पुलिस की प्रताड़ना या मुआवजे की मांग: मदन की मौत का जिम्मेदार कौन? 

मदन ने अपने सुसाइड नोट में लिखा, “मेरी मौत की जिम्मेदार पुलिस है.”

WrittenBy:अवधेश कुमार
Date:
Article image

एक शख्स न्याय के लिए करीब एक साल तक लड़ता रहा, लेकिन जैसे-जैसे समय बढ़ रहा था वह सिस्टम से और ज्यादा प्रताड़ित हो रहा था. आखिरकार एक साल बाद जब उसे लगा कि उसके लिए न्याय के सारे रास्ते बंद हो गए हैं, तब उसने सुबह करीब चार बजे अपने घर से एक किलोमीटर दूर एक पेड़ से लटककर अपनी जान दे दी. ये कहानी उत्तर प्रदेश अमरोहा जिले के तरारा गांव में रहने वाले 38 वर्षीय मदन की है. 

यह मामला एक साल पुराना है. मदन 20 जून, 2022 की रात को गांव के ही जयचंद की बरात में संभल के परतापुर गांव गए थे. 21 जून, 2022 को सुबह लौटते वक्त उनकी कार की टक्कर एक साइकिल से हो गई. इस हादसे में 55 वर्षीय राजमिस्त्री कृपाल सिंह की मौत हो गई. टक्कर के बाद चालक और अन्य गाड़ी सवार लोग मौके से फरार हो गए. कार में बैठे मदन को लोगों ने पकड़ लिया और पुलिस के हवाले कर दिया. इसके बाद पुलिस ने उसे ही कार का ड्राइवर घोषित कर मामला दर्ज कर लिया.

बस यहीं से मदन की जिंदगी में भूचाल आ गया. मदन के परिजनों का आरोप है कि घटना के बाद पुलिस उसे परेशान करने लगी. उसने डरा धमका कर मदन से 50 हजार रुपए भी वसूल लिए. लेकिन मदन की परेशानी इतनी भर नहींं थी. एफआईआर में मदन का नाम मुख्य आरोपी के तौर पर दर्ज हो गया था. मृतक कृपाल सिंह के परिवारवालों ने उससे 18 लाख रुपए का मुआवजा मांग लिया. कोर्ट ने इस बाबत एक नोटिस मदन के नाम जारी कर दिया. इससे मदन का रहा-सहा हौसला भी पस्त हो गया. 

पुलिस की लापरवाही और कथित भ्रष्टाचार के चलते एक निरपराध व्यक्ति की जिंदगी सांसत में पड़ गई. मदन सुसाइड नोट आरोप लगाते हैं कि पुलिस ने उन्हें झूठे मुकदमे में फंसा कर आत्महत्या के लिए मजबूर किया है. 

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute

चार पन्नों के इस सुसाइड नोट की शुरुआत कुछ यूं है, "ये सरकार गंदी है और इस सरकार में कर्मचारी भी गंदे हैं. मेरे बच्चों का पालन पोषण, देखरेख नगली थाने के कर्मचारियों और फत्तेपुर वालों को जीवन भर करना होगा." 

मदन आगे लिखते हैं, “मैं अपनी बेटी को क्रिकेटर बनाना चाहता था. मेरी मिट्टी को तब तक लेकर मत जाना जब तक कि योगीजी और मोदीजी आकर इंसाफ न दें.”

मदन का क्या कसूर था?

परिवार का कहना है कि बीते एक साल के दौरान पुलिस ने मदन के लगातार परेशान किया. जब हम मदन के गांव पहुंचे तब चारो तरफ चीख-पुकार और मातम का माहौल था. मदन के चारो बच्चों और पत्नी भागवती का रो-रोकर बुरा हाल था. एक मात्र कमरे के घर के भीतर कोने में रस्सी पर बहुत सारे कपड़े टंगे थे तो दूसरे कोने पर संदूक पर एक पुराना ब्लैक एंड व्हाइट टीवी रखा था, जो शायद बंद पड़ा है. 

मदन के घर में शोक संतप्त परिवार और रिश्तेदार

वहीं बगल में खाना बनाने के लिए मसालों के कुछ डिब्बे रखे थे. मकान में भारी उमस थी. कमरे के बाहर एक गैस सिलेंडर जरूर रखा था, लेकिन खाना लकड़ी के चूल्हे पर ही बनता है. 

मदन के घर की बगल में ही उनके बड़े भाई घनश्याम का घर है. सांत्वना देने आए रिश्तेदार घनश्याम के घर पर ही ठहरे हैं. 

मदन की पत्नी भागवती, न्यूज़लॉन्ड्री से कहती हैं, “मेरे चार छोटे-छोटे बच्चे हैं. वो (मदन) मजदूरी करके पाल रहे थे. कई-कई दिनों तक घर नहीं आते थे. पुलिस वाले उन्हें होटल पर पहुंचकर अक्सर परेशान करते थे. अगर हमें न्याय नहीं मिला तो हम जीकर क्या करेंगे? हम भी मर जाएंगे. मैं अपने बच्चों सहित सल्फास (जहर) खा लूंगी और जान दे दूंगी.”

बता दें कि मदन एक होटल में बर्तन साफ करने का काम करते थे. मदन की 57 वर्षीय माता मिशरिया देवी की आंखें रो-रो कर पथरा चुकी हैं. वह बार-बार एक ही बात कहती हैं, “बुढ़ापे में मुझे अकेला कर गया”.

उनका कहना था, “पूरे गांव में पूछ लीजिए, कभी उसने गाड़ी नहीं चलाई है. उसे गाड़ी चलानी ही नहीं आती थी. पूरा गांव गवाही दे सकता है. लेकिन पुलिस ने उसे ड्राइवर बता कर केस किया. हम गरीब लोग हैं कहां से इतना रुपया देते.” 

18 लाख 28 हजार का नोटिस

आरोप है कि इस हादसे में मारे गए मृतक कृपाल सिंह के परिजन मुआवजे के रूप में मोटी रकम मांग रहे थे. इसके लिए कृपाल सिंह के घर वालों ने एक साल बाद मुआवजा लेने के लिए कोर्ट में 18 लाख 28 हजार का दावा किया था. जब इस मुआवजे का नोटिस मदन के घर पहुंचा तो वह पूरी तरह घबरा गया.

जिस जगह पर मदन ने खुदकुशी की उसकी ओर इशारा करते हुए मदन के भाई घनश्याम सिंह कहते हैं, "यही वह पेड़ है, जिस पर लटक कर मदन ने 11 जून को सुबह करीब चार बजे आत्महत्या कर ली थी."

वह आगे कहते हैं, “इस घटना का हमें तब पता चला जब सुबह लोग चारा लेने खेतों पर पहुंचे. तब मुझे किसी ने कॉल किया कि तुम्हारे भाई ने फांसी लगा ली है. उसके बाद हम लोगों ने आकर उसकी लाश को पेड़ से उतारा.” 

इसके बाद वे भी वही बात दोहराते हैं, जो मदन की मां कह रही थीं कि पुलिस ने उसे जबरन फंसा दिया. 

तरारा गांव के निवासी और मदन के पड़ोसी टेकचंद्र कहते हैं, “मदन तो गांव में रहता ही नहीं था. वह तो एक होटल में काम करता था. न ही उसे गाड़ी चलानी आती थी. पुलिस ने उसे बेवजह फंसाया है.” 

एक अन्य शख्स कुंवरपाल कहते हैं, “मदन शादी में गया था. उसका क्या कसूर था? सिर्फ गाड़ी में ही तो बैठा था. गाड़ी किसकी थी, पूरा इलाका जानता है. पुलिस ने उसे जानबूझकर फंसा दिया. ऐसे तो पुलिस वाले किसी को भी फंसा देंगे.”

चार्जशीट में नहीं है मदन का नाम

उधर, पुलिस ने चार्जशीट में अब कार चालक के तौर पर केशव का नाम दर्ज कर लिया है. हालांकि, मदन के परिवार का दावा है कि उन्हें इसकी जानकारी मदन की मृत्यु के बाद लगी. वे कहते हैं कि अगर मदन को ये बात पता लग जाती तो शायद वह फांसी नहीं लगाता. 

घनश्याम आरोप लगाते हैं कि पुलिस ने केशव को आरोपी न बनाने के लिए उसके परिवार से पांच लाख रुपए लिए थे. इसी वजह से केशव की बजाय पहले मदन के नाम पर मामला दर्ज किया गया. उनका यह भी आरोप है कि पुलिस ने चार्जशीट से नाम हटाने के लिए मदन से भी 50 हजार रुपए लिए थे. 

केशव के परिवार ने क्या कहा

केशव के पिता खूबसिंह

इसके बाद हम हाजीपुरा गांव स्थित केशव के घर भी पहुंचे. यहां हमारी मुलाकात उनके पिता खूबसिंह से हुई. वह अपने आप को इस बात से अंजान बताते हैं कि चार्जशीट से मदन का नाम हटाकर उनके बेटे का नाम जोड़ा गया है. 

इसके साथ ही वे इस मामले पर और ज्यादा बात करने से इंकार करते हैं.  

मृतक कृपाल सिंह के परिवार ने क्या कहा

हमने गांव फत्तेपुर स्थित मृतक कृपाल सिंह के परिवार से भी मुलाकात की, जिनकी मौत उस कार दुर्घटना में हो गई थी. उनके पुत्र जसविंदर सरकारी स्कूल में अध्यापक हैं.  

जसविंदर सिंह, मृतक कृपाल सिंह के पुत्र
मृतक कृपाल सिंह की फोटो दिखाते जसविंदर

वह कहते हैं, “यह घटना 21 जून, 2022 की है. पिताजी सुबह-सुबह गांव में ही तलाब के पास साइकिल से गए थे, जब वह वापस आ रहे थे तभी एक कार ने उन्हें टक्कर मार दी. उसके बाद तुरंत ही हम सब लोग उन्हें अस्पताल लेकर गए थे लेकिन तब तक उन्होंने दम तोड़ दिया था. इस घटना की तहरीर पहले से तैयार थी. जब पुलिस वाले आए थे तो हम बहुत परेशान थे, घर में सब शोक में डूबे थे. काफी संख्या में पुलिसकर्मी आए थे. हमसे सिर्फ हस्ताक्षर करवाए और चले गए.” 

वे कहते हैं, “हमें तो कुछ पता ही नहीं था कि कौन गाड़ी चला रहा था?” 

जसविंदर बताते हैं कि मदन की मृत्यु से एक दिन पहले वो सब (मदन का परिवार और अन्य) लोग हमारे गांव में आए थे. इस बारे में पंचायत भी हुई थी, तब घनश्याम ने कहा था कि मदन गाड़ी नहीं चला रहा था, न ही उसे गाड़ी चलानी आती थी. तब हमने यही कहा कि एक तो मामला विचाराधीन है और दूसरा ये बात कानूनी कार्यवाही शुरू होने से पहले कर लेनी चाहिए थी.  

पुलिस ने पहले ही तैयार कर ली थी तहरीर

क्या आपने पुलिस की तहरीर पढ़ी थी? इस पर वह कहते हैं कि नहीं हमने नहीं पढ़ी क्योंकि हम बदहवास थे. 

मदन की मृत्यु पर अफसोस जताते हुए वह कहते हैं, “अगर मदन आते तो हम ऐसे ही मामला निपटा लेते, ऐसा कुछ होता ही नहीं लेकिन वह कभी हमारे पास नहीं आए. मदन से हमारी कोई निजी दुश्मनी नहीं थी. लेकिन जो भी हुआ है गलत हुआ है. मदन को आत्महत्या नहीं करनी चाहिए थी.”

इस मामले में पुलिस की भूमिका और आरोपों का जवाब जानने के लिए हम थाना सैद नगली भी गए. यहां हमारी मुलाकात एसएचओ संदीप चौधरी से हुई. उन्होंने केस के बारे में विस्तार से जानकारी दी.

वह कहते हैं, “इस मामले में 279, 304A और 427 की धाराओं में मदन के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था. शिकायत में कार एक्सीडेंट में मारे गए कृपाल सिंह के पुत्र जसविंदर सिंह के हवाले से लिखा गया है कि वैगन-आर गाड़ी संख्या HR26AD61** ने उनके पिता, जो कि साइकिल से आ रहे थे, को टक्कर मार दी. उनके पिता को अस्पाताल ले जाया गया और उन्हें मृत घोषित कर दिया.”

एफआईआर में गाड़ी चालक का नाम मदन पुत्र टेकचंद्र, निवासी तरारा थाना सैद नगली बताया गया है.

हालांकि, जब जसविंदर सिंह से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने इस बात से साफ इंकार किया. वे कहते हैं कि उन्होंने कभी भी कोई शिकायत किसी के खिलाफ नहीं दी है. वे आरोप लगाते हैं कि तहरीर में सब कुछ पुलिस ने ही लिखा है और उनसे सिर्फ दस्तखत लिए गए.

क्या कहती है पुलिस

थाना सैद नगली

संदीप चौधरी कहते हैं, “यह हादसा फत्तेपुर में हुआ था और मृतक भी वहीं के थे. हादसे के बाद सभी लोग भाग गए थे लेकिन मदन को स्थानीय लोगों ने पकड़ लिया था. वे मदन और गाड़ी को थाने ले आए थे. उसके बाद मदन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई. जिसके बाद मदन का चालान कर दिया गया लेकिन उसी दिन उसे जमानत भी मिल गई थी.”

अब चार्जशीट से मदन का नाम क्यों हटा दिया है? इस सवाल पर वह कहते हैं कि जब विवेचना की गई तो पाया गया कि मदन गाड़ी चला नहीं रहा था बल्कि गाड़ी में बैठा था.

इसके बाद पुलिस ने मदन का नाम हटाकर, केशव पुत्र खूबसिंह के खिलाफ 20 सिंतबर 2022 को चार्जशीट दाखिल की. 

7 दिसंबर, 2022 को इस मामले में पीड़ित पक्ष (जसविंदर सिंह) ने ट्रिब्यूनल कोर्ट में 18 लाख 28 हजार का क्लेम डाल दिया. लेकिन उन्होंने जो पहले एफआईआर दर्ज हुई थी यानी जिसमें मदन का नाम था, उसके आधार पर मुआवजे की मांग की.

चौधरी आगे कहते हैं, “इस पर कोर्ट ने मदन को अपना पक्ष रखने के लिए नोटिस भेज दिया. हालांकि, वकील ने उन्हें सही जानकारी नहीं दी और मदन को कहा कि ये 18 लाख 28 हजार रुपए आपको पीड़ित परिवार को देने पड़ेंगे. यह सुनकर वह तनाव में आ गया और आत्महत्या कर ली.” 

वह कहते हैं कि मदन के घरवालों को पहले से पता था कि वह तनाव में था तो उन्होंने कोई भी कार्रवाई करने से मना कर दिया. 

मदन की आत्महत्या के बाद पुलिस को कार्रवाई नहीं करने के लिए लिखा गया पत्र

न्यूज़लॉन्ड्री के पास वो पत्र भी है जिसमें परिवार द्वारा कोई भी कार्रवाई नहीं करने की बात कही गई है. इस कागज में मदन के भाई घनश्याम के हवाले से लिखा गया है कि मेरे भाई मदन ने आत्महत्या की है, इसमें किसी का कोई दोष नहीं है. इस कागज पर घनश्याम के अलावा एक अन्य ने भी हस्ताक्षर किए हैं.

इस पर घनश्याम कहते हैं, “इस पत्र को चौकी इंचार्ज ने हमें डराकर लिखवाया है कि अगर नहीं लिखोगे और हस्ताक्षर नहीं करोगे तो उल्टा तुम फंस जाओगे.”

वे आरोप लगाते हैं कि जब उन्होंने 18 लाख 28 हजार रुपए के नोटिस के जिक्र की बात की, जिसके कारण मदन ने आत्महत्या की तो पुलिस वालों ने कहा कि ये सब नहीं लिखा जाएगा. 

इस पत्र में लेखक के तौर पर अजय पाल का नाम और मोबाइल नंबर भी दर्ज है. जब हमने पाल से बात की तो वह कहते हैं, “यह पत्र मुझसे चौकी इंचार्ज सुरजीत सिंह (सरदार जी) ने लिखवाया है. ये पुलिस वाले हमसे पंचनामा लिखवा रहे थे. जब हमने उनसे सवाल किया कि ऐसे क्यों लिखवा रहे हो तो उन्होंने कहा कि पंचनामे के साथ ऐसे ही लिखा जाता है कि किसी पर हम कार्रवाई नहीं कर रहे हैं. पुलिस वालों का हम पर दबाव था.”

पुलिस के रुपए लेकर चार्जशीट में नाम शामिल करने और निकालने के आरोपों पर चौधरी कहते हैं कि ऐसे आरोप लगते रहते हैं लेकिन इस मामले में पुलिस की कोई संलिप्ता नहीं पाई गई है. 

उत्तर प्रदेश की बात करें तो भले यहां मदन जैसे कितने ही शख्स पुलिस प्रताड़ना से तंग आकर अपनी जान दे चुके हों लेकिन राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंक़ड़ों के मुताबिक, साल 2020 में यहां पुलिस हिरासत के दौरान सिर्फ एक जान गई है. 

Also see
article imageशाहबाद डेयरी: बढ़ता अपराध, युवाओं में 'भाई' बनने का शौक और दिल्ली पुलिस की भूमिका
article imageयूपी में दलित युवक के साथ हुई हिंसा की घटना का पूरा सच
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like