहे गांधी शांति पुरस्कार से चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल कहते हैं, “शुरुआत में यह कहा गया कि यह सर्वसम्मति से लिया गया फैसला है लेकिन बाद में यह बात सामने आई कि नेता प्रतिपक्ष अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि उन्हें पूरे समय अंधेरे में रखा गया, यह बात निर्णय लेने की प्रक्रिया पर सवाल उठाती है. वहीं इस निर्णय पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने आपत्ति जताई है.”
अतुल आगे सवाल करते हैं, “गीता प्रेस और गांधी के बीच में किस तरह का रिश्ता था? इस निर्णय को किस तरह देखा जाना चाहिए? गीता प्रेस दलितों के बारे में क्या सोचती है, महिलाओं को उसके लेकर क्या विचार हैं, आजादी के आंदोलन के प्रति और समाज सुधार के प्रति उसका क्या रवैया रहा है?
इस सवाल के जवाब में अक्षय मुकुल कहते हैं, “गांधी शांति पुरस्कार के लिए पात्रता है- सौहार्द बढ़ाने और शांति कायम करने का काम. जबकि गीता प्रेस इनमें से किसी भी दायरे में फिट नहीं होती चाहे वह जाति का सवाल हो, महिलाओं का सवाल हो या धर्म का सवाल हो.”
अक्षय आगे कहते हैं, “यूं तो गांधी और गीता प्रेस के संस्थापकों हनुमान प्रसाद पोद्दार के बेहद अच्छे संबंध थे लेकिन वक्त के साथ-साथ वो बिगड़ते चले गए. क्योंकि गांधी के गीता पर अलग विचार थे. यही वजह है कि करीबी रिश्ते होने के बावजूद पोद्दार ने कभी भी गांधी द्वारा लिखा गीता का सार प्रकाशित नहीं किया. गांधी गीता को ऐतिहासिक दस्तावेज़ नहीं मानते थे. दोनों के बीच 1932 में दलितों के मंदिर प्रवेश को लेकर लड़ाई शुरू हो गई. तब गांधी अनशन पर थे और मंदिरों के दरवाजे खुलने शुरू हो गए. जिससे ये लोग काफी विचलित हो गए. गांधी से बार-बार ये सवाल किया गया कि क्या मंदिर में प्रवेश करने से कोई उच्च जाति का हो जाएगा?”
गीता प्रेस और गांधी के संबंधों के बारे में विस्तार से जानने के लिए सुनिए पूरी चर्चा. चर्चा में पीएम मोदी की अमेरिका में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस पर भी बातचीत हुई.
टाइम कोड्स:
00:00:00 - 00:29:35 - इंट्रो व हैडलाइंस
00:29:35 - 00:56:42 - पीएम मोदी की अमेरिका में प्रेस कॉन्फ्रेंस
00:57:21 - 01:03:00 - गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार
01:19:00 - जरूरी सूचना व सलाह और सुझाव
पत्रकारों की राय क्या देखा, पढ़ा और सुना जाए
अक्षय मुकुल
मनोज मित्ता की किताब- कास्ट प्राइड: बैटल्स फॉर इक्वैलिटी इन हिंदू इंडिया
अभिषेक चौधरी की किताब- वाजपेयी: द एसेंट ऑफ हिंदू राइट (1924-1977)
शार्दूल कात्यायन
मैनुअल स्कैवेंजिंग पर प्रत्युष दीप की रिपोर्ट
ज्योतिरादित्य सिंधिया पर प्रतीक गोयल की रिपोर्ट
चीन की कटस्ट्रोपिक तेल और गैस की समस्या
साइंस शो- कॉसमॉस: ए स्पेसटाइस ऑडिसी
अतुल चौरसिया
फिल्म- ट्रेन टू पाकिस्तान
अमित वर्मा का पॉडकास्ट- गीता प्रेस एंड हिन्दू नेशनलिज़्म
अवधेश कुमार
बीबीसी पॉडकास्ट- कहानी जिन्दगी की
ट्रांस्क्राइबः तस्नीम फातिमा
प्रोड्यूसरः चंचल गुप्ता
एडिटर: उमराव सिंह
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