रंगा बदनाम हुआ, गीता प्रेस तेरे लिए और महामानव गांधी

दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.

WrittenBy:अतुल चौरसिया
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मइस हफ्ते टिप्पणी में रंगा सियार की कहानी सुनिए. जंगल से भटक कर एक सियार शहर पहुंच गया. वहां नील की एक हौद में गिर गया. पूरा शरीर नीला-नीला हो गया. जोश में आकर जानवरों ने उसे जंगल का राजा बना दिया. ऐसे ही एक रंगा सियार की कहानी आपको सुनाता हूं जिसके चेहरे से रंग उतर गया है. हर शाम, हर रात किसी न किसी चैनल पर वह आपको हुआं-हुआं करता दिख जाएगा. 

रंगा बाबू जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के स्पेशल सेंटर फ़ॉर मॉलिक्युलर मेडिसिन में प्रोफेसर हैं. मॉलिक्युलर मेडिसिन में इनका ऐतिहासिक योगदान किसी को पता हो या न हो लेकिन सुई से लेकर हवाई जहाज, पनीर से लेकर पांडवों तक और पंचायत से लेकर संसद तक का ज्ञान लेना हो तो आप रोजाना टेलीविजन के परदे पर इनसे भेंट कर सकते हैं.

देश का इतिहास बाकियों के लिए गहन अध्ययन, सौ पचास किताबों की यात्रा और लाइब्रेरी में माथापच्ची का जरिया हो सकता है लेकिन रंगा बाबू के लिए देश का इतिहास परीक्षा पास करने की कुंजी है. पांच सवालों का जवाब रट कर आइए और शर्तियां परीक्षा पास कर जाइए, वरना पैसा वापस. पिछले दिनों ये गांधी, गीता प्रेस और आज़ादी की लड़ाई का फर्रा पढ़कर आए थे.

हमने सोचा इनके कुंजी मार्का इतिहास का थोड़ा पोस्टमॉर्टम कर दिया जाय. रंगा बाबू की हुआं-हुआं में गांधी से संबंधित तीन अहम बातें सामने आईं. पहला आरोप था कि गांधी अपनी पोती मनु के साथ सोते थे. दूसरा, गांधी अपनी पत्नी कस्तूरबा के हत्यारे हैं और तीसरा गांधी अव्वल दर्जे के रेसिस्ट, बिगट थे यानी नस्लवादी और कट्टरपंथी. गांधी से ये बेवफाई रंगा ने गीता प्रेस की मुहब्बत में दिखाई थी. इसी पर इस हफ्ते की टिप्पणी देखिए.

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