जयपुर के एक आलीशान सरकारी बंगले के बाहर एक करीब 20-वर्षीय गुर्जर युवा निराश खड़ा था. वह सवाई माधोपुर जिले के बामनवास से रेलवे में नौकरी के सिलसिले में जयपुर आया था और थोड़ी ही देर में उसे घर वापस जाने के लिए ट्रेन पकड़नी थी. जाने से पहले वह शहर के इस प्रतिष्ठित व्यक्ति के साथ एक तस्वीर लेना चाहता था.
जून की तपती धूप में वह सुरक्षा अधिकारियों से अंदर जाने देने की गुहार लगाता रहा. "मैं बस उनके साथ एक फोटो लेना चाहता हूं," उसने कहा. सुरक्षाकर्मियों ने मना कर दिया. फिर वह दूसरे आगंतुक की ओर मुड़ा और पूछा कि क्या वह उनके साथ अंदर जा सकता है. पार्टी का टिकट मिलने की उम्मीद लेकर आए आगंतुक ने जवाब दिया, "नहीं, जब तक आपके पास अपॉइंटमेंट न हो, आप प्रवेश नहीं कर सकते. मैं आपकी मदद नहीं कर सकता."
निराश होकर युवक मुड़ा और स्टेशन की ओर चला गया.
यह बंगला 11, सिविल लाइंस पर स्थित है और इसके निवासी हैं कांग्रेस के 45 वर्षीय बागी नेता सचिन पायलट. पायलट अपने बयानों के कारण दिल्ली मीडिया में काफी लोकप्रिय हैं और पिछले साढ़े चार साल से मुख्यमंत्री बनने के लिए प्रतीक्षारत हैं. उनके मुख्यमंत्री बनने के सपनों को 2018, 2020 और 2022 में तीन बार झटका लग चुका है.
हाल ही में वह अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ अनशन पर बैठे थे और उन्होंने पेपर लीक और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ जांच के दोहरे मुद्दों पर एक पांच-दिवसीय पैदल मार्च भी किया.
कुल मिलाकर, आज राजस्थान की राजनीति में सचिन पायलट होना आसान नहीं है.
लेकिन यह पायलट परिवार का इतिहास रहा है. सचिन के पिता राजेश पायलट ने 1998-2000 में सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने का विरोध किया था. वह 2000 में सोनिया गांधी के खिलाफ अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ना चाहते थे, हालांकि उनके इस कदम से कांग्रेस कार्यकर्ता नाराज थे. चुनाव होने से पहले ही उनकी मृत्यु हो गई. इसके पहले, 1999 में दिल्ली में पार्टी के मुख्यालय 24, अकबर रोड पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उनके साथ "मारपीट" भी की थी.
सालों बाद अब जूनियर पायलट ने भी दिखा दिया कि उन्हें रोका नहीं जा सकता, खासकर तब जब इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.
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